अल्जाइमर का है इलाज

नई दिल्ली / टीम डिजिटल। दुनियाभर में लगभग 35.6 मिलियन से अधिक व्यक्ति अल्जाइमर से ग्रस्त है। जो इस रोग को एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट बनाते हैं जिसे संबोधित किया जाना जरूरी है। 2030 में यह संख्या दोगुनी होने की संभावना है और 2050 में तिगुनी। किसी व्यक्ति में अल्जाइमर होना केवल अकेले व्यक्ति को प्रभावित नहीं करता है, बल्कि पूरे परिवार के सदस्य के रहन-सहन के तरीकें को भी बदलकर रख देता है।

अल्जाइमर रोग सबसे आम प्रकार का डिमेंशिया है, जो कि मस्तिष्क के यथोचित रूप में काम न कर पाने की स्थिति में होने वाली परिस्थितियों के लिए समग्रता में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। अल्जाइमर याददाश्त, सोचने और व्यवहार संबंधी समस्याएं पैदा करता है। आरंभिक चरण में, अल्जाइमर के लक्षण बहुत ही कम हो सकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे रोग मस्तिष्क को अधिक नुकसान पहुंचाता है, लक्षण बिगडऩे लगते हैं। रोग के बढऩे की दर हरेक व्यक्ति में अलग होती है, परंतु व्यक्ति लक्षण शुरू होने के बाद से औसतन आठ वर्ष तक जीवित रहता है। हालांकि अल्जाइमर रोग को बढऩे से रोकने के कोई उपचार फिलहाल मौजूद नहीं हैं, परंतु ऐसी दवाएँ हैं जिससे अल्जाइमर के लक्षणों का इलाज किया जा सकता है।

लक्षणों को शुरुआती चरण में न पहचान पाना एक आम समस्या है. याददाश्त में प्रॉब्लम हो भी तो इसे बढ़ती उम्र का नतीजा समझा जाता है, और व्यक्ति या परिवार डॉक्टर से सामान्य चेक-अप के वक्त इसका जिक्र तक नहीं करते. यह डर हो भी कि शायद समस्या गंभीर है, फिर भी डॉक्टर के पास जाने में संकोच होता है. अन्य समस्याओं में भी जैसे कि कन्फ्यूशन, उदासीनता, चरित्र में बदलाव लोग यह नहीं सोचते कि यह किसी बीमारी के कारण हैं और डॉक्टर से सलाह नहीं करते.

कुछ अन्य लोग, जिन्होंने अल्जाइमर के बारे में सुना है, वे डर के मारे किसी को अपनी समस्या के बारे में नहीं बताते क्योंकि अल्जाइमर की समाज में जानकारी अधूरी है, और कई लोग इसे मानसिक रोग या पागलपन कह देते हैं, और इसका होने शर्मनाक समझा जाता है. इन कारणों की वजह से, कई अल्जाइमर से ग्रस्त व्यक्तियों का शुरूआती समय में निदान नहीं होता और परिवार वाले व्यक्ति को डॉक्टर के पास तभी ले जाते हैं जब अल्जाइमर मध्य या अग्रिम अवस्था में होता है और इसके लक्षणों के कारण इतनी तकलीफ  होने लगती है कि उन्हें नाजरंदाज नहीं किया जा सकता.

 

 

 

 

 

 

अल्जाइमर के अन्य शुरूआती लक्षण भी हो सकते हैं,

व्यक्तित्व में बदलाव,
बोलने में दिक्कत
सामाजिक तौर-तरीके भूल जाना
चलने या संतुलन में दिक्कत
लोगों से कटे कटे रहना
यह भी हो सकता है कि याददाश्त सही रहे, पर अन्य लक्षण नजर आएं. यदि व्यक्ति और परिवार वाले सतर्क हों, तो वे डॉक्टर से सलाह कर के सही निदान पा सकते हैं. इस तरह निदान देर से करने से व्यक्ति और परिवार, दोनों को नुकसान होता है.
निदान की कुंजी
मेमोरी मनोभ्रंश का निदान करने के लिए क्षीण होना चाहिए.
हाल की घटना को भूल जाना जल्द से जल्द दिखने वाला चिन्ह है.
इसके बाद के लक्षणों में असामान्य व्यवहार, बुद्धि का नुकसान, मनोदशा में बदलाव, और साधारण मार्गों को याद करने में कठिनाई शामिल हैं.
शुरू में स्मृति बनाए रखने के लिए निरीक्षण किया जा सकता है, लेकिन फिर आमतौर पर खो जाता है. मूलभूत रूप सें, स्वयं की देखभाल, अस्थिर, असंयम, और अक्सर व्यामोह का नुकसान होता है.

निदान परीक्षण, ब्लड जांच और ब्रैन स्केन पर निर्भर करता है। यह भी संभव है कि व्यक्ति को ऐसे प्रकार का अल्जाइमर है जो दवाई से दूर नहीं किया जा सकता (और अधिकांश अल्जाइमर इसी प्रकार के होते हैं). पर इस स्थिति में भी, कुछ ऐसी दवाइयां हैं जो रोग तो नहीं दूर कर सकतीं, पर प्रकट लक्षण कम कर सकती हैं, जिससे व्यक्ति को (और परिवार को) राहत मिल सकती है, और व्यक्ति का जीवन पहले से अधिक सामान्य हो सकता है. शायद याददाश्त थोड़ी बेहतर हो जाए, तो कुछ तो आराम मिले. निदान को टालते रहने से व्यक्ति और परिवार इस राहत से वंचित रहते हैं. अधिकांश ऐसी दवाइयां शुरुआती अवस्थी में ज्यादा कारगर होती हैं. जब शुरू में व्यक्ति कठिनाई महसूस करते हैं, तो वे घबरा जाते हैं, या शर्म महसूस करते हैं, क्योंकि वे समझ नहीं पाते कि उन्हें क्या हो रहा है. या तो वे औरों से बच कर रहने लगते हैं और सहमे सहमे रहते हैं, या बात बात पर गुस्सा करते हैं या शक करते हैं कि अन्य लोग ही कुछ कर रहे होंगे जिससे उन्हें प्रॉब्लम हो रही हैं.

यह भी एक कारण है जिसकी वजह से व्यक्ति डॉक्टर के पास जाने की नहीं सोचते. अल्जाइमर की जागरूकता फैलेगी तो यह समस्या कम होगी. जब व्यक्ति और परिवार यह नहीं जानते कि व्यक्ति की दिक्कतें किसी बीमारी के कारण हैं, तो वे रहने का, बातचीत करने का, और मदद करने का तरीका नहीं बदलते और व्यक्ति से उम्मीद की जाती है कि वह एक सामान्य स्वस्थ बुजुुर्ग की तरह अपने सब काम कर पायेगा और बातों को समझ पायेगा. जब यह नहीं होता, तो सभी परेशान हो जाते हैं, और परिवार का माहौल बिगडऩे लगता है. लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं, या दुखी रहते हैं. परन्तु यदि सही समय पर व्यक्ति का निदान हो जाए, तो परिवार वाले भी अपने तरीके बीमारी की समस्याओं के अनुरूप बदल पाते हैं और घर में तनाव कम हो जाता है. देखभाल के सही तरीके सीखना और उपयोग में लाना तभी हो सकता है जब परिवार समझे कि व्यक्ति को अल्जाइमर है और फिर उस के लिए बोलचाल और अन्य तरीके बदले. शुरू की अवस्था में निदान हो जाए तो सालों का तनाव बच सकता है. इन सब कारणों का ख्याल रखते हुए, यही अच्छा है कि परिवार वाले सतर्क रहें, और अगर लक्षण देखें तो डॉक्टर से जांच करा लें.

अल्जाइमर को रोकने के लिए क्या चीजें जरूरी होती हैं
यदि आपको या किसी और को याददाश्त से जुड़ी कोई गंभीर समस्या महसूस होती है तो अपने डॉक्टर से बात करें। वे आपकी समस्या का उपचार कर सकते हैं या फिर किसी न्यूरोलॉजिस्ट के पास जाने की सलाह दे सकते हैं। जो लोग अल्जाइमर से हैं पीडि़त हैं उन्हें समस्या को आगे बढऩे से रोकने के लिए पहले से ही कदम उठाने चाहिए। इसके तहत रक्तचाप को नियंत्रित करना, कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज के उच्च स्तर को नियंत्रित करना और उसका इलाज करना और धूम्रपान से परहेज करने जैसे उपाय शामिल हैं। परिवार के सदस्य और दोस्त अल्जाइमर के शुरुआती लक्षणों में उनके रोजमर्रा के कार्यों को व्यवस्थित करके, शारीरिक गतिविधियों में व्यस्त रखकर और लोगों से मेलजोल बढ़ाकर उनकी मदद कर सकते हैं। अल्जाइमर के मरीजों को उनके जीवन से जुड़ी जानकारियां जैसे दिन या तारीख, कहां रहते हैं, और घर या दुनिया में क्या-क्या घटनाएं हो रही हैं उससे अवगत कराते रहना चाहिए।

 

 


डॉ. जयदीप बंसल, एच ओ डी, सीनियर कंसल्टेंट, न्यूरोलॉजी, सरोज सुपरस्पेशेलिटी हॉस्पिटल

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