अनकही ( एक छोटी कहानी)

सतीश झा

हौज़ खास में जब आप प्रवेश करते है तो पेड़ के झुरमुटों पर बैठे चिड़ियों की कलरव ध्वनि आपका ध्यान भंग करती है। इसके बायीं ओर एक बहुत ही बड़ा पेड़ पौधों से आच्छादित पार्क है जहां दिल्ली के बच्चे कुछ हसीन पल बिताने आते रहते हैं। खैर, मै कह रहा था कि हौज़ खास में घुसते ही बड़ी बड़ी कोठियां एक कतार में बनी हुई है लेकिन सभी अमतलास के पौधों से ढकी हुई प्रतीत होती है, या हम कह सकते है कि प्रकृति ने हौज़ खास पर कुछ ज्यादा ही कृपा बरसायी है। तो जनाब इसी कोठियों के बीच अवस्थित है कोठी नम्बर -119. पीले रंग की यह एक मात्र कोठी है, लगता है इसमें रहने वालो को इस रंग से कुछ ज्यादा ही लगाव है, और इस कोठी से सामने वाले पार्क का नजारा स्पष्ट नजर आता है।

समीर जो कि जेएनयू का एक होनहार छात्र है रोज पार्क में बैठकर इसी कोठी को पता नहीं क्यो निहारा करता है। और आज जबकि आकाश मे काले काले बादल छाये हुये हैं, बुंदा बुंदी भी शुरू हो गयी है तब भी समीर पार्क में एक पेड़ पर पीठ टिकाये वही एकटक निहारें जा रहा है। तभी आकाश में बिजली कड़कड़ाती है और पीली कोठी के छत पर प्रकट होती है एक लड़की। हिन्दू काॅलेज की यह छात्रा इस घर की इकलौती है, और छत पर जब अपने खुले बालों के साथ ये आती है तो लगता है आज की यह आंधी अपने साथ इसके बालों को भी उड़ा ले जायेगी।

तो अब समझ मे आया कि पिछले एक साल से समीर इस पार्क मे क्यो आ रहा है? इक्कीस वर्षीय रीचा देखने में ऐसी लग रही है जैसे भगवान ने फुर्सत में एक जीवित मूर्ति बनाई हो, रीचा मुंह से कम और आंखों से ज्यादा बोलती है।

दो साल कब बीत गयें समीर को पता भी नही चला, लेकिन मजाल कि समीर ने एक दिन भी पार्क में बैठकर उस कोठी को निहारने में नागा किया हो। आज तारिख है पच्चीस दिसम्बर , शाम के छ: बजने को है थोड़ा थोड़ा धुंधलका भी छा रहा है और समीर अभी भी पार्क में बैठा एकटक उस कोठी को निहारे जा रहा है, लेकिन यह क्या आज इस कोठी में कुछ ज्यादा ही चहल पहल नजर आ रही है, और सजावट भी की गई है। तभी समीर के कानों में शहनाई की आवाज सुनाई पड़ती है, और एक आदमी जोर से चिल्लाता है ” रीचा की बारात आ गई”।
समीर उठता है, लड़खड़ाता है, गिरता है, फिर उठता है और धीमें कदमों से चल देता है दूर, कहीं दूर, बहुत दूर………………।

Leave a Reply

Your email address will not be published.