Assam Assembly Election 2021 : असम में आत्मविश्वास से लबरेज है भाजपा

कृष्णमोहन झा

 

चुनाव आयोग ने देश के जिन पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कार्यक्रम की गत माह घोषणा की थी उनमें से केवल असम में ही ‌पिछले पांच सालों से सत्ता की बागडोर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पास ‌रही है। शेष चार राज्यों में से पश्चिम बंगाल ,केरल और तमिलनाडु में उसे कभी सत्ता का स्वाद चखने का अवसर नहीं मिला और पांडिचेरी में दो माह पूर्व कांग्रेस (Congress)पार्टी के कुछ विधायकों के भाजपा में शामिल हो जाने से वह सत्ता में आने में सफल हो गई थी। भाजपा यह मान कर चल रही है कि इस बार भी केरल और तमिलनाडु में उसे सत्ता में आने की बहुत अधिक उम्मीद नहीं करना चाहिए है। पश्चिम बंगाल में पहली बार सत्ता में आने के लिए उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है और उसे अपना यह सुनहरा स्वप्न साकार होने का पूरा भरोसा है। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में यद्यपि किसी विधानसभा चुनाव में उसकी सीटें दहाई के अंक तक भी नहीं पहुंची परंतु वहां इस बार वह न केवल बहुमत हासिल कर लेने बल्कि विधानसभा की 294 सीटों में से 200 से अधिक सीटों पर विजयी होने के प्रति आश्वस्त नजर रही है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि कि अगर वह इन‌ विधानसभा चुनावों में राज्य में एक दशक से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस से सत्ता ‌की बागडोर छीनने में सफल हो ‌जाती है ‌तो यह उसकी ऐतिहासिक उपलब्धि होगी उधर पांडिचेरी में सत्ता में लौटने के लिए उसे अन्ना द्रमुक का साथ मिल सकता है।
असम में पांच सालों से सत्तारूढ़ भाजपा राज्य विधानसभा के इन चुनावों में भी बहुमत हासिल कर लेने के प्रति पहले से ही आशान्वित नजर आ रही थी इसीलिए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल उसके लिए प्राथमिकता क्रम में सबसे ऊपर था। राज्य में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस स्थिति का चुनावी लाभ लेने की मंशा से असम में अपने चुनाव अभियान में ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया था।इन चुनावों में वह यह मान कर चल रही थी कि असम में दूसरे दलों के साथ गठबंधन करके उसने भाजपा को कड़ी टक्कर देने की ताकत जुटा ली है। असम विधानसभा ‌के इन चुनावों में दर असल दो‌ गठबंधनों ‌के बीच मुकाबला हुआ। एक गठबंधन का नेतृत्व सत्तारूढ़ भाजपा कर रही थी जबकि उसे टक्कर देने के लिए बने 6 विपक्षी दलों के महागठबंधन की मुखिया कांग्रेस पार्टी थी। भाजपा के साथ असम गण परिषद, यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल पार्टी थीं जबकि कांग्रेस के नेतृत्व में बने महागठबंधन में एआईयूडीएफ, सीपीआई, सीपीएम, सीपीएम एम एल तथा क्षेत्रीय आंचलिक गणमोर्चा शामिल थे। 6 विपक्षी दलों के एकजुट हो जाने से भाजपा के लिए कई चुनाव क्षेत्रों में नजदीकी मुकाबले की स्थिति अवश्य बनी परंतु मतदान के तीनों चरण संपन्न हो जाने के बाद भाजपा का यह विश्वास बरकरार है कि राज्य के मतदाताओं ने लगातार दूसरी बार उसे ही सत्ता की बागडोर सौंपने का मन तो चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के पहले ही बना लिया था। गौरतलब है कि 126सदस्यीय असम विधानसभा के लिए पांच साल पहले संपन्न चुनावों में भाजपा को 60, कांग्रेस को 26,आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को,13असम गण परिषद को 14, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थी। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि 2016में संपन्न असम विधानसभा के चुनावों में भाजपा ने 89 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे जबकि कांग्रेस ने 122 सीटों पर किस्मत आजमाई थी। उन चुनावों के बाद भाजपा को पहली बार यहां सरकार बनाने का मौका मिला था और सर्वानंद सोनोवाल को पार्टी ने मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपी थी।यह चुनाव भी पार्टी ने सोनोवाल के ही नेतृत्व में लड़ा और उसे पूरा भरोसा है कि इन चुनावों में उसे 2016 से अधिक सीटों पर जीत हासिल होगी।
असम विधानसभा के इन चुनावों में तीन चरणों में मतदान संपन्न हुआ। प्रथम चरण में 27 मार्च को12 जिलोंकी 47सीटों के लिए मतदान कराया गया जबकि 1अप्रैल को दूसरे चरण के मतदान में 13जिलों की 39 सीटों के लिए वोट डाले गए।मतदान के तीसरे और अंतिम चरण में 40 सीटों के मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। मतगणना के लिए आगामी 2 मई की तारीख तय की गई है। मतदान के तीनों चरणों में मतदाताओं में अपने लोकतांत्रिक अधिकार के प्रयोग हेतु भारी उत्साह दिखाई दिया। पहले चरण के मतदान में जिन 47 सीटों के उम्मीदवारों ने भाग्य
आजमाया उनमें से 34 सीटें उत्तरी असम में आती हैं जहां नागरिकता संशोधन कानून के प्रति मतदाताओं में काफी असंतोष देखा गया था।शेष 13 सीटें मध्य असम का हिस्सा हैं । इन सीटों में चाय बागानों में मजदूरी करके रोजी-रोटी कमाने वाले मतदाताओं की बहुलता है इसलिए भाजपा और कांग्रेस ,दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने यहां चाय श्रमिकों के दिल जीतने की कोशिशों में कोई कसर नहीं छोड़ी। गौरतलब है कि विपक्षी महागठबंधन की मुखिया कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपनी पार्टी के चुनाव अभियान के दौरान चाय श्रमिकों के साथ बागानों में जाकर चाय पत्ती तोड़ते हुए ‌भी कुछ समय गुज़ारा था। इसी तरह पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी चाय श्रमिकों के साथ भोजन करके यही साबित करने की कोशिश की कि कांग्रेस पार्टी उनकी सबसे बड़ी हितैषी है। उधर सोनोवाल सरकार चुनाव के पूर्व चाय श्रमिकों की दैनिक मजदूरी में वृद्धि की घोषणा कर के उनके असंतोष को काफी हद तक पहले ही दूर कर चुकी थी। नागरिकता संशोधन कानून के प्रति उत्तरी असम के मतदाताओं के असंतोष को वोट में तब्दील करने की मंशा से कांग्रेस ने यह आश्वासन भी दे डाला कि विपक्षी महागठबंधन के सत्ता में आने पर असम में नागरिकता संशोधन कानून लागू नहीं होने देगी। गौरतलब है कि 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा नीत गठबंधन ने उक्त 47 सीटों में से 35सीटों पर विजय हासिल की थी जबकि कांग्रेस के खाते में मात्र 9 सीटें आईं थीं। राज्य के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल का माजुली चुनाव क्षेत्र भी इन्हीं 47 सीटों में शामिल है। चाय श्रमिकों की दैनिक मजदूरी और नागरिकता संशोधन कानून , इन‌ ‌दो‌ मुद्दों के प्रभाव से ये चुनाव भी बच नहीं पाए। भाजपा का मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर मतदाताओं में जो थोड़ा बहुत असंतोष था उसे दूर करने में वह सफल रही ‌है।
असम के दूसरे और तीसरे चरण के मतदान के पश्चात् दोनों गठबंधन अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं परंतु भाजपा नीत गठबंधन का पलड़ा भारी दिखाई पड़ रहा है । भाजपा 2016में भाजपा की सहयोगी पार्टी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के इस बार विपक्ष के साथ होने से भाजपा के लिए शुरू में असहज स्थिति अवश्य निर्मित हो गई थी परंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तथा अनेक वरिष्ठ नेताओं की रैलियों ने यहां भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रंजीत दास दावे के साथ कहते हैं कि मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के नेतृत्व में राज्य में गत पांच सालों में जो उल्लेखनीय विकास कार्य हुए हैं उनके कारण भाजपा में राज्य की जनता का भरोसा और मजबूत हुआ है इसलिए मतदाता तो पहले ही भाजपा को लगातार दूसरी बार सत्ता सौंपने का मन बना चुके थे। दूसरी ओर सात दलों के महागठबंधन की मुखिया कांग्रेस पार्टी को इन चुनावों में आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का साथ मिल जाने से वह प्रफुल्लित नजर आ रही है। इस फ्रंट के मुखिया मौलाना बदरुद्दीन अजमल का राज्य के मुस्लिम मतदाताओं पर अच्छा प्रभाव बताया जाता है। राज्य की3.6करोड आबादी में लगभग 34 प्रतिशत मुसलमान हैं।इस तरह 126 सदस्यीय विधानसभा में 33 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं। आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का गठन होने के पहले तक चुनावों में कांग्रेस को बंगाली मुसलमानों का जो समर्थन मिलता था उसकी उसे सत्ता की दहलीज तक पहुंचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती थी आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का गठन ‌होनेेके बाद बंगाली मुसलमानों के वोो बैंक पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती चली गई। इन चुनावों में कांग्रेस आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट केे साथ जो गठजोड़ हुआ उसे लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि बदरुद्दीनअजमल कांग्रेस की पहचान हो सकते हैं ,असम की नहीं। कुल मिलाकर असम के विधानसभा चुनाव हेतु मतदान के तीनों चरण संपन्न हो जाने के बाद भाजपा नीत गठबंधन आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई दे रहा है और कांग्रेस नीत महागठबंधन( महाजोत )
इस उम्मीद में खुश हो रहा है कि 2 मई को होने वाली मतगणना उसे सत्ता की दहलीज तक पहुंचा सकती है लेकिन इसमें दो राय नहीं हो सकती कि मतों का समीकरण भाजपा के पक्ष में है।

(लेखक ifwj के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)

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