जागरूक जनता और आपका थोपा गया कानून…

निशिकांत ठाकुर

नव वर्ष 2020 में दुनिया ने प्रवेश किया। हमारा देश प्रगति की बुलंदियों पर है। लेकिन, आज हमें बार-बार सागर के ज्वार के भयंकर गर्जन और टिटहरी की कर्कश ध्वनि का आभास हो रहा है। क्यों हो रहा है ऐसा? अपने मन से कई बार पूछा, लेकिन संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पा रहा है। इसलिए अपने दिग्भ्रम को आपके संज्ञान में लाने का मन होता है। विचार-विमर्श करने का मन होता है, लेकिन निर्णय लेने का प्रयास सार्थक नहीं हो पा रहा। मेरी निजी समस्या सामाजिक, आर्थिक, बेरोज़गारी आदि हो सकती है, लेकिन मूल चिंता आज देश की अधिकांश जनता से जुड़ी है। फिलहाल लोग हंसेंगे, व्यंग्य करेंगे और अनाप-शनाप बातों से मूल और ज्वलंत मुद्दों से भटकाने का प्रयास करेंगे। और, यह भी कह सकते हैं कि इसकी चिंता करने के लिए केवल हम ही हैं, आप ही हैं। नहीं, पूरे देश के लोग चिंतित हैं और उनका चिंतित होना स्वाभाविक भी है। हमारे आगे बढ़ने के समय में यह क्या व्यवधान आ गया? यह तो सत्य है कि आज कोई भी चिंता मुक्त नहीं है, क्योंकि कहा भी गया है कि जो अज्ञानी है, वही सुखी है। जिसे स्वयं के साथ-साथ राज्य और देश की समस्या से कोई लेना-देना नहीं है, केवल वही सुखी है।
अभी सत्तारूढ़ दल इस मुहिम पर कार्यरत है कि जनता को विपक्षी गुमराह कर रहे हैं। कांग्रेस और तथाकथित विपक्षी राजनीतिज्ञ धर्मनिरपेक्ष भारत की छवि को धूमिल कर रहे हैं। उन्हें समझना है। वह एक साथ समझा भी रहे हैं, लेकिन जनता का यह मानना है कि उन्हें डराया-धमकाया जा रहा है और सत्ता का दुरुपयोग करके हिंदू धर्म को जबरन थोपने एवं स्थापित करने के लिए एक विशेष धर्म/जाति को उपेक्षित किया जा रहा है। क्या वाकई ऐसा नहीं है? ऐसा क्यों किया गया कि केवल तीन देश के शरणार्थियों को ही भारत की नागरिकता दी जाएगी, जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान हैं। यदि शरण ही देते हैं तो श्रीलंका तथा कई और देश में भी तो अल्पसंख्यक हैं और वह प्रताड़ित अपने ही देश ही रहे हैं। यदि शरण ही देनी है, तो अपने ही देश में कश्मीरी पंडितों को वहां अपने स्वस्थान पर उनकी सुरक्षा की गारंटी सरकार को लेनी ही चाहिए। फिर सत्तारूढ़ दल यह कहते हैं कि यह कानून तो आजादी के बाद से ही बन जाना था। इसका अर्थ तो यह हुआ कि यदि बात जनता को बहलाने की हो तो उसमें कांग्रेस को डालकर मुद्दों से भटकाया जाए। भाई, यदि पिछली कांग्रेस शासन द्वारा सफल नहीं हुए कार्यों को उनके ऊपर छोड़ते है, उनके सिर पर ठीकरा फोड़ते हैं, तो उनके सफल कार्यों की भी तो कभी चर्चा कर लें। जब देश आजाद हुआ था, उन दिनों देश सूई बनाने की स्थिति में भी नहीं था। लेकिन, आजादी के बाद से आज तक ढेरों कार्य जनता के हित में किए गए हैं। यदि नींव मजबूत हो तो भवन दीर्घकाल तक टिकाऊ होता है।
पहले तो भारत को मुगलों ने खूब लूटा… जी भर के लोगों को परेशान किया, लेकिन समय ने अपना आवरण बदला और वह भारत के ही होकर रह गए। फिर बारी आई अंग्रेजों की। भारत जैसे समृद्ध देश की धन-संपदा, वैभव और खुशहाली की जानकारी जब अंग्रेजों के कानों में पहुंची तो उनकी लोलुप दृष्टि भारत की ओर गई और उसका आवारा और शासित प्रकृति दृष्टि 17वीं शताब्दी के आरंभ में उन्हें भारत तक खींच लाई। 100 वर्ष तक वे भारत की गलियों में कंधों पर झोला लेकर माल बेचते, व्यापार करते और धंधा करते रहे। बंदर की भांति लाल-लाल चेहरे वाले फिरंगी के मुंह से उसके अटपटी भाषण सुनने के लिए बच्चे और स्त्रियां आतुर रहते थे। उनके आने पर उनके कांच के सस्ते सामान की हंसी उड़ती, उन्हें तंग करती थी। अतः उन्होंने भारतीय नरेशों को एक-दूसरे से लड़ा कर इलाके देखने आरंभ कर दिए। इतिहास बताता है की 30 मन हीरे, छह करोड़ रुपये नकद, दो सौ मन सोना और आठ सौ मन चांदी के अतिरिक्त दिल्ली के मुगल शहंशाह का जगत विख्यात तख्त-ओ-ताज भी वहां रखा था, जिसकी कीमत 7.50 करोड़ रुपये होते थे। यह तो एक घटना है भारत को लूटने के, जबकि इसके अतिरिक्त भी कई उदाहरण हैं, जिनके तहत अपार संपदा वाले भारत को खोखला कर दिया गया। अब हमें सोचना यह चाहिए कि इतने बड़े देश, जो खंड-खंड में विभाजित हो गया था, उसमें एकरूपता लाने में तथा उसके भविष्य की चिंता करने के लिए निश्चित रूप से प्रयास किया गया होगा। भारत 1947 में आजाद हुआ। विद्वतजन ने संविधान भी बनाया। एक नियम-कायदा कानून भी बनाया। लोगों के प्यार के दम पर देश का विकास होने लगा। सच है पं. नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद, संविधान विशेषज्ञ डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने उस स्थिति में देश को एकजुट किया और भारत का विकास शुरू हो गया। उस समय यदि इस कानून को लागू करने की बात की गई होती, तो फिर उसके बरसों बाद तक कांग्रेस की ही सरकार रही। यह जानकर कि क्या कानून ठीक है? हमारी जनता की परेशानी कम होगी? पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए नागरिकों के एक वर्ग विशेष को छोड़कर भारतीय नागरिकता देंगे, तो तब से अब तक क्यों नहीं दिया गया? निश्चित रूप से उस समय के राजनीतिक पंडित इस बात को समझ गए थे कि यह कानून देशहित में नहीं है और पर्याप्त बहुमत के बाद भी इन दोनों तथाकथित कानून को लागू नहीं किया।
अब रही आज के नेताओं के बात। गृहमंत्री संसद में कुछ कहते हैं और प्रधानमंत्री सार्वजनिक मंच से उसे नकारते हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? यह दोहरा मापदंड क्यों अपनाया जा रहा है? हम स्पष्ट रूप से जनता का मनोविश्लेषण क्यों नहीं कर सके और यदि नहीं किए तो इसका अर्थ यही होता है कि आप सर्वोच्च कुर्सी पर बैठकर जो कानून बनाएंगे, वह चाहे जनहित का हो या नहीं, जनता को मजबूरन मानना पड़ेगा। क्या आप सचमुच इतने जन हितकारी हैं, जो 130 करोड़ जनता की बातों को नकारते हुए आप अपने बहुमत से कोई नियम बना देंगे? आप कृपया इस कानून और नियम को फिर से परखिए… जांचिए और यदि लागू यदि इसे लागू ही करना है तो उसे स्पष्ट करें कि किस कारण से इसे लागू करना इतना आवश्यक हो गया है। यदि ऐसा नहीं होता है, तो देश में जो सन्नाटा और भय का माहौल व्याप्त है, वह कानून लाठियों अथवा गोलीबारी से शांत होने वाला नहीं है। कृपया नियम पर फिर से गौर से विचार कीजिए और देश की बेकार हो रही स्थिति को सुधारिए। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो साक्षर जनता अब अपना हित-अहित जानने-समझने लगी है, वह आप को सत्ता से हटाने में भी तनिक भी देर नहीं करेगी।
(नोट : इस लेख में आचार्य चतुरसेन के उपन्यास ‘खून और सोना’ भाग 2 एवं शिवाजी सामंत की पुस्तक ‘ यूगंधर’ से कुछ तथ्य साभार लिए गए हैं।)

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