106 साल का हुआ बिहार

आज बिहार को अलग हुए पूरे 106 साल हो गये हैं. लोग उत्साह और जोश में डूबे हैं. इन जोश और खरोश में बिहार के विभाजन के सही अर्थ को समझने के लिए हमें इतिहास के उन पन्नों से रू-ब-रू होने की जरूरत है, जिनको याद करने का मतलब अतीत से ग्रस्त होना नहीं, बल्कि उसके गौरव से प्रेरणा लेने और उसे आवश्यक व उपयोगी मान कर प्रासंगिक बनाने और अंतत: चरितार्थ करने से है.

धनंजय गिरि

नई दिल्ली. विश्व में गणतंत्र की परिभाषा देने वाला बिहार, आज अपना 106वां स्थापना दिवस मना रहा है. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने बिहार वासियों को शुभकामनाएं दी हैं. पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा है, ‘बिहार दिवस के अवसर पर भाइयों और बहनों को शुभकामनाएं. इतिहास से लेकर अब तक, देश की प्रगति में बिहार का योगदान अभूतपूर्व रहा है.’ पीएम के शुभकामना संदेश पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा, ‘बिहार दिवस के अवसर पर बिहारवासियों को शुभकामनाएं देने हेतु माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद.’ उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भी बिहारवासियों को बिहार दिवस की शुभकामनाएं दी हैं. उपराष्ट्रपति बिहार दिवस के मौके पर पटना के गांधी मैदान में होने वाले राज्य समारोह में भी शिरकत करेंगे. उन्होंने अपने आधिकारिक टि्वटर हैंडल पर लिखा है, ‘समस्त बिहारवासियों को मैं बिहार दिवस की शुभकामनाएं देता हूं. इस अवसर पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में उपस्थित होकर चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी के समापन समारोह में भाग लेते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है.’ बिहार के स्थापना दिवस को लेकर देशभर के विभिन्न दलों के नेताओं ने बिहारवासियों को शुभकामनाएं दी हैं. वहीं, बिहार के भी विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने भी प्रदेश के नागरिकों को बिहार दिवस की बधाइयां देते हुए अपने-अपने टि्वटर हैंडल पर पोस्ट किए हैं. बिहार एक ऐसा राज्य है जिसका अतीत अत्यंत गौरवशाली रहा है. जहां तक बिहार के राजनीतिक इतिहास का प्रश्न है, यह सर्वविदित है कि प्राचीन भारत के इतिहास में बिहार ने जो भूमिका निभाई उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. कभी मगध, वैशाली, मिथिला, विदेह, अजीमाबाद एवं अंग राज्यों के रूप में देश-विदेशों में प्रसिद्धि पाने वाला, नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व में ज्ञान की मशाल जलाने वाला तथा बौद्ध एवं जैन धर्मो का प्रणेता बनकर विश्व गुरु कहलाने वाला भूभाग बिहार. 22 मार्च 1913 को बिहार पूर्णरूपेण राज्य के रूप में काम शुरू किया. इसलिए 22 मार्च को बिहार दिवस मनाया जाता है. 1913 में पटना सचिवालय की नींव पड़ी तथा 1916 से पटना उच्च न्यायालय कार्य करने लगा. 1917 में पटना विश्वविद्यालय काम करने लगा, जिसे भारत का 7 वां सबसे पुराना तथा बिहार का पहला विश्वविद्यालय कहलाने का हक है. हम इससे कभी इनकार नहीं कर सकते कि आज भी बिहार आधुनिक भारत के मानचित्र पर अहम स्थान बनाये हुए है.

बिहार के इतिहास के बगैर भारत का इतिहास अधूरा

बिहार के इतिहास के बगैर भारत का इतिहास अधूरा है. बिहार के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने, उन्हें संरक्षित करने की जरूरत है, ताकि परंपरा को प्रगति से जोड़ कर इतिहास को आगे ले जाया जा सके. आखिर इतिहास सिर्फ पढ़ने नहीं, बल्कि समाज को समझने और उसे बदलने का भी उपकरण है. अपने अतीत को जानना इसलिए जरूरी है कि इससे हमें गौरव बोध होता है और भविष्य गढ़ने में मदद मिलती है. गौरवशाली इतिहास हमें प्रेरणा देता है, तो कोई काल खंड गलतियां न दोहराने का सबक भी देता है.

लंबे समय तक भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है बिहार

बिहार लंबे समय तक भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है. इसी तरह बिहार पुरातन काल से सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है. महात्मा बुद्ध के काल से यदि शुरू किया जाये, तो उस समय हर्यक वंश का शासन था. बिम्बिसार इस वंश के राजा थे. उनके पुत्र अजातशत्रु ने अपने शासन का विस्तार भारत के बड़े भू-भाग पर किया. इसके बाद नंद वंश का शासन रहा. अधिकतर क्षेत्र में उसका शासन रहा. फिर मौर्य वंश का शासन आया. इसके राजा चंद्रगुप्त ने अपने गुरु कौटिल्य के साथ मिल कर शासन का विस्तार किया. गुप्त वंश के शासन में समृद्धि आयी.
इसी तरह उत्तर वैदिक काल में जायें, तो वैदिक साहित्य, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद, महाकाव्य आदि की रचनाएं बिहार में ही हुई. मिथिला के राजा का दरबार काफी समय तक पूरे भारत की सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा. वहां दार्शनिक शास्त्रार्थ और ज्ञान प्राप्ति के लिए आते थे. इसके प्रमाण प्राचीन साहित्य में भरे पड़े हैं. मिथिला के जनकवंशी अंतिम राजा के समय लोकतंत्र की स्थापना हुई थी, जो दुनिया का सबसे पुरानी गणतांत्रिक शासन पद्धति थी.

नालंदा विश्वविद्यालय जैसे विश्व धरोहर

यहां नालंदा विश्वविद्यालय और बिक्रमशिला महाविहार उच्च कोटि के शिक्षण संस्थान थे. यहां देश-विदेश के विद्यार्थी धर्म, विज्ञान, दर्शन आदि की शिक्षा ग्रहण करने आते थे. इनके बारे में उपलब्ध प्रमाण बताते हैं कि हमारे पुरखों ने इनके निर्माण में कितना अथक प्रयास किया होगा. गुप्तकाल के दौरान बिहार में नालंदा विश्व-विद्यालय विश्वभर में अपनी अकादमिक साख के लिए प्रसिद्ध था. यहां पढ़ने के लिए दुनियाभर से छात्र आते थे. बाद में मुसलिम शासकों के आक्रमणों ने नालंदा को तहस-नहस कर दिया. आज भी इसके खंडहर बिहार में मौजूद हैं.

बिहार से जुड़ी है बौद्ध धर्म की जड़े

बिहार वह ऐतिहासिक जगह है जहां भगवान बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ. दुनियाभर में अपनी पैठ बना चुके बुद्ध धर्म की जड़े बिहार के बौद्ध गया से जुड़ी हैं. यही नहीं जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर का जन्म राजधानी पटना के दक्षिण-पश्चिम में स्थित पावापुरी कस्बे में हुआ और उन्हें निर्वाण भी बिहार की धरती पर ही प्राप्त हुआ था.

समाट अशोक ने भी बिहार की धरती पर किया राज

अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य (चाणक्य) का जीवन भी बिहार की धरती पर ही व्यतीत हुआ. चाणक्य मगध के राजा चंद्रगुप्ता मौर्य के सलाहकार थे. 302 ईसा पूर्व यूनान के महान सम्राट एलेक्जेंडर (सिकंदर) का दूत मेगास्थनीज और सेनापति सेल्युकस नेक्टर ने भी मौर्यकालीन पाटलीपुत्र में काफी समय बिताया. 270 ईसा पूर्व अशोक महान ने भी बिहार की धरती पर राज किया. भारत के राष्ट्रीय निशान अशोक स्तंभ है और राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र सम्राट अशोक की ही देन है.

मध्यकालीन इतिहास में बिहार है खास

मुगल काल में दिल्ली सत्ता का केंद्र बन गया, तब बिहार से एक ही शासक शेरशाह सूरी काफी लोकप्रिय हुआ. आधुनिक मध्य-पश्चिम बिहार का सासाराम शेरशाह सूरी का केंद्र था. शेरशाह सूरी को उनके राज्य में हुए सार्वजनिक निर्माण के लिए भी जाना जाता है.

आधुनिक इतिहास में बिहार है खास

ब्रिटिश शासन में बिहार बंगाल प्रांत का हिस्सा था, जिसके शासन की बागडोर कलकत्ता में थी. हालांकि इस दौरान पूरी तरह से बंगाल का दबदबा रहा लेकिन इसके बावजूद बिहार से कुछ ऐसे नाम निकले, जिन्होंने राज्य और देश के गौरव के रूप में अपनी पहचान बनाई. इसी सिलसिले में बिहार के सरन जिले के जिरादेई के रहने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद का नाम आता है. वह भारत के पहले राष्ट्रपति बने.
1912 में बंगाल प्रांत से अलग होने के बाद बिहार और उड़ीसा एक समवेत राज्य बन गए, जिसके बाद भारतीय सरकार के अधिनियम, 1935 के तहत बिहार और उड़ीसा को अलग-अलग राज्य बना दिया गया. 1947 में आजादी के बाद भी एक राज्य के तौर पर बिहार की भौगौलिक सीमाएं ज्यों की त्यों बनी रहीं. इसके बाद 1956 में भाषाई आधार पर बिहार के पुरुलिया जिले का कुछ हिस्सा पश्चिम बंगाल में जोड़ दिया गया.

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक सरोकार से जुडे हैं।)

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