नई दिल्ली / टीम डिजिटल। चंद्रयान का चांद तक पहुंचने और नयी जानकारियां देने का हम भारतवासियों का सपना टूट गया । बस । दो चार हाथ दूर रह गया सपना । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस ऐतिहासिक क्षण पर मौजूद थे लेकिन असफल रहने पर रोते इसरो अध्यक्ष को थपथपाया । ढाढस बंधाया । गाना याद आ गया –
चलो दिलदिर चलो , चांद के पार चलो ।
पर हम तो चांद तक ही नहीं उतर पाए तो पार कहां जाते ? कश्मीर की तरह काॅलोनियां काटने के विज्ञापन आने लगते । पर ऐन मौके पर रह गयी सफलता । मोदी जी आश्वासन देकर लौट आए । एक बडी सफलता इनके ताज में लगने से रह गयी ।
दूसरी ओर रवीश कुमार को कल मैग्सेसे पुरस्कार मिला और उन्होंने चंद्रयान से ही बात शुरू की कि कहां तो हम चांद तक पहुंचने वाले हैं और कहां हमारे पांव और पत्रकारिता कीचड में धंस चुकी है ।
बहुत लम्बे धन्यवाद भाषण में नागरिक पत्रकारिता की वकालत की यानी हर नागरिक जहां है वहीं सजग सचेत रहे तब जाकर हमारे लोकतंत्र की रक्षा हो पायेगी । रवीश कुमार को बहुत बहुत बधाई । पत्रकार के स्वाभिमान की परचम लहराये रखने के लिए । सोशल मीडिया पर भी सरकार नजर रखनी शुरू कर चुकी है ।
एक अखबार ने काॅर्टून दिया है । ऊपर चंद्रयान और नीचे पी चिदम्बरम जेल की सलाखों के पीछे । यह दो दृश्य हैं आज देश के । एक तरफ चांद तक पहुंचने की तमन्ना और प्रयास तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल की सलाखों के पीछे देश का पूर्व वित्त व गृह मंत्री । दोनों की पराकाष्ठा है । किस ओर जायें ?