बड़ो का कोविड अनुरूप व्यवहार बच्चों को रखेगा कोविड से सुरक्षित : डॉ. राकेश लोढ़ा

डॉ. राकेश लोढ़ा, प्रोफेसर और इंचार्ज, पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट, पीडियाट्रिक्स विभाग, एम्स नई दिल्ली, बता रहे हैं कि कोविड19 ने बच्चों को किस तरह प्रभावित किया है, प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

ऐसा कहा जा रहा है कि कोविड की दूसरी लहर में बच्चों को अधिक प्रभावित किया है? क्या यह सही है?

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में कोविड के मरीजों की संख्या में काफी वृद्धि देखी गई, यही वजह है कि इस दौरान कोविड पॉजिटिव बच्चों की संख्या भी अधिक देखी गई। कोविड की पहली लहर के आंकड़ों को अगर देखें तो पाएगें कि कुल पॉजिटव कोविड मरीजों में 11 से 12 प्रतिशत मरीजों की उम्र बीस साल से कम थी। कोविड19 की दूसरी लहर में इस अनुपात में अधिक बदलाव नहीं देखा गया। इसलिए बच्चों पर कोविड का प्रभाव अधिक नहीं रहा, लेकिन ऐसा भी नहीं कि भविष्य की लहरों में बच्चे इससे अधिक या कम गंभीर  रूप से प्रभावित होगे। उपलब्ध आंकड़े यह भी बताते हैं कि जिन बच्चों को कोविड पॉजिटिव देख गया उनमें पांच प्रतिशत बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत हुई, और जिन बच्चों  को अस्पताल में भर्ती किया गया उनको पहले से ही क्रानिक किडनी, क्र्रानिक फेफड़े, लिवर, मेलिगनेंसी और हेमेटोलॉजी संबंधी परेशानियां  थीं। यह देखा गया है कि बच्चे जब संक्रमण की चपेट में आते हैं तो वह संक्रमित तो होते हैं लेकिन बड़ों के एवज में उनमें कोविड के लक्षण बहुत हल्के होते हैं या वह ए सिम्पमेटिक होते हैं। बच्चों में कोविड संक्रमण कम गंभीर होता है।
ध्यान देने वाली बात केवल यह है कि बच्चों में पोस्ट कोविड समस्याएं गंभीर रूप ले सकती हैं, जिसे मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम या एमआईएस सी कहा जाता है। देखा गया कि जब बच्चों में कोविड पॉजिटिव की संख्या बढ़ी, इसी दौरान एमआईएस सी केस भी बढ़ गए, हल्के लक्षण वाले कोविड पॉजिटिव बच्चों की आरटीपीसीआर जांच नेगेटिव देखी गई, लेकिन इनमें कोविड की एंटीबॉडी पाई गईं, इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि हमें भविष्य में एमआईएस के अधिक मामलों के इलाज के लिए तैयार होना पड़ेगा।

क्या आप एमआईएस को अधिक विस्तृत रूप से समझा सकते हैं? कोविड पॉजिटिव बच्चों में एमआईएस-सी के कितने मामले देखे गए?

यह एक प्रतिरक्षाविज्ञानी रूप में मध्यस्थता वाली स्थिति है, जो एक साथ कई अंगों को जैसे दिल, लिवर, किडनी आदि को प्रभावित कर सकती है। इसमें  तेज बुखार, त्वचा पर चकत्ते, कंजेक्टिवाइटिस, आंखों के अन्य संक्रमण, गंभीर पेट का दर्द आदि लक्षण होते हैं। एमआईएस सी की जांच करने का एक विस्तृत मानदंड या क्राइटेरिया है। यह बच्चों के एक समूह में जानलेवा हो सकता है, खासकर उन बच्चों में जिनमें यह दिल को प्रभावित करता है, लेकिन यदि समय पर इसकी पहचान या जांच कर ली जाए तो एमआईएस सी का बेहतर इलाज किया जा सकता है।
नौ से दस साल के आयु वर्ग के बच्चे एमआईएससी से अधिक प्रभावित हुए हैं हालांकि इससे अधिक उम्र के बच्चों को भी एमआईएससी प्रभावित कर सकता है। देश के पूर्वी क्षेत्र में कोविड पॉजिटिव एक हजार बच्चों में एक को एमआईएस-सी सिंड्रोम का शिकार पाया गया।

कोविड 19 पॉजिटिव बच्चों का इलाज हम किस तरह करते हैं?

हल्के लक्षण और ए सिम्पमेटिक कोविड पॉजिटिव बच्चों का घर पर ही इलाज किया जाता है। इन बच्चों के लिए हम किसी तरह की दवा की सलाह नहीं देते हैं, लेकिन ऐसा जरूर कहा जाता है कि इन बच्चों को तुरंत आइसोलेट करके इनकी निगरानी करनी चाहिए। घर के किसी एक सदस्य को बच्चे की एहतियात के साथ देखभाल करनी चाहिए, और बच्चे की देखभाल करने वाले सदस्य को भी आइसोलेशन में रहना चाहिए। थोड़े गंभीर मामले में बुखार और बदन दर्द जैसी शिकायत के लिए पारंपरिक इलाज दिया जाना चाहिए, बच्चे का इलाज एक कुशल चिकित्सक की निगरानी में किया जाना चाहिए, इसके लिए टेलीमेडिसिन की सहायता ली जा सकती है। केवल कुछ बच्चों में जिनमें कोविड के गंभीर या अंडरलाइन बीमारी दिखे उनको अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत हो सकती है। हालांकि मध्यम से गंभीर लक्षण वाले कोविड पॉजिटिव बच्चों को अस्पताल और सहायक चिकित्सा देखभाल की जरूरत होती है जैसे कि ऑक्सीजन थेरेपी, रेस्पेरेटरी सपोर्ट और कुछ बच्चों को स्टेरॉयड की भी दी जा सकती है।

क्या देश में पर्याप्त संख्या में पीडियाट्रिक केयर यूनिट हैं, जिससे कि अधिक संख्या में कोविड पॉजिटिव देखे गए बच्चों का इलाज किया जा सके?

देश में पर्याप्त संख्या में पीडियाट्रिक कोविड आईसीयू हैं, लेकिन पीडियाट्रिक बीमारियों के लिए देश में प्रशिक्षित चिकित्कों की कमी है। देशभर में संबंधित अधिकारी और विभाग पीडियाट्रिक केयर में जरूरत के आधार पर संसाधनों को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इसके साथ ही इस ओर भी ध्यान देना है कि हम अस्पताल की व्यवस्था कुछ  इस तरह कर सकें छोटे बच्चे यदि कोविड पॉजिटिव हो तो उनके माता पिता उनके साथ अस्पताल में ही रूक सकें। लेकिन इसके साथ ही माता पिता का भी बच्चों को संक्रमण मुक्त रखने के लिए एहतियात के लिए पर्याप्त कोविड अनुरूप व्यवहार जैसे मास्क का प्रयोग आदि का पालन करना होगा।

बच्चों को कोरोना की वैक्सीन देना कितना जरूरी है?

कुछ उपलब्ध टीकों की एंटीबॉडी प्रतिक्रिया का अध्ययन करने के लिए बच्चों में परीक्षण शुरू किया गया है, यह परीक्षण अगल कुछ महीनों में पूरा हो जाएगा। यदि वैक्सीन को पर्याप्त इम्यूनोजेनिक पाया गया तो इन्हें बच्चों में प्रयोग की अनुमति दे दी जाएगी। कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चों में कोविड संक्रमण हो सकता है, लेकिन उन्हें कोविड की गंभीर स्थिति का संक्रमण हो इस बात की संभावना कम होती है। उपलब्ध वैक्सीन कोविड संक्रमण होने पर संक्रमण की गंभीर स्थिति से बचाने में सहायक होती हैं, इसलिए अधिक जोखिम समूह वाले लोगों को वैक्सीन अवश्य लगाना चाहिए, इसके बाद कम जोखिम समूह वाले लोगों को वैक्सीन दिया जाएगा। एक बार जोखिम वाले समूहों को टीकाकरण से सुरक्षित करने के बाद हम बच्चों को कोविड वैक्सीन दे सकते हैं।
जब तक टीकाकरण कवरेज पर्याप्त नहीं हो जाती, इसके साथ ही हमें इस बात का भी ध्यान रखना है कि वैक्सीन लगने के साथ ही हमें कोविड अनुरूप व्यवहार का भी पालन करते रहता है, हमारी यही आदतें बच्चों को कोविड संक्रमण से सुरक्षित रखेगी।

महामारी ने बच्चों  के शारीरिक विकास के साथ ही मानसिक विकास को भी प्रभावित किया है, इसके प्रभाव को कम करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

बिल्कुल सही कहा आपने, महामारी में बच्चों पर कई तरह के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव देखे गए हैं। लेकिन बड़ों के अनुपात में बच्चों पर इसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव बेहद कम है। लेकिन ऐसे कई पहलू हैं जिनका बच्चों पर सीधा प्रभाव पड़ा है। उदाहरण के लिए महामारी की वजह से बीते एक से डेढ़ साल में बहुत से परिवारों की आमदनी या आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है, जिसका असर बच्चों के समग्र विकास, पोषण और शिक्षा पर पड़ा है। स्कूल न खुलने की वजह से बच्चे दोस्तों से नहीं मिल पाए हैं, बच्चों की अपने सहपाठियों के साथ बातचीत सीमित हो गई है, ऐसे में बच्चों को व्यवहार संबंधी कई दिक्कतें हो सकती हैं। इसलिए माता पिता की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह घर पर रहते हुए बच्चों को खुशनुमा माहौल दें, बच्चों को कई तरह की शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें। इसके साथ ही ऐसे बच्चे जिन्होंने महामारी में अपने माता पिता को खो दिया है उन्हें इस समय प्रशासनिक सहायता के साथ ही एक परिवार की और सामाजिक सहायता की भी जरूरत है।

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