हर आंगन तक पहुंचेगी द हिन्दी : तरुण शर्मा


नई दिल्ली/ टीम डिजिटल।  हिन्दी बोलने मात्र से भारत का बोध होता है। विश्व के किसी भी कोने में कोई हिन्दी बोलते और सुनते नजर आएंगे, तो उनका सरोकार भारत से ही होगा। भारतीयता को हिन्दी के माध्यम से वैश्विक स्तर पर पहुंचाने का बीड़ा उठाया है श्री तरुण शर्मा ने। उन्होंने द हिन्दी नाम से एक नया वेबसाइट शुरू किया है। आखिर क्या है उसकी पूरी कहानी, हमने बात की द हिन्दी www.thindi.in के प्रबंध संपादक श्री तरुण शर्मा से। पेश है उस बातचीत के प्रमुख अंशः

 

हाल के कुछ वर्षोें में हिन्दी वेबसाइट का जोर है। आपने द हिन्दी नाम क्यों रखा ?

असल में, हिन्दी बोलने मात्र से भारत का बोध होता है। विश्व के किसी भी कोने में कोई हिन्दी बोलते और सुनते नजर आएंगे, तो उनका सरोकार भारत से ही होगा। हमने पहले की तय कर लिया था कि हम घटना प्रधान खबरों की बात नहीं करेंगे। हम भारतीय सभ्यता, संस्कृति और साहित्य की बात करेंगे। हम अपने लोक की बात करेंगे। घर के बड़े-बुजुर्ग कहा करते हैं कि जो इस लोक की बात नहीं करता, उसका परलोक में भी स्थान नहीं है। इसलिए हमने लोक की बात करने प्रण लिया।

हिन्दी के आगे द क्यों ?

जब हम और आप तकनीकी युग में रहते हैं, तो बहुत सारी चीजें हमें तकनीक की परिधि में ही करना होता है। द लेकिन एक तकनीकी कारण रहा और कुछ नहीं।

हिन्दी के साथ अंगे्रेजी का समावेश क्यों ?

आज हिन्दी वैश्विक पटल पर स्थान बना रही है। हिन्दी भाषियों की बढ़ती संख्या के कारण बाजार ने इसे हाथों-हाथ लिया। बाजार के साथ-साथ सर्च इंजन गूगल ने भी इसे मान दिया है। इससे यह सिद्ध होता है कि हमारी हिन्दी किसी से कम नहीं है। विश्व की तमाम भाषाओं के बीच हमारी हिन्दी समृद्ध है। मैं स्पष्ट कर दूं कि हमारा किसी भी भाषा अथवा उप-भाषा या बोली से  किसी भी प्रकार का दुराव नहीं है। हर भाषा की अपनी संस्कृति है। हम भारतीय परंपराओं, संस्कारों को पूरे विश्व के सामने रखना चाहते हैं। कई देश में आज भी लोग हिन्दी और देवनागरी को नहीं पढ़ सकते। उनके लिए हमने भारतीयता की बात अंग्रेजी में करने का निर्णय लिया है।
हालांकि, मैं इस बात से मनाही नहीं कर रहा हूं कि बाजार के युग में कुछ लोगों में अपनी भाषाओं के प्रति दरिद्रता का बोध है। इसके साथ ही मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि जिस दिन हम अपनी भाषायी दरिद्रता के बोध से बाहर आ जाएंगे, हमारी और आपकी हिन्दी पहले से भी अधिक समृद्ध हो जाएगी। इसे समृद्ध करने और हिन्दी के नए बेटे-बेटियों के लिए हमने एक नया ठिकाना बनाया है ‘द हिन्दी’।

बाजार के हिसाब से लोग अंग्रेजी में काम कर रहे हैं। आप हिन्दी को लेकर आगे बढ़ रहे हैं ?

हिन्दी हमारी मातृभाषा है। मनुष्य की मातृ भाषा उतनी ही महत्व रखती है, जितनी कि उसकी माता और मातृ भूमि रखती है। एक माता जन्म देती है, दूसरी खेलने- कूदने , विचरण करने और सांसारिक जीवन निर्वाह के लिए स्थान देती है। तीसरी, मनोविचारों और मनोगत भावों को दूसरों पर प्रकट करने की शक्ति देकर मनुष्य जीवन को सुखमय बनाती है। सर आइजेक पिटमैन ने कहा है कि संसार में यदि कोई सर्वांग पूर्ण लिपि है, तो वह देवनागरी है। विदेशी भाषा के माध्यम से पढ़ाई, अनुसंधान, पुस्तकें आदि आधुनिकता के भी विरूद्ध है, क्योंकि आधुनिक-ज्ञान, समाज के सभी वर्गो तक अपनी भाषा में ही पहुंचाया जा सकता है।

आपका लक्ष्य क्या है ? द हिन्दी को कहां तक ले जाएंगे ?

‘द हिन्दी’ के माध्यम से हम हर मोबाइल तक पहुंचने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। चूंकि हम एक ऐसे समय में ‘द हिन्दी’ की बात कर रहे हैं जब अंग्रेजी विश्वभाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है। हालांकि, सत्य यह भी है कि दुनियाभर में लोगों का अपनी भाषा के प्रति रुझान बढ़ा।

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