नई दिल्ली। बाल मित्र दिल्ली बनाने के उद्देश्य से छह महीने तक चलने वाले “मुक्ति कारवां अभियान” को दिल्ली सचिवालय से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया। यह अभियान कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) और दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।
बच्चों के सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखते हुए केएससीएफ और डीसीपीसीआर ने मिलकर यह अभियान चलाने का फैसला किया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के साल 2017 के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में दुर्व्यापार से पीडि़त कुल 490 लोगों का मामला दर्ज हुआ था, जिसमें 89 प्रतिशत बच्चे थे। गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के अनुसार देश की राजधानी में 36,000 बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं।
मुक्ति कारवां अभियान का उद्देश्य समाज को बाल श्रम और बाल दुर्व्यापार के खिलाफ जागरूक करना है और यह सुनिश्चित करना है कि जहां बाल श्रमिक हैं, उन इलाकों में तत्काल कार्रवाई करना है। यह अभियान कानून प्रवर्तन एजेंसियों, जैसे पुलिस महकमों, श्रम विभाग के कर्मियों, सिविल सोसायटी और गैर सरकारी संस्थाओं को बच्चों से संबंधित अपराधों और उनके उन्मूलन की दिशा में एक साथ काम करने के लिए एक प्लेटफॉर्म भी उपलब्ध कराएगा। मुक्ति कारवां बच्चों से संबंधित बुराईयों के खिलाफ जन जागरूकता फैलाएगा। बाल श्रमिकों वाले इलाकों की पहचान करेगा और उन्हें मुक्त कराने का प्रयास करेगा। टीम मुक्ति कारवां इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए दिल्ली की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर काम करेगा।
इस अवसर पर दिल्ली सरकार के सामाजिक कल्याण मंत्री श्री राजेंद्र पाल गौतम ने अभियान को हरी झंडी दिखाते हुए कहा, ‘’इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दिल्ली में बाल श्रम एक गंभीर समस्या का रूप ले चुका है। मुझे विश्वास है कि मुक्ति कारवां डीसीपीसीआर को सहयोग करते हुए बाल श्रम से प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करेगा तथा दिल्ली को ‘बाल मित्र दिल्ली’ बनाने में मदद करेगा।”
मुक्ति कारवां का पहला चरण दिल्ली के उत्तर पश्चिमी जिलों को कवर करेगा और बाद में छह महीने के भीतर अन्य दुर्व्यापार प्रभावित क्षेत्रों में इसका विस्तार किया जाएगा। दिल्ली का उत्तरी पश्चिमी जिला अवैध वाणिज्यिक इकाइयों और ढ़ाबों में कार्यरत बाल श्रमिकों का गढ़ है और इसमें घरेलू नौकर के रूप में काम करने वाले बच्चों की भी बड़ी तादाद है। इसके अलावा उत्तरी पश्चिमी दिल्ली जिले में बड़ी संख्या में असंगठित प्लेसमेंट एजेंसियां भी हैं, जिनकी पहचान भी इस अभियान के दौरान की जाएगी।
इस अवसर पर डीसीपीसीआर के अध्यक्ष श्री रमेश नेगी ने कहा, ‘’यह छह महीने तक चलने वाला एक लंबा अभियान है। यह पहले पायलट योजना के तहत एक महीने के लिए दिल्ली के उत्तर पश्चिमी जिलों में चलेगा, बाद में इसका विस्तार अगले पांच महीनों के लिए दिल्ली के अन्य क्षेत्रों में भी किया जाएगा।‘’
गौरतलब है कि इस अभियान का नेतृत्व बाल दासता से मुक्त कराए गए बच्चे करते हैं। मुक्ति कारवां अभियान के जरिए वे बाल श्रम और दुर्व्यापार के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का प्रयास करेंगे। वे इसके लिए विभिन्न चौक-चौराहों पर नुक्कड़ नाटक, लोक गीत और परचा वितरण करके लोगों को इन सामाजिक बुराईयों को दूर करने की अपील करेंगे। अभियान के दौरान नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी द्वारा बाल श्रम के खिलाफ किए गए अथक संघर्ष पर बनी पुरस्कृत डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘द प्राइस ऑफ फ्री’ को भी विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शित किया जाएगा। मुक्ति कारवां जन-जागरुकता अभियान को स्कूल, समुदाय, आवासीय कालोनियों और अवैध प्लेसमेंट एजेंसी वाले इलाकों में विशेष रूप से केंद्रित किया जाएगा।
केएससीएफ के प्रवक्ता श्री राकेश सेंगर ने कहा, ‘’मुक्ति कारवां सिर्फ जागरुकता ही नहीं फैलाएगा, बल्कि वह पुलिस और स्थानीय लोगों की मदद से बाल मजदूरों की पहचान कर, उन्हें मुक्त कराने का भी काम करेगा। इसके साथ-साथ मुक्ति कारवां का उद्देश्य इलाके में सक्रिय बाल दुर्व्यापारियों की पहचान करना भी है।” अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए श्री सेंगर ने कहा कि दिल्ली में अभियान शुरू करने की आवश्यकता इसलिए महसूस की गई क्योंकि दिल्ली बाल दुर्व्यापार और बाल श्रम के गढ़ के साथ-साथ एक स्रोत राज्य भी है।
इस अवसर पर मुक्ति कारवां की टीम ने बाल श्रम और दुर्व्यापार से मुक्त कराए गए लोगों की कहानियों को साझा करते हुए एक नुक्कड़ नाटक का भी मंचन किया। कार्यक्रम में बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री समीर माथुर बतौर सम्मानित अतिथि मौजूद थे। कार्यक्रम में अतिरिक्त श्रम आयुक्त डॉ. राजेंद्र धर, निदेशक डब्ल्यूसीडी, दिल्ली श्री एसबी शशांक और डीसीपीसीआर के अन्य सदस्य भी उपस्थित थे।
गौरतलब है कि पिछले 10 दिसंबर को ही केएससीएफ की सहयोगी संस्था बीबीए ने “दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बाल श्रम का विस्तार और उनकी सुरक्षा” पर एक रिसर्च रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें पता चला कि आवासीय क्षेत्रों में चल रहे विभिन्न अवैध कारखानों से 94 प्रतिशत बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया है।