Delhi News : नारंग आई इंस्टीट्यूट में कॉन्टूरा विजन लेजर मशीन की सुविधा शुरू

 

 

दीप्ति अंगरीश

नई दिल्ली।  नारंग आई इंस्टीट्यूट, माडल टाउन मे आज नई कॉन्टूरा विजन लेजर मशीन का उद्घाटन किया गया। इससे मरीजों को काफी लाभ मिलेगा। कॉन्ट्रा विजन लेजर दृष्टि सुधार प्रौद्योगिकी में सर्वाधिक नवीनतम उपलब्धी है। अन्य लेजर तकनीकें केवल अपवर्तन शक्ति को संबोधित करती हैं, जबकी कॉन्टूरा विजन उससे आगे जाता है और दृश्य अक्ष पर कॉर्नियल अनियमितताओं को भी ठीक करता है। इसी प्रकार यह लेसिक या स्माइल जैसी अन्य लोकप्रिय तकनीकों की तुलना में तेज और बेहतर दृश्य परिणाम प्रदान करता है।

मॉडल टाउन स्थित नारंग आई इंस्टीट्यूट में मीडिया से बात करते हुए नारंग आई इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ एस के नारंग ने बताया कि कॉन्ट्रा न्यू विज़न ‘लेज़र विज़न करेक्शन’ द्वारा चश्मा हटाने के लिए एक प्रकार की सर्जरी है। कॉन्ट्रा विज़न किसी के चश्मे की पावर में सुधार के अलावा कॉर्नियल इरेग्यूलेरिटी को भी ठीक करता है। विजुअल एक्सिस पर काम करते हुए यह एक तीक्ष्ण और बेहतर विजुअल रिजल्ट देता है, जो लेसिक और स्माइल से अलग है। कॉन्ट्रा विजन ब्लेड रहित, दर्द रहित और टांके रहित प्रक्रिया है, जो कॉर्निया का 3डी नक्शा बनाकर और इसे 22,000 अद्वितीय ऊंचाई बिंदुओं में विभाजित करके काम करती है। फिर इनमें से प्रत्येक बिंदु को रोगी की दृश्य तीक्ष्णता और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए सटीक रूप से ठीक किया जाता है।


एक सवाल के जवाब में डॉ एस के नारंग ने बताया कि हमारी ऑप्थामोलोजिस्ट टीम हर मरीज़ की आंखों की यूनिक कंडिशन जज करके एक ट्रीटमेन्ट प्लान बनाती हैं, जो एक्सीलेंट और हाई ग्रेड विज़ुअल रिज़ल्ट प्रदान करने के लिए उस मरीज को सर्वाधिक उपयुक्त हो। डॉ नारंग ने कहा कि यह नेत्र शल्य चिकित्सा की दुनिया मे एक नये दौर की शुरुआत है और इसका लाभ दिल्ली के लोगों को मिलेगा।

लेसिक – इस प्रक्रिया में कॉर्निया में माइक्रोकरेटोम (ब्लेड) या फेम्टोसेकन्ड द्वारा फ्लेप बनाया जाता है और उसके बाद एक्साईमर लेसर द्वारा चश्मे के नंबर को हटाया जाता है। तदुपरांत फ्लेप को अपनी जगह पर वापस रख दिया जाता है। ज्यादातर पेशेंट को अगले दिन से ही साफ दिखाई देने लगता है। लेकिन यह सिर्फ नंबर को हटाता है एब्रेजन (छोटी त्रुटि) को नहीं। इस प्रक्रिया से स्फीयर वह सिलेंडर दोनों तरह के नंबरों को हटाया जा सकता है।

स्माइल में फ्लेप की जरूरत नहीं होती। इसमें एक छोटे से इंसीजन द्वारा लेंटीक्यूल को कॉर्निया से निकाला जाता है एवं इसमें फेम्टोसेकन्ड लेजर का इस्तेमाल होता है। इस प्रक्रिया में स्फीयर को हटाया जा सकता है पर सिलेंडर को बहुत अच्छी तरह से नहीं निकाला जा सकता। इस प्रक्रिया में रिफाईनमेंट की और जरूरत है।

सबसे नई प्रक्रिया कॉन्टूरा लेसिक है इस प्रक्रिया में टोपोलाइज़र द्वारा आंखों का कस्टमाइज्ड मैप बनाया जाता है इस कस्टमाइज मैप में 22,000 पॉइंट्स को कंप्यूटर द्वारा ठीक किया जाता है। यह केवल नंबर को ही नहीं एब्रेजंस (बारिक त्रुटियों) को भी हटाने में सहायता देता है, जिससे कलर कंट्रास्ट व क्लेरिटी बेहतर होती है।

इन सभी प्रक्रियाओं के बाद आंखों में एक से डेढ़ महीने तक दवाइयों को डालने की जरूरत होती है ,आंखों में पानी 2 हफ्ते तक नहीं लगाना होता है, आंखों को मलना वह मसलना नहीं होता है। आंखों में ड्राइनेस 2 महीने तक रह सकती है, आंखों के लिए कन्वर्जंस एक्सरसाइज बताया जाता है। पेशेंट अपना काम 3 दिन बाद वापस से शुरू कर सकते हैं। मरीजों की संतुष्टी मे लेजर तकनीक की सफलता का दर 99•5 % तक है।

यह प्रक्रिया 18 से 40 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों के लिए चश्मा रहित काम करने व जीवन व्यतीत करने में अति लाभदायक सिद्ध हुआ है।

 

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