नई दिल्ली। कैंसर जैसी बीमारी से लडने के लिए जरूरी है कि लगातार रिसर्च होते रहे हैं। जिस प्रकार से हमारे देश में यह बीमारी बढती जा रही है, वह किसी चुनौती से कम नहीं हैं। ऐसे में एम्स जैसे संस्थान के समर्पित डाॅक्टर्स अपनी मेहनत और सूझबूझ से मरीज को बचा लेते हैं। उस मरीज के लिए ये डाॅक्टर्स किसी भगवान से कम नहीं हैं। ऐसे ही डाॅक्टर्स में से एक हैं डाॅ एमडी रे। इनके नाम विश्व का सबसे बडा किडनी ट्यूमर हटाने का भी रिकाॅर्ड है।
यह सच है कि मरीजों के भारी बोझ से जूझ रहे यहां के बड़े चिकित्सा संस्थानों के डॉक्टर किसी नई तकनीक पर शोध के लिए आसानी से सोच भी नहीं पाते हैं। खासतौर पर बात जब कैंसर जैसी बीमारी की सर्जरी व इलाज की हो तो विदेश में प्रचलित अत्याधुनिक तकनीक भी यहां आने में वर्षों बीत जाते हैं। इस बीच अच्छी बात यह है कि एम्स के कैंसर सेंटर के आंकोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एमडी रे ने नाभि से नीचे के अंगों के कैंसर की सर्जरी की तकनीक विकसित की है। मरीजों के इलाज में इसके परिणाम बेहतर पाए गए हैं, इसलिए एम्स के इस शोध को दुनिया में पहचान मिली है।
इस तकनीक से सर्जरी के नतीजे हाल ही में प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल (वर्ल्ड जर्नल सर्जरी) में प्रकाशित हुए हैं। डॉ. एमडी रे ने कहा कि नाभि से नीचे के अंगों में कैंसर होने पर सर्जरी तो हो जाती है, लेकिन पुरानी तकनीक से सर्जरी के बाद मरीजों को परेशानी होने लगती है। जांघ के बीच के हिस्से पर कैंसर से पीड़ित 65 से 80 फीसद मरीजों की सर्जरी के आसपास की त्वचा गलने लगती थी।
सर्जरी के दौरान चीरा ऐसे लगाया जाता था, जिससे सर्जरी के आसपास की त्वचा में रक्त संचार प्रभावित होता था। ऐसी स्थिति में संक्रमण के कारण त्वचा नष्ट हो जाती है। इस वजह से मरीजों को लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता था। त्वचा खराब होने पर शरीर के दूसरे हिस्से से त्वचा लेकर दोबारा सर्जरी करनी पड़ती थी। इस कारण सर्जरी के बाद भी मरीजों का जीवन पीड़ादायक होता था। सिर्फ 20-35 फीसद मरीज ही सर्जरी के बाद ठीक हो पाते थे, इसलिए ऑपरेशन के दौरान चीरा लगाने की तकनीक में बदलाव किया गया है। उन्होंने इस नई तकनीक को रिवर फ्लो इंसिशनल तकनीक (टू पार्लल कर्वीलिनियर इंसिशन) नाम दिया है। इससे कैंसर के 75 मरीजों की 105 सर्जरी हुई। इस तकनीक में सर्जरी के दौरान मरीज को इस तरह चीरा लगाया जाता है, जिससे सर्जरी की जगह की आसपास की त्वचा की नसों को नुकसान नहीं पहुंचता है और रक्त संचार ठीक बना रहता है।
इस तकनीक से जनवरी 2012 से सितंबर 2016 के बीच नाभि से जांच के बीच के अंगों के कैंसर के 75 मरीजों की 105 सर्जरी हो चुकी हैं।
इस तकनीक के द्वारा जिन मरीजों की सर्जरी की गई, उन पर एम्स के डॉक्टरों ने अध्ययन किया। इस क्लीनिक शोध में पाया गया है कि 92-93 फीसद मरीजों की ऑपरेशन के बाद त्वचा प्रभावित नहीं हुई। इसलिए सर्जरी के बाद ज्यादातर मरीजों को औसतन पांच से छह दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल गई। सिर्फ सात-आठ फीसद मरीजों की त्वचा खराब होने से घाव भरने के लिए फ्लैप कवर (शरीर के किसी हिस्से से त्वचा लेकर लगाना) की जरूरत पड़ी।