2022 तक 25 लाख विकलांगों को मिलेगा रोजगार: थावरचंद गहलोत

मोदी सरकार में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत लगातार सामाजिक समरसता और वंचितों के लिए कार्य कर रहे हैं। हाल ही में सवर्ण आरक्षण को लेकर देश में एक नई बहस की शुरुआत हुई। वंचितों को कैसे उनका हक और रोजगार मिले ? इन्हीं सब मुद्दों पर सुभाष चंद्र ने उनसे बात की। पेश है, उस बातचीत के प्रमुख अंश:
सुभाष चंद्र 
चुनावी साल में ही सरकार को अचानक से सरकार को सवर्ण आरक्षण की जरूरत क्यों आन पडी ?
सरकार अचानक या जल्दबाजी में इसे लेकर नहीं आई है। अच्छी तरह से सोच-विचार कर यह फैसला किया गया है। इससे देश के करोड़ों नौजवानों के आर्थिक सशक्तीकरण का रास्ता साफ होगा, जिन्हें गरीबी की मार झेलने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखता था। हमारी सरकार गरीबों को समर्पित सरकार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में सबका साथ-सबका विकास के नारे को ध्यान में रखते हुए कई ऐतिहासिक फैसले लिए गए हैं। सरकार की सोच को साकार रूप देने के लिए ही यह बनाया गया है।
वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में इसकी क्या जरूरत थी ?
मंडल कमीशन जब बना था, तो उसमें भी सामान्य वर्ग के गरीब तबके को आरक्षण का जिक्र किया गया था। समय-समय पर सदनों में ऐसी मांगें उठी थी। देश में कई जगहों पर इसकी मांग हो रही थी। इसकी आवश्यकता को मोदी सरकार ने महसूस किया और अब यह विधेयक कानून का रूप ले चुका। कई राज्य सरकारों ने इसे लागू भी कर दिया।
इसके जरिए राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश तो नहीं है ? क्योंकि भाजपा कई राज्यों की सरकार गंवा चुकी है ?
सबका विकास और सबका साथ नारे के साथ गरीबों के लिए प्रतिबद्ध सरकार ने फैसला लिया है। इसके समय को लेकर इसके सियासी मायने निकाले जा रहे हैं? लेकिन कुल मिलाकर गरीबों के लिए बनी सरकार ने सपने को साकार करने के लिए यह कदम उठाया है। ऐसे फैसलों के फायदे और नुकसान दोनों होते हैं। लेकिन सामान्य वर्ग के लोगों को मुख्य धारा में लाना इसका मुख्य उद्देश्य है।
इस आरक्षण से किस वर्ग को लाभ मिलेगा ?
हर वह वर्ग जो आज किसी भी आरक्षण सीमा में नहीं आता है। जिस किसी को आरक्षण व्यवस्था का लाभ आज तक नहीं मिला है, उन सभी लोगों को इससे लाभ मिलेगा।
क्या इससे जाट आंदोलन, मराठा आंदोलन जैसे आंदोलन नहीं होंगे ?
देखिए, हमने एक लाइन में बोल दिया कि जिन्हें अब तक किसी भी प्रकार और व्यवस्था के तहत आरक्षण नहीं मिलता था, वे सभी इस आरक्षण से लाभान्वित होंगे। जिनकी सालाना आय 8 लाख रूपये से कम होगी। उसमें तमाम जाति और समूह आ जाती हैं।
क्या आठ लाख की आय सीमा काफी सामान्य नहीं है ?
8 लाख आय, पांच एकड़ जमीन और दूसरे अन्य मापदंड विचाराधीन हैं। यह अंतिम नहीं हैं। यो थोड़ा बहुत कम, ज्यादा हो सकता है।सरकार ने सभी राज्यों से अपने मापदंडों को तैयार करने के लिए कहा है। यह शिक्षा और नौकरी पर लागू होगा जो राज्य के दायरे में आता है। हम आने वाले समय में देखेंगे कि कैसे राज्य इन नियमों को बनाते हैं। इनपर भी विचार किया जाएगा।  वार्षिक घरेलू आय और भूमि का संदर्भ क्रीमी लेयर के लिए मौजूदा मापदंडों से लिया गया है।
क्या इस आरक्षण के लागू होने से एससी एसटी, अल्पसंख्यक लोगों में कोई दुर्भावना तो नहीं आएगी ?
बिलकुल नहीं। अब तक जिन्हें जिस अनुपात में आरक्षण मिलता रहा है, वह ज्यों का त्यों है। सवर्ण आरक्षण के लागू होने से उन लोगों को कोई अंतर नहीं पडेगा। ये आरक्षण आर्थिक आधार पर है।
क्या ये बेहतर नहीं होगा कि पूरी आरक्षण व्यवस्था जाति के बजाय आर्थिक कर दिया जाए ?
ये 10 प्रतिशत का आरक्षण तो हमने आर्थिक आधार पर ही किया है।
आपको लगता है इससे सामाजिक समरसता में कोई बदलाव आएगा ?
यह भारत की परंपरा रही है। अगड़ी जाति के हमारे नेताओं ने दलित-आदिवासी और पिछड़ों को आरक्षण दिया। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पिछड़े समुदाय से होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगड़ी जाति के गरीबों के लिए आरक्षण किया है। हम सामाजिक समरसता कायम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और उसके लिए कार्य करते आ रहे हैं।
समाज के वंचितों को रोजगार से जोड़ने के लिए आपने अपने कार्यकाल में क्या औरों से अलग किया है ?
अनुसूचित जाति के उद्यमियों के लिए 22 दिसम्बर, 2014 को 200 करोड़ रुपये की उद्यम पूंजी निधि स्थापित की गई। यह योजना भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लिमिटेड द्वारा लागू की जाएगी।यह निधि सेबी के साथ पंजीकृत है। युवा अनुसूचित जाति उद्यमियों के लिए 200 करोड़ रुपये की ऋण संवर्द्धन गारंटी योजना को शुरू किया गया। यह योजना युवा उद्यमों के साथ अनुसूचित जाति के उद्यमों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराएगी। सामाजिक न्याय के लिए डॉ. अम्बेडकर अन्तर्राष्ट्रीय केंद्र की आधारशिला 20 अप्रैल, 2015 को रखीं गई। इस केन्द्र के निर्माण पर 195 करोड़ रुपये की अनुमानित धनराशि का खर्च किया गया। डॉ. अम्बेडकर स्मारक का निर्माण किया गया, जिसकी अनुमानित लागत 100 करोड़ रुपये के करीब रही। डॉ. अम्बेडकर के लेखों और भाषणों का ब्रिल संस्करण भी जारी किया गया है।
सुनते हैं कि मोदी सरकार में कौशल विकास पर अधिक जोर है। सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय और कौशल विकास का आपस में क्या संबंध है ?
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम ने वर्ष 2014-15 के दौरान 13,258 प्रशिक्षुओं को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया। वर्ष 2014-15 के दौरान 13,510 प्रशिक्षुओं को कौशल विकास प्रशिक्षण कौशल प्रदान किया। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त विकास निगम ने 2014-15 के दौरान 8750 प्रशिक्षुओं को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त विकास निगम द्वारा महिलाओं को आत्मरक्षा कौशल के साथ वाणिज्यिक मोटर ड्राइविंग की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। विकलांग व्यक्तियों के कौशल प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना शुरू की गई है, जिसमें 2022 तक 25 लाख विकलांग व्यक्तियों को कौशल विकास प्रशिक्षण देकर प्रशिक्षित किया जाएगा।
बधिरों के लिए काॅलेज स्थापना की बात हुई थी। आज क्या स्थिति है ?
बधिरों के लिए देश के प्रत्येक पांच क्षेत्रों में कॉलेज की स्थापना योजना को जनवरी, 2015 में शुरू किया गया है। योजना का उद्देश्य श्रव्य वाधित छात्रों को उच्च शिक्षा में शिक्षा के समान अवसर प्राप्त कराना है और उच्च शिक्षा के माध्यम से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा।
 
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत

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