पुराने गैजेटस से तोड़ो रिश्ता

क्या है ई-वेस्ट 

गैजेटस तो आप जरूर इस्तेमाल करती होंगी। आखिर गैजेटस सस्ते जो हो गए हैं। लेकिन पुराने गैजेटस या खराब पड़ चुके गैजेटस  का घर में ढेर लग जाता है। ये निष्प्रयोज्य उपकरण  ई-वेस्ट कहलाता है। मसलन कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, प्रिंटर्स, फोटोकॉपी मशीन, इन्वर्टर, यूपीएस, एलसीडीं, टेलीविजन, रेडियो, ट्रांजिस्टर, डिजिटल कैमरा आदि। विश्व में लगभग 200 से 500 लाख मी. टन ई-वेस्ट जनित होता है। एक अध्ययन के मुताबिक ई-वेस्ट मैनेजमेंट के मामले में मौजूदा हालात अच्छे संकेत नहीं दे रहे। दुनिया में हर रोज 26 लाख टन ई-वेस्ट ठिकाने लगाने की स्थिति संभवतरू 2075 तक ही बन पाएगी। अनेक देशों में इसके लिए रचनात्मक प्रयास जारी हैं और भारत को भी इस मामले में देर नहीं करनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि देश में इलेक्ट्रॉनिक कचरे का पहाड़ इतना बड़ा हो जाए कि इसे हटाना नामुमकिन हो जाए। कनाडा में पिछले चार बरसों में ई-वेस्ट तीनगुना बढ़ चुका है।

खतरे में अपने

अपनों से प्यार करते हैं, उनके लिए फिक्रमंद हैं, तो उनके लिए ई-वेस्ट को घर से अलविदा कहें। बेकार पड़े उपकरणों से निकलता है जिंक, कॉपर, आयरन, एल्युमिनियम, क्रोमियम, निकिल, लेड, फास्फोरस, कैडमियम व मरकरी । यह रसायन वातावरण में शुमार होकर बीमार कर रहे हैं। डॉ. केके अग्रवाल, वरिष्ठ चिकित्सक कहते हैं कि ई-वेस्ट से निकलने वाले खतरनाक रसायन और इससे होने वाले प्रदूषण के चलते जिन मरीजों को गठिया की बीमारी होती है उनकी समस्या बढ़ जाती है। इसके साथ ही जिन लोगों को कलाई ही हड्डियों या घुटने में दर्द की शिकायत होती है उनकी परेशानी भी बढ़ जाती है। यही नहीं ई-वेस्ट के चलते भूमिगत जल ही प्रदूषित नहीं हुआ है बल्कि मिट्टी की भी उर्वरक क्षमता पूरी तरह खत्म हो चुकी है। ई-वेस्ट से निकलने वाले खतरनाक रसायन और इससे होने वाले प्रदूषण के चलते जिन मरीजों को गठिया की बीमारी होती है उनकी समस्या बढ़ जाती है। इसके साथ ही जिन लोगों को कलाई ही हड्डियों या घुटने में दर्द की शिकायत होती है उनकी परेशानी भी बढ़ जाती है।

उठाना होगा कारगर कदम

एक अध्ययन के मुताबिक, भारत का ई-कचरा उत्पादन लगभग 30 प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से 2020 तक बढ़कर 52 लाख टन प्रतिवर्ष होने का अनुमान है। भारत में पैदा होने वाले ई-कचरे का केवल 1.5 प्रतिशत ही रिसाइकिल होता है और 95 प्रतिशत से अधिक ई-कचरा अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा एकत्रित किया जाता है, जो रिसाइकलिंग और निराकरण में असुरक्षित तरीकों का इस्तेामाल करते हैं। इससे प्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय, अपूर्णीय पर्यावरण क्षति और ऐसे पर्यावरण में सांस लेने या बिल्ड-अप के जरिये विषाक्तता के कारण खतरनाक स्वास्थ्य प्रभाव होता है। नीति के मोर्चे पर, ई-कचरा (प्रबंधन) नियम 2016 के तहत मौजूदा मानदंडों को, जो प्रोड्यूसर्स को विस्तारित Pप्रोड्यूसर दायित्व – (ईपीआर) के अंतर्गत लाते हैं, जिम्मेदार ई-कचरा रिसाइकलिंग हेतु उचित क्षमता का निर्माण करने के लिए प्रोड्यूसर्स को और कुछ समय देने के लिए आंशिक रूप से आसान किया गया है और इसलिए यह एक टिकाऊ ई-कचरा रिसाइकलिंग ईकोसिस्टम में बाजार निर्माण की सुविधा देता है।

प्रांशू सिंघल, संस्थापक, करो संभव ने कहा “करो संभव एक आंदोलन है जो ई-कचरा सेक्टर में हितधारकों को एक स्थायी ईकोसिस्टम का हिस्सा बनने के लिए सक्षम बना रहा है। यह आंदोलन संभव हो पाया है क्योंकि एप्पल, डेल, एचपी और लेनोवो जैसे प्रोड्यूसर्स भारत की ई-कचरा समस्या के समाधान हेतु निवेश करने के लिए तैयार हैं और एक जमीनी स्तर का ईकोसिस्टम विकसित करने में विश्वास रखते हैं। पहले की तुलना में आज समाधान संभव है – इसके लिए आवश्यक है कि विभिन्न हितधारक एकसाथ मिलकर काम करें और सहयोगी समाधान खोजें।”

 

 

 

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