राजनीति में ‘स्वहित’ के आगे सब बौने

निशिकांत ठाकुर

पिछले दिनों भारतीय प्रशासकीय सेवा के वरिष्ठ मित्र से पूछा कि ‘राजनीति में आते ही कोई शख्स इतनी अकूत संपदा का स्वामी कैसे हो जाता है?’ इस विषय पर बातचीत के दौरान उन्होंने बड़ा सटीक उत्तर दिया, और वह उत्तर था— ‘आज लोग राजनीति में आते ही इसीलिए हैं…।’ सच में आज किसी अंग्रेजी हुकूमत को भगाने के लिए राजनीति तो होती नहीं है। हां, सत्ता पर काबिज होने की उठापटक जरूर चलती रहती है और जिसकी गोटी बैठ जाती है, वह अगले ही दिन कुर्सी के प्रताप से जाने–अनजाने अकूत धन-संपदा का स्वामी बनकर अपने को उस योग्य समझ बैठता है जिस योग्य वह कभी था ही नहीं। आजादी काल में ऐसा नहीं था। सभी का एकमात्र उद्देश्य विदेशी आक्रांताओं को देश से खदेड़ना और देश के लोगों को स्वतंत्रता की हवा में सांस लेने देने का अवसर देना था। इसलिए आजादी काल के सभी राष्ट्रपुरुष बेदाग रहे और हम भारतवर्ष के लोग हर उस वीर पराक्रमी सेनानियों के प्रति श्रद्धा से आज भी नतमस्तक रहते हैं। क्या लोभ था सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का, जिन्होंने भरी जवानी में फांसी के फंदे को चूम लिया। लाला लाजपत राय को क्या लोभ था जिनका सिर लाहौर में अंग्रेजों ने डंडों से फोड़ दिया जिससे उनकी मौत हो गई? ऐसे हजारों क्रांतिकारियों और नेताओं के बलिदानों से इतिहास भरा पड़ा है। वे निर्लोभी थे, उनकी सोच आज के नेताओं की सोच से ऊपर थी, वे धन के लिए राजनीति में नहीं आते थे, उनका उद्देश्य समाजसेवा और जनसेवा था, वे राष्ट्रपुरुष थे।

आजादी के बाद भ्रष्टाचार में जिन बड़े नेताओं के नाम आए हैं उनमें कई अन्य दलों के नेताओं के साथ कांग्रेस के दिग्गज नेता श्रीमती सोनिया गांधी और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व संसद राहुल गांधी का नाम भी शामिल है । पिछले सप्ताह प्रवर्तन निदेशालय (ई डी) की ओर से नेशनल हेराल्ड के मानी लांड्रिंग मामले में राहुल गांधी से लगातार पूछताछ हुई । जिसमे राहुल गांधी के समर्थन में कई नेताओं ने सत्याग्रह आंदोलन के तहत अपनी गिरफ्तारी दी और कहा कि सरकार पर विभिन्न मामलों में राहुल गांधी दबाव बना रहे थे इसलिए सरकारी विभाग का दुरुपयोग करते हुए सत्तारूढ़ दल द्वारा अपनी विफलता छुपाने के लिए और जनता का ध्यान भटकाने के लिए इस प्रकार की कार्यवाही की जा रही है । दूसरी ओर, सत्तारूढ़ दल के ही सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि राहुल गांधी को अपने ब्रिटिश पासपोर्ट का उपयोग करते हुए भारत छोड़ देना चाहिए , क्योंकि राहुल गांधी और श्रीमती सोनिया गांधी को लंबी सजा होने वाली है । ज्ञातव्य है कि सुब्रमण्यम स्वामी के एक निजी आवेदन पर ही दिल्ली हाईकोर्ट ने स्टे दिया है और प्रवर्तन निदेशालय उसी मामले के तहत कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से पूछताछ कर रहा है । जांच के बाद सच और झूठ को तो न्यायालय द्वारा ही उद्धघोषित किया जाएगा , लेकिन सत्तापक्ष और कांग्रेस के बीच जो लाठियां भांजी जा रही है, उससे सारा समाज अपने हित की बात सोचना भूलकर इन्ही बातों में उलझकर रह गया है । कुछ लोगों का कहना है कि जिस परिवार ने देश को तीन –तीन प्रधानमंत्री दिए और अपना खानदानी भवन भी देश के हवाले कर दिया, उस पर बदले की भावना तथा सत्तारूढ़ दल के प्रति डर पैदा करने वाली इस प्रकार की कार्यवाही उचित नहीं है । देश की जनता को यह भी बताया जा रहा है कि गुजरात दंगों के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी विशेष जांच दल (एसआईटी )ने नौ घंटे पूछताछ की थी, लेकिन देश में तब कोई सत्याग्रह या आंदोलन तो नहीं हुआ ।

सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी यदि किसी से देश की राजनीति में भयभीत है तो वह एक मात्र कांग्रेस के नेता राहुल गांधी हैं । इसी भय का प्रकोप है कि उसके द्वारा श्रीमती स्मृति ईरानी, डॉक्टर संबित पात्रा तथा सुधांशु त्रिवेदी से प्रेस कॉन्फ्रेंस कराकर यह संदेश जनता को दिलवाने का प्रयास किया जा रहा है कि यह मुद्दा तो पिछली सरकार के काल का है और राहुल गांधी तथा श्रीमती सोनिया गांधी दोनो जमानत पर चल रहे हैं , भाजपा का इस प्रकरण से कोई लेना देना नहीं । अभी फिलहाल जिस विवाद से देश जल रहा है उस मामले में कोई सफाई या अपनी स्वीकारोक्ति इन प्रवक्तों द्वारा नही दी जा रही है या दिलवाई जा रही है कि उनके दो प्रवक्ताओं ने विश्व में भारत का मित्र देशों के साथ संबंधों में चीरा लगा दिया हैं। उन हालातों से निपटने के लिए कुछ तो प्रयास आंतरिक स्तर से किया ही जा रहा होगा , लेकिन पार्टी प्रवक्ताओं की भूल पर कोई आश्वासन देश की जनता या अपने मित्र राष्ट्रों को नहीं दिया जा रहा है। जिन देशों ने भारतीय उत्पाद को एक तरह से सड़क पर फेंक दिया है और कहा है कि उनके धर्म गुरु का अपमान करने वालों से कोई नरमी नहीं बरती जाएगी । यदि उन देशों द्वारा सच में वही किया गया तो फिर भारत की परेशानी कितनी बढ़ जाएगी इसकी आसानी से कल्पना की जा सकती है । याद रखिए कि इंदिरा गांधी की पराजय के बाद इसी तरह का उत्पात तत्कालीन जनता पार्टी ने भी मचाया था , लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी की एक बेलछी यात्रा जनता पार्टी की सारी योजनाओं पर पानी फेर दिया था । उस काल में दूर –दूर तक कांग्रेस का कोई नामलेवा नहीं था , लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी और बेलछी प्रकरण ने जनता पार्टी को वर्षों पीछे धकेल दिया था । आज देश में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा बार –बार राहुल गांधी को बुलाकर पूछताछ के नाम पर जो माहौल बनाया जा रहा है वह तो उसी हालात को बताने की कोशिश कर रहा है । देश के सभी राज्यों में कांग्रेस जिस प्रकार उबाल पर है, वह भविष्य की तरफ ही तो इशारा कर रहा हैं कि आने वाला दिन किसका होगा उसका खामियाजा किसको भुगतना पड़ेगा ।

इसी प्रकार भ्रष्टाचार के मामले में पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम का नाम भी शामिल है। भ्रष्टाचार के आरोप में वह गिरफ्तारी भी झेल चुके हैं। सच तो यह है कि पी. चिदंबरम पहले ऐसे नेता नहीं हैं जिनकी गिरफ्तारी हुई है। उनसे पहले भी कई नामचीन नेता जेल की हवा खा चुके हैं। चारा घोटाला के नाम से देश में प्रसिद्ध बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की गिरफ्तारी हो चुकी है । यह घोटाला तब हुआ था जब बिहार से झारखंड अलग नहीं हुआ था। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता भी आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में जेल भोग चुकी थीं। इस मामले में मुख्यमंत्री जयललिता की सहयोगी रही शशिकला को भी जेल की सजा हो चुकी है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला भी भ्रष्टाचार के आरोप में सजा काट रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता बंगारू लक्ष्मण को भी भ्रष्टाचार में सजा मिल चुकी है। सेना के लिए दूरबीन खरीद सौदे का रक्षा मंत्रालय से कॉन्ट्रैक्ट दिलाने के लिए उन्होंने फर्जी आर्म डीलर से रिश्वत ली थी, बाद में उनकी मृत्यु हो गई। यूपीए सरकार में मंत्री रहे डीएमके नेता डी. राजा को 2G घोटाले का मास्टर माइंड बताया गया और इस आरोप में वह पंद्रह महीने जेल काट चुके हैं। जमीन घोटाले में येदुरप्पा भी 15 दिन जेल की हवा खा चुके हैं। वर्ष 2011 में लोकायुक्त संतोष हेगड़े तो येदुरप्पा के खिलाफ अभियोग ले आए, जिसके कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तक देना पड़ गया था। कॉमनवेल्थ गेम्स मामले में सुरेश कलमाड़ी 70,000 करोड़ रुपये के घोटाले में शामिल होने के आरोप में सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के समय वह भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष और कॉमनवेल्थ गेम्स के चेयरमैन थे।

आजादी के बाद तो अब यह स्थिति हो गई है कि जो जितना बड़ा बाहुबली है, उसका कद राजनीति में उतना ही बड़ा है। पिछले वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ कोई मुकदमा वापस नहीं लिया जाएगा। इसी को ध्यान में रखते हुए सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामले की सुनवाई और केस की सहायता के लिए नियुक्त न्यायमित्र विजय हंसारिया ने इस वर्ष के प्रारंभ में सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया था कि दो वर्ष में सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की संख्या 4,122 से बढ़कर 4,984 हो गई है। न्यायमित्र विजय हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि तीन वर्ष में 862 मामलों में वृद्धि हुई है। त्वरित सुनवाई के बावजूद सांसदों और विधायकों के खिलाफ 4,984 मामले लंबित थे। केंद्र के कानून और न्याय मंत्रालय के अधीन आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस की वेबसाइट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि राज्यों में लंबित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष कोर्ट गठित की जाए, जहां ऐसे मामलों की संख्या 65 या उससे अधिक हो । आज ऐसे लोगों को भी टिकट दिया जाता हैं जिन्होंने राजनीति का ककहरा तक नहीं सीखा, जिन्होंने देश का इतिहास नहीं पढ़ा, सामाजिक लोकाचार को नहीं देखा, अचानक वह प्रकट होकर राज्य और देश को चलाने लगते हैं। दरअसल, ‘राजनीति’ दो शब्दों का एक समूह है ‘राज’+’नीति’। राज मतलब शासन और नीति मतलब उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला, यानी नीति विशेष के द्वारा शासन करना या विशेष उद्देश्य को प्राप्त करना ‘राजनीति’ कहलाती है। दूसरे शब्दों में जनता के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर (सार्वजनिक जीवन स्तर) को ऊंचा करना ‘राजनीति’ है। जो कानून बनाते हैं और उन्हें लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें सरकार कहा जाता है। वह विषय, जो राज्य और सरकार से संबंधित प्रत्येक विषय का अध्ययन करता है, वर्तमान युग में राजनीति शास्त्र या राजनीति विज्ञान कहलाता है।

राजनीति विज्ञान मनुष्य को जातिवाद, भाषा विज्ञान, सांप्रदायिकता आदि की बुराइयों से मुक्त होने और एक दृढ़ सिद्धांत के आधार पर राजनीतिक राय बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। राजनीति विज्ञान का अर्थ, परिभाषा, क्षेत्र और महत्व के निष्कर्ष को संक्षेप में कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान एक बहुत ही उपयोगी विषय है। इस विषय का अध्ययन मनुष्य में ऐसे गुणों का विकास करता है जो लोकतंत्र की सफलता और संपूर्ण मानवता के सामंजस्य को बढ़ाते हैं। राजनीति विज्ञान का अध्ययन मानव सभ्यता के उचित विकास और मानव संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है ।
राज्य एक अभिन्न अंग है और सरकार राज्य के मूल तत्वों में से एक है। वास्तव में, राज्य एक कल्पना है और सरकार वास्तविकता में मौजूद है। जैसे-जैसे समाज बदलता है और सभ्यता विकसित होती है, वैसे-वैसे राजनीति विज्ञान का क्षेत्र भी विकसित होना चाहिए। एक समय था, जब राजनीतिक विज्ञान शहर-राज्य की समस्याओं तक ही सीमित था, लेकिन वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय युग में राजनीति विज्ञान का क्षेत्र बहुविध और अधिक व्यापक हो गया है। मानव सभ्यता के विकास का कोई अंत नहीं है। मनुष्य की प्रकृति इस तथ्य पर आधारित है कि मनुष्य को सभ्यता के किसी भी चरण से संतुष्ट नहीं होना पड़ता है,लेकिन सब कुछ प्राप्त करने के बाद भी, मानव जाति एकअप्राप्य गंतव्य की तलाश में जाने में संकोच नहीं करता है।

भ्रष्ट राजनीतिज्ञों से समाज को छुड़ाने के लिए सामान्य नागरिक को कुछ तो करना ही पड़ेगा, लेकिन प्रश्न यह है कि बिल्ली के गले में आखिर घंटी बांधे कौन? जिन्हें भ्रष्ट और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठना चाहिए वे स्वयं भी उसमें लिप्त हैं। फिर स्वच्छ राजनीति होगी कैसे? भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक (सीपीआई) 2021 में 180 देशों की सूची में भारत को 85वां स्थान मिला है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार पिछली बार के मुकाबले भारत की रैंकिंग में एक स्थान का सुधार हुआ है। हालांकि, रिपोर्ट में भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े किए गए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के कथित स्तरों के आधार पर 180 देशों और क्षेत्रों की रैंकिंग की सूची तैयार की जाती है। यह रैंकिंग शून्य से 100 अंकों के पैमाने का उपयोग कर तय की जाती है। शून्य अंक प्राप्त करने वाला देश सर्वाधिक भ्रष्ट होता है, जबकि 100 अंक प्राप्त करने वाले देश को भ्रष्टाचार की दृष्टि से स्वच्छ माना गया है। इस पर नियंत्रण केवल सर्वोच्च पद पर बैठे राजनीतिज्ञ ही कर सकते हैं। देखना यह होगा कि स्वच्छता की श्रेणी में हमारा देश 100 अंक कब पाता है और युवा जो अपना कैरियर राजनीति में बनाना चाहते हैं, इसमें अपनी कितनी भागीदारी दिखाते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है)

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