सियासी मैदान में विजय रूपाणी को लेकर शंका क्यों ?

कहा जा रहा है कि जिस राजकोट पश्चिम सीट पर भाजपा पिछले 37 साल में कभी नहीं हारी वहां पर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी की हालत नाजुक क्यों लग रही है?क्या विजय रुपाणी भाजपा के गढ़ से लड़ने के बावजूद अपना ही चुनाव हार सकते हैं? यदि ऐसा है, जो भाजपा और उसके रणनीतिकारों के लिए चिंता का सबब है।

नई दिल्ली। गुजरात में अभी भी चुनावी रण में किंतु परंतु और आशंकाएं के बादल उमड घुमड रहे हैं. इसी कडी में प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के हैं, जिनको लेकर दिल्ली के सियासी मैदान में कानाफुसी हो रही है. कहा जा रहा है कि जिस राजकोट पश्चिम सीट पर भाजपा पिछले 37 साल में कभी नहीं हारी वहां पर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी की हालत नाजुक क्यों लग रही है?क्या विजय रुपाणी भाजपा के गढ़ से लड़ने के बावजूद अपना ही चुनाव हार सकते हैं? यदि ऐसा है, जो भाजपा और उसके रणनीतिकारों के लिए चिंता का सबब है.
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी पहली बार 2014 में विधायक बने थे और इसके बाद दो साल बीतने से पहले ही राज्य का मुख्यमंत्री बनकर उन्होंने सबको चौंका दिया था. लेकिन अब जानकारों का मानना है कि दूसरी बार उनका विधानसभा पहुंचना आसान नहीं है. राजकोट पश्चिम का चुनावी इलाका गुजरात में प्रतिष्ठा की सीट रहा है. साल 2001 में नरेंद्र मोदी को जब दिल्ली से मुख्यमंत्री बनाकर गांधीनगर भेजा गया था तब उन्होंने इसी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था. लेकिन बाद में वे राजकोट छोड़कर अहमदाबाद की मणिनगर सीट से चुनाव लड़ने लगे.
साल 1980 से पहले राजकोट जिले की यह सीट कांग्रेस का अभेद किला हुआ करती थी. लेकिन 1980 के बाद से काग्रेस कभी इसे जीत नहीं पाई. 1980 से 2001 तक भाजपा के वजूभाई वाला यहां के विधायक रहे. 2001 में उन्होंने नरेंद्र मोदी के लिए यह सीट छोड़ी और 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने वजूभाई वाला का कर्ज चुकाते हुए उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया. इसके बाद हुए उपचुनाव में विजय रुपाणी करीब 23 हजार वोटों से राजकोट पश्चिम की सीट जीत पाए.
विजय रुपाणी के करीबी माने जाने वाले गुजरात के एक पत्रकार बताते हैं, ‘रुपाणी अगर मुख्यमंत्री ना बनते तो उनके लिए ये सीट जीतना ज्यादा मुश्किल नहीं था. लेकिन अमित शाह के कई बार ये कहने के बाद कि इस बार गुजरात चुनाव का चेहरा विजय रुपाणी हैं, उनकी मुश्किल बढ़ गई है. गुजरात में विजय रुपाणी अमित शाह की पसंद हैं, अगर वे हारे तो ये अमित शाह की हार मानी जाएगी. ऐसे में अगर गांधीनगर में भाजपा की सरकार बनी भी तो अमित शाह विरोधी गुट अपने मनपसंद नेता को मुख्यमंत्री बनाने में सफल हो जाएगा.’
कई जानकार मानते हैं कि भाजपा में ही गुजरात से लेकर दिल्ली तक ऐसे कई नेता हैं जो विजय रुपाणी को हराना चाहते हैं. इनमें से ज्यादातर नेता पाटीदार समाज से आते हैं. वे आज तक इस बात को पचा नहीं सके हैं कि वादा करने के बावजूद आनंदीबेन पटेल की जगह नितिन पटेल को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया. अब उन्हें या किसी दूसरे पटेल नेता को मुख्यमंत्री बनाने का एक ही तरीका बचता है, विजय रुपाणी विधानसभा चुनाव हार जाएं.
ऊपर से राजकोट पश्चिम सीट का समीकरण भी पूरी तरह विजय रुपाणी के पक्ष में नहीं जाता. इस सीट पर करीब 75 हजार वोट पाटीदार हैं. 25 हजार मतदाता ब्राह्मण समाज से आते और 10 हजार से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं. हार्दिक पटेल ने विजय रुपाणी को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस के उम्मीदवार ब्राह्मण समाज से आते हैं, ऐसे में अगर पाटीदार और ब्राह्मण का गठजोड़ बैठ गया तो रुपाणी यहां से चुनाव हार भी सकते हैं. कांग्रेस भी पूरी ताकत लगा रही है. उसने विजय रुपाणी को हराने के लिए अपने अरबपति विधायक इद्रनील राजगुरु को उनके खिलाफ मैदान में उतारा है. अगर भाजपा चुनाव जीत जाती है लेकिन विजय रुपाणी चुनाव हार जाते हैं तब भी एक संदेश पहुंच जाएगा. इसलिए कांग्रेस ने हार्दिक पटेल को भी राजकोट सीट पर ध्यान देने के लिए कहा है. हार्दिक ने भी विजय रुपाणी को घेरने की कसम खाई है और उनकी जनसभा में भीड़ की तादाद भी रुपाणी की विजय को मुश्किल बताती है. इन्हीं खतरों को देखते हुए कई ऐसी बातें हुईं जो गौर करने वाली हैं. मुख्यमंत्री के नॉमिनेशन के वक्त खुद देश के वित्त मंत्री और गुजरात चुनाव के प्रभारी अरुण जेटली उनके साथ थे. प्रधानमंत्री ने विजय रुपाणी को जिताने के लिए इमोशनल अपील की और अपनी रैली में राजकोट पश्चिम की सीट से अपना रिश्ता बताया. इसके अलावा विजय रुपाणी का एक वीडियो भी वायरल हुआ जिसमें वे यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि राजकोट की सीट पर उनकी हालत बहुत अच्छी नहीं है.
गुजरात में भाजपा के एक प्रदेश स्तर के नेता बताते हैं कि राजकोट शहर में पटेल ही विजय रुपाणी को जिता सकते हैं और हरा सकते हैं. इस वक्त उन्हें हराने की इमोशनल अपील पटेल नेताओं की तरफ से चल रही है. उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विजय रुपाणी को जिताने की अपील कर रहे हैं. देखना यह है कि पाटीदार अपने समाज के नेताओं की बात सुनते हैं या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर गौर करते हैं. विजय रुपाणी की सीट पर चुनाव सबसे पहले नौ दिसंबर को ही होगा.

Leave a Reply

Your email address will not be published.