रायबरेली में राहुल कितना दिला पाएंगे कांग्रेसियों में जोश

अनंत अमित

वर्ष 1976 में गांधी परिवार ने सबसे पहले अमेठी का रुख किया। संजय गांधी आते हैं, 1977 का लोकसभा चुनाव लड़ते हैं और हार जाते हैं। उसके बाद 1980 से लेकर 2014 तक कांग्रेस के लिए अमेठी अजेय रहा। सबसे अधिक भागीदारी गांधी परिवार की रही। 2024 के चुनाव में गांधी परिवार का कोई भी सदस्य यहां से लड़ने को तैयार नहीं हुआ, जबकि वर्तमान सांसद व भाजपा नेता स्मृति ईरानी लगातार राहुल गांधी को ललकारती रही। अपने सबसे सुरक्षित गढ़ में हारने का डर केवल राहुल गांधी का था या पूरी कांग्रेस में विश्वास नहीं पनप पाया कि वह अमेठी को भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार स्मृति ईरानी से झिटक पाएगी !

अंतिम दिन तक सस्पेंस। जो चुनाव नहीं लड़ना चाहता, उसे जबरन चुनावी मैदान में धकेला गया। पूरे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मांग थी कि अमेठी और रायबरेली की सीट से गांधी परिवार की चुनाव लड़े। अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली की सीट से प्रियंका गांधी। हद तो यह है कि प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्ा कई बार स्वयं ही चुनाव लड़ने की इच्छा सार्वजनिक रूप से जता चुके थे। लेकिन, नामांकन के अंतिम दिन अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की ओर से नाम जारी किया, जिसके अनुसार इस लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अमेठी नहीं, बल्कि रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे, जो पहले उनकी दादी और बाद में उनकी मां की सीट रही हैं।

वहीं, अमेठी वह सीट है, जहां से राहुल गांधी के पिता व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी कई बार चुनाव जीते। स्वयं राहुल गांधी भी कई बार यहां से सांसद रहे। 2019 के चुनाव में भाजपा नेता स्मृति ईरानी के हाथों चुनाव क्या हारे, इस चुनाव में आत्मविश्वास ही नहीं जुटा पाए। अब पार्टी ने अमेठी से केएल शर्मा को अपना उम्मीदवार घोषित किया और उन्होंने नामांकन किया। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि फरवरी, 2024 में ही एक मीडिया संस्थान से बात करते हुए स्वयं केएल शर्मा ने कहा था कि मैं चुनाव लड़वा सकता हूं, लड़ नहीं सकता। ऐेसे में सवाल उठता है कि राहुल गांधी के साथ अन्य लोग भी चुनावी राजनीति में आत्मविश्वास की कमी से ग्रसित हैं। यदि वाकई ऐसा है, तो कांग्रेस की भारी-भरकम थिंक टैंक और पूरे देश में फैले कार्यकर्ता भी क्या इसी सोच और अवसाद मेंं हैं !

चुनावी आंकडें बताते हैं कि वर्ष 1976 में गांधी परिवार ने अमेठी में दस्तक दी थी। उस वक्त संजय गांधी ने यहां पर पहुंच कर श्रमदान करके सियासी भूमि तैयार की। हालांकि 1977 के पहले चुनाव में काग्रेंस के संजय गांधी चुनाव हार गए थे। वर्ष 1980 में वह चुनाव जीते लेकिन, उसी साल विमान हादसे में उनका निधन हो गया। इसके बाद उपचुनाव में राजीव गांधी ने राजनीतिक पारी शुरू की। इसके बाद से 1984, 1989, 1991 में राजीव गांधी लगातार जीते। वर्ष 1999 में सोनिया गांधी ने अपना पहला चुनाव अमेठी से लड़ा था। बाद में सोनिया गांधी ने वर्ष 2004 में यह सीट बेटे के लिए छोड़ दी। राहुल गांधी 2004, 2009, 2014 में चुनाव जीत गए लेकिन, वह 2019 में भाजपा की स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए। 1998 में इस सीट से गांधी परिवार के करीबी कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव लड़े थे। उसके बाद से लगातार यह सीट गांधी परिवार के लिए आरक्षित रही है।

दरअसल, अमेठी से भागे राहुल के रायबरेली में भी लगने वाले हैं, पर अमेठी से भागने का तात्पर्य पूरे यूपी और भारत में यह संदेश देना है कि कॉन्ग्रेस का सबसे बड़ा नेता आत्मविश्वास की कमी से जूझ रहा है। जब दोनों जगह से हारना ही है, तो अमेठी से लड़ना बेहतर विकल्प है। ‘भागने’ और ‘लड़ कर हारने’ में परिणाम वाले दिन तक के आत्मविश्वास का अंतर होता है। भागने पर आप पहले ही हार चुके होते हैं।

हालांकि, चुनावी मंचों से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी लगातार मतदाताओं को भरोसा दिलाना चाहती हैं। उनका कहना है कि आप सभी जानते हैं कि किशोरी लाल शर्मा जी अमेठी से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। किशोरी जी अमेठी की गांव-गलियों और कार्यकर्ताओं को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। वे यहां की समस्याओं को भी भली-भांति समझते हैं। किशोरी जी पिछले 40 साल से आपकी सेवा कर रहे हैं। इसलिए मेरा विश्वास है कि आप सभी हमारे साथ मिलकर किशोरी जी को जीत दिलाएंगे।

राहुल गांधी केरल की वायनाड लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार वे वायनाड से ही जीते थे। वायनाड में मतदान हो चुका है। अमेठी और रायबरेली में 20 मई को मतदान है। भारतीय जनता पार्टी ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को अमेठी से एक बार फिर उम्मीदवार घोषित किया है। स्मृति ने 29 अप्रैल को अपना नामांकन पत्र भी दाखिल किया था। वहीं, भाजपा ने रायबरेली से दिनेश प्रताप सिंह को टिकट दिया है।

लुटियन दिल्ली में सियासी शगूफों का दौर जारी है। कांग्रेस मुख्यालय से जो बातें छनकर आ रही हैं, उनके अनुसार कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के राज्यसभा सदस्य चुने जाने के बाद से ही पार्टी ने रायबरेली के लिए प्रत्याशी की तलाश शुरू कर दी थी। शुरुआती दौर में सोनिया गांधी की पुत्री प्रियका गांधी रायबरेली को लेकर रुचि दिखा रही थीं। वह यहां से चुनाव लड़ना चाहती थीं। उनकी टीम के लोग जाकर पूरा फीडबैक भी लेने लगे थे। उसी समयावधि में राहुल गांधी की न्याय यात्रा शुरू हुई। उस समय राहुल गांधी के कुछ करीबी नेताओं ने पार्टी अलाकमान के सामने रायबरेली से प्रियंका के बजाय राहुल का नाम आगे बढ़ाया। उसके बाद प्रियंका गांधी ने चुप्पी साध ली और अपनी टीम को रायबरेली से वापस बुला लिया। उनकी टीम भी धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश चुनाव से दूर होती नजर आईं। बीते महीने कांग्रेस के तेज-तर्रार नेता संजय निरुपम ने जब पार्टी छोड़ा था, तो उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में अब काफी नेता चाटुकार किस्म के हो गए हैं, जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर भी पांच भागों में बांट दिया है।

गौर करने योग्य यह भी है कि जैसे ही अमेठी और रायबरेली को लेकर कांग्रेस ने नामों की घोषणा की, उसके बाद सोशल मीडिया में कई प्रकार की टिप्पणियों और मीम्स का दौर चला। उस सभी का जवाब देने के लिए कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत आई और बताया कि रायबरेली सिर्फ़ सोनिया जी की नहीं, ख़ुद इंदिरा गांधी जी की सीट रही है. यह विरासत नहीं ज़िम्मेदारी है, कर्तव्य है। रही बात गांधी परिवार के गढ़ की, तो अमेठी-रायबरेली ही नहीं, उत्तर से दक्षिण तक पूरा देश गांधी परिवार का गढ़ है। राहुल गांधी तो तीन बार उत्तर प्रदेश से और एक बार केरल से सांसद बन गये, लेकिन मोदी जी विंध्याचल से नीचे जाकर चुनाव लड़ने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाये? एक बात और साफ़ है कि कांग्रेस परिवार लाखों कार्यकर्ताओं की अपेक्षाओं उनकी आकांक्षाओं का परिवार है। कांग्रेस का एक साधारण कार्यकर्ता ही बड़े बड़ों पर भारी है। कल एक मूर्धन्य पत्रकार अमेठी के किसी कार्यकर्ता से व्यंग में कह रही थी कि “आप लोगों का नंबर कब आएगा टिकट मिलने का”? लीजिए, आ गया!


लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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