नई दिल्ली। आजकल स्पाइन टी.बी. की समस्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, अक्सर लोग पीठ के दर्द को मामूली दर्द समझकर पेन किलर खाते रहते है। पीठ दर्द के बहुत सारे मामले जब जांच के लिए पहुंचते हैं तो पता चलता है कि पीडि़त रीढ़ की टीबी का शिकार है। पीठ दर्द को सामान्य समझ कर इलाज नहीं कराने वाले इसके प्रभाव से स्थाई रूप से अपाहिज भी हो जाते हैं। नई दिल्ली सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरो एंड स्पाइन डिपाटमेंट के डायरेक्टर डा.सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि लोग अक्सर ऐसी दशा में पहुंचते हैं जब उनकी बीमारी बहुत बढ़ चुकी होती है। पीठ में दर्द होने को लोग टालते रहते हैं जबकि यह खतरनाक है। इसकी पहचान भी जल्दी नहीं होती इसलिए दो-तीन हफ्ते के बाद भी पीठ दर्द में आराम न हो तो तुरंत डॉक्टर के पास पहुंचना चाहिए। इसकी पहचान आम एक्सरे से नहीं हो पाती है। इसके लिए एमआरआई करानी होती है। यदि रीढ़ के बीच वाले हिस्से में दर्द हो रहा हो तो देर नहीं करना चाहिए। डॉक्टरों के पास पहुंचने वाले 10 फीसदी मरीजों में रीढ़ की टीबी का पता चलता है। यह अधिक गंभीर है।
डा. सतनाम सिंह छाबड़ा के अनुसार, हालांकि आम टीबी का इलाज छह महीने में हो जाता है, लेकिन इस टीबी के दूर होने में 12 से 18 महीने का वक्त भी लग सकता है, लेकिन दवा किसी भी हाल में नहीं छोडऩी चाहिए। दवा छोडऩे पर दवा के प्रति प्रतिरोधक शक्ति बन जाती है और फिर इलाज लंबा चलता है। गौरतलब है कि टीबी का कीटाणु फेफड़े से खून में पहुंचता है और इसी से रीढ़ तक उसका प्रसार होता है। बाल और नाखुन छोडक़र टीबी किसी भी हिस्से में हो सकता है। जो लोग सही समय पर इलाज नहीं कराते या इलाज बीच में छोड़ देते हैं, उनकी रीढ़ गल जाती है, जिससे स्थाई अपंगता आ जाती है। हर आयु और वर्ग के लोग रीढ़ की हड्डी के टीबी का शिकार हो सकते हैं। फेफड़ों में टीबी होने के अलावा टीबी बैक्टीरिया शरीर के दूसरे हिस्सों जैसे दिमाग, पेट, हड्डियों और रीढ़ की हड्डी को भी प्रभावित कर सकता है।
डा. सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि रीढ़ की हड्डी में होने वाला टीबी इंटर वर्टिबल डिस्क में शुरू होता है, फिर रीढ़ की हड्डी में फैलता है। समय पर इलाज न किया जाये तो पक्षाघात की आशंका रहती है। यह युवाओं में ज्यादा पायी जाती है। इसके लक्षण भी साधारण हैं जिसके कारण अक्सर लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। रीढ़ की हड्डी में टीबी होने के शुरुआती लक्षण कमर में दर्द रहना, बुखार, वजन कम होना, कमजोरी या फिर उल्टी इत्यादि हैं। इन परेशानियों को लोग अन्य बीमारियों से जोड़ कर देखते हैं, लेकिन रीढ़ की हड्डी में टीबी जैसी गंभीर बीमारी का संदेह बिल्कुल नहीं होता।
पिछले कुछ सालों में कुछ ऐसे मामले सामने आए है, जिसमें गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में स्पाइनल टीबी देखा गया है। सर्वे के अनुसार यह टीबी किसी को भी हो सकता है। डा. सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि अगर शुरुआती दौर में ही बीमारी की पहचान कर ली जाए तो दवाईयों द्वारा इसका इलाज किया जा सकता है, यदि संक्रमण ज्यादा फैला हो या पस की समस्या अधिक हो तो ऐसे में ऐसपिरेशन प्रक्रिया के जरिये पस को बाहर निकाल दिया जाता हैं। कई बार टी.बी के कारण रीढ़ कीे हडडी में ज्यादा क्षती पहुॅचने लगती है, ऐसीे गंभीर स्थिति में सर्जरी ही इसका एकमात्र इलाज है।