बुनकरों को खरीदारों के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ता है जयपुर रग्स

जयपुर। अपने संस्थापक नंद किशोर चैधरी की 40 वर्षों के सफल उद्यम और 40,000 से अधिक दस्तकारों के नेटवर्क का आनंद उठाने वाला जयपुर रग्स अपना अगला कदम उठाने के लिए तैयार हैं। विभिन्न खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से पहले ही कामयाबी की इबारत लिख चुके जयपुर रग्स के गलीचे दुनिया भर के 135 से अधिक शहरों में प्रतिष्ठित रिटेल स्टोर्स के विंडो-डिस्प्ले पर जगह बनाते हैं। ऊन, रेशम, कपास, जूट, सन जैसे कुदरती रेशों के हस्तनिर्मित आधुनिक संग्रह के साथ कंपनी देश भर के प्रमुख महानगरों में बी2सी रिटेल स्टोर खोलने के लिए तैयार है, साथ ही ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों के माध्यम से संभावित खरीदारों की एक बड़ी संख्या तक पहुंचने की योजना बना रही है। वर्तमान में कंपनी दिल्ली और जयपुर के अपने रिटेल स्टोर के माध्यम से भारतीय उपभोक्ताओं की ज़रूरतों को पुरा कर रही है।
जयपुर रग्स के संस्थापक और सीएमडी एन.के. चैधरी कहते हैं, ‘हमारे समुदायों की आजीविका के साथ वर्तमान डिजाइनों को एकरूप करते हुए जयपुर रग्स बुनकरों की कला को सीधे आपके घरों तक लाता है। इसे सिर्फ एक कालीन न समझें, यह बुनकरों के समूचे परिवार का एक आशीर्वाद है। जयपुर रग्स ग्रामीण भारत के समकालीन और पारम्परिक हस्तनिर्मित कालीनों की एक बहुत अच्छी तरह व्यवस्थित शृंखला प्रदान करता है। जयपुर रग्स का लक्ष्य दो छोरों के बीच अंतराल को भरना है, जमीनी स्तर के बुनकर और शहरी उपभोक्ताओं के बीच के अंतराल को समाप्त करना हमारा मकसद है। हम समकालीन अंतरराष्ट्रीय डिजाइनों के माध्यम से बुनकरों और उपभोक्ताओं के जीवन को आपस में बांधते हैं और एक लुप्त होती कला को नया जीवन देने का संतोष पाते हैं। जयपुर रग्स के उपभोक्ता बिछाने के लिए सिर्फ एक कालीन नहीं खरीदते बल्कि इसकी हर एक गांठ उन्हें बुनकरों की भावनाओं से गूथती है। जयपुर रग्स से खरीदे गए हर गलीचे में एक दस्तकार की भावनाएं जुड़ी हुई है, जिसने इसे बहुत प्यार से बनाया है। हमारा लक्ष्य डिजाइन, गुणवत्ता और मूल्य निर्धारण के एक बेहतरीन संयोजन पर आधारित है जो न केवल दस्तकारों का मान बढ़ाती है, वहीं भारतीय परिवारों के अनुरूप है।’
बिक्री एवं विपणन निदेशक योगेश चैधरी कहते हैं, ‘भारत के शहरी मध्यम वर्ग की खर्च करने की ताकत बढने के साथ, पिछले दशक में भारत में हाथ से बने कालीनों की मांग बढ़ी है। गुणवत्ता वाले उत्पादों के लिए लोग भारी कीमत चुकाने के लिए भी तैयार हैं और क्योंकि उन्हें गलीचा निर्माण के पीछे की जाने वाली मेहनत को सराहना पसंद है। इस चलन को बढ़ावा देने के लिए हम 11 से 20 मई तक जयपुर में हमारे शोरूम में ‘सेलिब्रेटिंग समर’ थीम पर एक प्रदर्शनी का आयोजन करेंगे, जहां हम गलीचों और धुरियों के 4,000 से अधिक विश्वस्तरीय डिजाइन प्रदर्शित करेंगे।’
राजस्थान, गुजरात, यूपी, बिहार और झारखंड राज्यों में 600 स्थानों पर विस्तारित कंपनी सिर्फ 2 लूम से बढकर 7000 से अधिक लूम हो गई है। कंपनी का कारोबार 130 करोड़ रुपए है, जिनमें से भारतीय रिटेल बाजार का हिस्सा केवल 5 फीसदी है। एन. के. चैधरी के नेतृत्व में सामाजिक रूप से संचालित व्यापार मॉडल ने उत्तरी और पश्चिमी भारत के गांवों में फैले वैश्विक ग्राहकों और 40,000 ग्रामीण दस्तकारों के बीच एक पुल बनाया है। 80 प्रतिशत से अधिक दस्तकार महिलाएं हैं और लगभग 7,000 जनजातीय क्षेत्रों से संबंधित हैं।
वर्तमान में, जयपुर रग्स एक अंतिम हस्तनिर्मित गलीचा निर्यात करने के लिए ऊन के स्रोत से लेकर अंतिम रूप से गलीचा निर्माण तक व्यापार मॉडल संचालित करता है। कंपनी, भारत सहित कई देशों से ऊन खरीदती है, और फिर इसे राजस्थान के बीकानेर और इसके आसपास के दस्तकारों को सौंप दिया जाता है। रंगाई के बाद, ऊन को मासिक भुगतान के आधार पर काम करने वाले बुनकरों के कंपनी नेटवर्क में भेजा जाता है। जयपुर रग्स अपने हस्तनिर्मित गलीचों के साथ-साथ फ्लैट-बुनाई, धुरी, किलिम और हैंड-टफ्ड गलीचों के लिए जाना जाता है, जो केवल बेहतरीन सामग्री का उपयोग करके अत्यधिक प्रशिक्षित कारीगरों द्वारा बनाया जाता है। 2004 में स्थापित गैर-लाभकारी जयपुर रग्स फाउंडेशन गलीचा-बुनाई में ग्रामीण आबादी को प्रशिक्षित करने में मदद करता है और कारीगर समुदाय को अन्य बातों के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल, वित्तीय समावेश, शिक्षा तक पहुंचने में सहयोगी है।

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