चेहरा तो साफ है, लेकिन संगठन मजबूत कैसे करेंगे अजय ?

जब से राजनीति में मीडिया ब्रांडिंग और पीआर कंपनियों की एंट्ी हुई है, ऐसे नेताओं को चेहरे के तौर पर स्थापित किया जा रहा है। सोशल मीडिया और मीडिया में अजय कुमार बेहतर वक्ता हैं, लेकिन आदिवासी राजनीति में वे कितना मुफीद होंगे, यह आने वाला समय ही बताएगा?

सुभाष चंद्र

झारखण्ड की राजनीति में कांग्रेस के नए मुख्यिा पूर्व नौकरशाह डाॅ अजय कुमार को बनाया गया है। चेहरा के तौर पर देखा जाए, तो साफ सुथरी छवि है, लेकिन संगठन के स्तर पर सबको साथ लेकर अजय कुमार चल पाएंगे, इसमें कइयों को संदेह है। प्रदेश की राजनीति आदिवासी केंद्रित है, इसमें अजय कुमार कैसे तालमेल बिठा पाएंगे ? कई लोग तो आपसी बातचीत में यह भी कहते हैं कि नौकरशाह वाली हनक आज भी अजय कुमार में है, आम कार्यकर्ता उसे कतई बर्दाश्त नहीं करता है।
बता दें कि कांग्रेस की झारखंड इकाई का नया अध्यक्ष डॉ अजय कुमार इससे पहले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता की भूमिका में थे। राजनीति में एक दशक भी नहीं पूरा करने वाले अजय कुमार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में बड़ी जिम्मेवारी सौंपी है, जहां उन्हें पार्टी को राज्य में सक्रिय क्षेत्रीय दलों के सहयोगी दल की भूमिका से विपक्ष की राजनीति के केंद्र में लाने के लिए जूझना होगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि जब से राजनीति में मीडिया ब्रांडिंग और पीआर कंपनियों की एंट्ी हुई है, ऐसे नेताओं को चेहरे के तौर पर स्थापित किया जा रहा है। सोशल मीडिया और मीडिया में अजय कुमार बेहतर वक्ता हैं, लेकिन आदिवासी राजनीति में वे कितना मुफीद होंगे, यह आने वाला समय ही बता पाएंगे ?
कहा तो यह भी जा रहा है कि यदि कांग्रेस पार्टी को किसी नौकरशाह को ही यदि पद देना था, तो आदिवासी चेहरे के रूप में अरूण उरांव भी उसके पास थे। पंजाब कैडर के आईपीएस अरूण उरांव आदिवासी समुदाय से आते हैं और राज्य की नब्ज को समझते हैं। प्रदीप बालमुचू आदिवासी नेता के रूप में स्वयं को स्थापित कर चुके हैं और प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। प्रदेश कांग्रेस में जिस प्रकार से गुटबाजी चरम पर है, उसे पूर्व आईपीएस अजय कुमार किस हद तक शाॅर्ट आउट कर पाएंगे, इसको लेकर राजनीतिक जानकार आश्वस्त नहीं है।

अजय कुमार ने यूं तो अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा से शुरू की थी और इसके टिकट पर जमशेदपुर से 2011 में सांसद चुने गये थे। बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस में सक्रिय रहते हुए उन्होंने भाजपा में जाने की अटकलों पर अपने अंदाज में यह बयान देकर विराम लगाया था कि उसका डीएनए मेरे डीएनए से मिलता नहीं है, इसलिए ऐसा कभी हो नहीं सकता। अजय कुमार 2010 से 2014 तक झाविमो में और फिर 2014 से कांग्रेस में सक्रिय हैं. 55 वर्षीय अजय कुमार का जन्म कर्नाटक के मंगलोर में अजय कुमार भंडारी के रूप में हुआ था और उन्होंने हैदराबाद से स्कूलिंग की और पुड्डूचेरी के जवाहर लाल इंस्टीट्यूट से 1985 में मेडिकल की पढाई पूरी की। अगले ही साल 1986 में वे आइपीएस के लिए चुने गए। अजय कुमार केएस भंडारी एवं श्रीमती वत्सला के पुत्र हैं। एकीकृत बिहार के दो प्रमुख शहरों पटना एवं जमशेदपुर में प्रमुख रूप से वे तैनात रहे और अपराध को जबरदस्त ढंग से काबू में किया। जमशेदपुर में जब अपराध काफी बढ़ गया था तब टाटा स्टील के एमडी जेजे ईरानी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से इसे नियंत्रित करने के लिए एक प्रभावशाली अधिकारी की तैनाती का आग्रह किया। लालू ने उनके आग्रह पर पटना के सिटी एसपी अजय कुमार को जमशेदपुर का एसपी बनाकर भेजा और कम ही समय में उन्होंने वहां अपराध को नियंत्रित कर लिया।
एसपी के रूप में अजय कुमार के शानदार कामकाज का असर था कि 2011 के जमशेदपुर उपचुनाव में वे डेढ़ लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीत गए। जमशेदपुर उनके जीवन में खास जगह रखता है। हालांकि 2014 के आमचुनाव में मोदी लहर में वे कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जमशेदपुर से हार गये, लेकिन पार्टी हाईकमान को उनकी संभावनाओं का अहसास था। अब अजय कुमार को एक डॉक्टर के रूप में पार्टी संगठन की सर्जरी करनी होगी और आइपीएस के रूप में विरोधी दलों के खिलाफ आक्रामक तेवर अख्तियार करना होगा। साथ ही झारखण्ड की जनता के बीच बेहतर सामंजस्य बनाना होगा, क्योंकि वे अब केवल जमशेदपुर का प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे, बल्कि पूरे झारखण्ड का करना होगा।

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