नई दिल्ली। हाइपरफॉस्फेटिमिया, एक ऐसी बीमारी जो आमतौर पर किडनी रोगियों में देखी जाती है। इस स्थिति में मरीज के शरीर में फास्फोरस का स्तर बढ़ जाता है। ऐसा कई कारणों से हो सकता है, जैसे फॉस्फेट का अत्यधिक सेवन, फॉस्फेट उत्सर्जन में कमी आदि।
हाइपरफॉस्फेटिमिया वाले रोगियों को मांसपेशियों में ऐंठन, सुन्नता या झनझनाहट की समस्या होती है। आमतौर पर उनमें हड्डी या जोड़ो में दर्द, थकान, सांस की समस्या, एनोरेक्सिया, उल्टी और नींद में गड़बड़ी आदि जैसे लक्षण नजर आते हैं।
हाइपरफॉस्फेटिमिया के उपचार के लिए सही समय पर निदान करना आवश्यक है। विभिन्न उपचारों की मदद से रक्त में फॉस्फेट के स्तर को सामान्य किया जा सकता है।
डॉक्टर सुदीप सिंह सचदेवा ने आगे बताया कि, “लो फॉस्फेट डाइट हाइपरफॉस्फेटिमिया के इलाज का एक अहम हिस्सा है। शॉफ्ट ड्रिंक, चॉकलेट, टिन्नड मिल्क, प्रॉसेस्ड मीट, प्रॉसेस्ड चीज, जंक फूड, आइसक्रीम आदि जैसी चीजों का सेवन कम से कम करना चाहिए। इसके अलावा बीन्स, ब्रोकली, कॉर्न, मशरूम, कद्दू, पालक और शकरकंद आदि का सेवन भी कम करना चाहिए। यहां तक कि, मीट, मछली, कॉटेज चीज, मोजरेला चीज आदि का सेवन महीने में केवल एक बार ही चाहिए। हालांकि, अपनी डाइट में बदलाव करने से पहले नेफ्रोलॉजिस्ट से परामर्श लेना आवश्यक है।”
गुड़गांव स्थित नारायण सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के नेफ्रोलॉजिस्ट, डॉक्टर सुदीप सिंह सचदेवा ने बताया कि, “आमतौर पर फॉस्फेट आंत में पचे हुए खाने से एब्जॉर्ब होता है। सामान्य परिस्थिति में यदि शरीर में फॉस्फेट का स्तर बढ़ जाता है तो किडनियां इन्हें संतुलित करने में सहायक होती हैं। लेकिन, अगर किडनी की कार्य प्रणाली में गड़बड़ी हो तो इससे हाइपरफॉस्टिमिया की समस्या होती है।”