नई दिल्ली। सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर लोक-कल्याण एवं मानवता की भलाई के लिए समर्पित संगठन, प्रभा खेतान फाउंडेशन ने SWAR के सहयोग से एक मुलाकात नामक अपनी पहल के जरिए कथक उस्ताद पं. बिरजू महाराज और उनकी शिष्या विदुषी सास्वती सेन के साथ बातचीत के एक वर्चुअल सेशन का आयोजन किया। उस्ताद की पोती एवं कथक नृत्यांगना, शिंजिनी कुलकर्णी द्वारा संचालित इस वर्चुअल सेशन के माध्यम से दर्शकों को पं. बिरजू महाराज के जीवन की रोमांचक यात्रा, उनकी कला एवं रचनाओं से अवगत कराया गया। प्रभा खेतान फाउंडेशन प्रदर्शन कला, संस्कृति एवं साहित्य को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है, और भारत में सांस्कृतिक, शैक्षणिक, साहित्यिक और सामाजिक कल्याण से संबंधित परियोजनाओं को अमल में लाने के लिए सहयोगकर्ताओं, इस कार्य में पूरी लगन से समर्पित व्यक्तियों तथा समान विचारधारा वाले संस्थानों के साथ मिलकर काम करता है। एक मुलाकात समाज के विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को एक मंच प्रदान करता है, जहां वे लोगों के साथ अपने जीवन की कहानियों को साझा करते हैं।
प्रभा खेतान फाउंडेशन की कम्युनिकेशन एंड ब्रांडिंग चीफ, सुश्री मनीषा जैन ने इस वर्चुअल सेशन के बारे में बताते हुए कहा, “प्रभा खेतान फाउंडेशन हमेशा से कला, संस्कृति एवं साहित्य का समर्थक रहा है। लॉकडाउन की वजह से हम सभी अपने-अपने घरों में ही रह रहे हैं, इसलिए हमने अपने वर्चुअल सेशन के माध्यम से पूरे देश की महानतम हस्तियों को एक-साथ लाने का प्रयास किया है, ताकि संकट की इस घड़ी में हमारे साथी देशवासियों को उनसे प्रेरणा मिल सके। हम आशा करते हैं कि, पं. बिरजू महाराज के जीवन एवं उनकी रचनाओं के बारे में जानकर हमारे सभी दर्शकों को प्रेरणा मिलेगी। सत्र चाहे वास्तविक हो या आभासी, प्रभा खेतान फाउंडेशन संस्कृति एवं ज्ञान को बढ़ावा देने में समुदायों को जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है।”
पं. बिरजू महाराज से हम सभी भली-भांति परिचित हैं। नृत्य की इस विधा की विरासत और परंपरा स्वयं ही उनका परिचय देती है। केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोग इस महान विभूति की कला से अच्छी तरह परिचित हैं। कालिदास सम्मान, यश भारती और आंध्र रत्न जैसे कई अन्य पुरस्कारों के अलावा, इस ख्यातिप्राप्त नर्तक ने वर्ष 1984 में सबसे कम उम्र में नृत्य में पद्म विभूषण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव हासिल किया। उन्होंने केवल कथक में ही महारत हासिल नहीं की है, बल्कि वह उच्च कोटि के गायक, तालवादक, संगीतकार, कवि, रचनाकार, कोरियोग्राफर और चित्रकार भी हैं। विदुषी सास्वती सेन शायद पंडित जी के सभी शिष्यों में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। उन्होंने नृत्य की विशुद्ध पारंपरिक विधा और आज के ज़माने के रचनात्मक दृष्टिकोण को एकीकृत करके कथक नृत्य में चार चाँद लगा दिए हैं, और इसी वजह से वह इस दौर के दूसरे नर्तकों से कहीं आगे हैं। विदुषी सास्वती सेन को आज बेहद बहुमुखी प्रतिभा और बेमिसाल हुनर वाले कलाकार के तौर पर जाना जाता है, और वह प्रसिद्ध लखनऊ घराने के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधियों में से एक हैं। उस्ताद की पोती एवं कथक नृत्यांगना, शिंजिनी कुलकर्णी भी अपने दादाजी के नक्शेकदम पर चलती हैं और अपने आप में एक कुशल कथक नृत्यांगना हैं।
एक घंटे तक चलने वाली परस्पर-बातचीत के इस सत्र के दौरान, उस्ताद ने अपने जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और प्रसंगों को साझा किया, जो उनके दिलो-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ गए थे। उन्होंने कथक के साथ अपने आजीवन प्रेम संबंध पर बात की। ठुमरी से लेकर तिहाई और बोलों तक – उस्ताद ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और अपनी कोरियोग्राफी के अलावा कई अन्य प्रदर्शनों से जुड़ी कहानियों को दर्शकों के साथ को साझा किया। विदुषी सास्वती सेन महाराज जी के साथ पिछले 50 सालों से जुड़ी हुई हैं, और उन्होंने भी महाराज जी के जीवन की कई घटनाओं और कहानियों की यादें ताजा की। शिंजिनी कुलकर्णी ने भी उनके साथ अपने बचपन के कुछ मज़ेदार किस्से सुनाए।
लखनऊ के साथ अपने जुड़ाव के बारे में बताते हुए, पं. बिरजू महाराज ने कहा, “मैं अब भी भगवान से यही प्रार्थना करता हूं कि मैं लखनऊ जाऊं और वहां के लोगों के साथ काम करूं। लखनऊ की हर बात मेरे दिलो-दिमाग में एक तस्वीर की तरह छपी हुई है।”
नए -नए विचारों को नृत्य की शैली में ढालने के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “मैं हमेशा अपने विश्वस्त और करीबी लोगों के साथ अपने विचारों को साझा करना पसंद करता हूं, क्योंकि विचारों का आदान-प्रदान सबसे अहम है।” नृत्य की कला के बारे में उन्होंने कहा, “नृत्य दरअसल लिंग और उम्र की सीमाओं से परे है। अगर आपके भीतर यह कला मौजूद है, तो आप किसी भी उम्र में सीखना शुरू कर सकते हैं। इस पेशे पर केवल पुरुषों या केवल महिलाओं का वर्चस्व नहीं है। इसमें आप अपने गुरु जी के सामने खुद को पूरी तरह समर्पित कर देते हैं और अपनी कला को लगातार निखारने का प्रयास करते रहते हैं।”
चर्चा को जारी रखते हुए विदुषी सास्वती सेन ने कहा, “महाराज जी अपने काम में हमेशा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का प्रयास करते हैं और वह अपने शिष्यों से भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीद करते हैं। हालांकि, वह हमेशा अपने शिष्यों को अपनी रचनात्मक प्रतिभा का इस्तेमाल करने की स्वतंत्रता देते हैं और उनकी ताकत को प्रोत्साहन देते हैं। वह अपने सभी शिष्यों को अपनी प्रतिभा निखारने का अवसर देते हैं। महाराज जी कभी भी किसी को कुछ अलग सोचने और उसे अमल में लाने के लिए हतोत्साहित नहीं करते हैं। उन्होंने कथक में बहुत सी ऐसी चीजों की शुरुआत की है, जो पहले इस रूप में नहीं थी और अब पूरी दुनिया में इनका प्रदर्शन एवं अभ्यास किया जाता है।”
शिंजिनी कुलकर्णी ने कहा, “मेरे दादाजी बेहद खुले विचारों वाले व्यक्ति हैं, और जिंदादिल इंसान हैं। हर किसी के साथ उनका व्यवहार इतना सहज होता है कि उसके साथ औपचारिक तरीके से बातचीत करना लगभग असंभव है। वह उस वक्त से ही दुनिया के कई देशों में भारतीय शास्त्रीय नृत्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जब ज्यादातर भारतीय कलाकारों को विदेशों में प्रदर्शन का मौका भी नहीं मिला था। मैं प्रभा खेतान फाउंडेशन को धन्यवाद देना चाहूंगा, जिन्होंने मुझे अपने दादाजी के साथ इस तरह की शानदार बातचीत का अवसर दिया।”
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देना एवं उनका सम्मान करना इस फाउंडेशन का ध्येय रहा है, और इससे उन्हें देश भर के लगभग 30 शहरों में अत्यंत सुनियोजित तरीके से साहित्यिक सत्रों के आयोजन की प्रेरणा मिली है। भारत में उत्साहजनक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के बाद, फाउंडेशन ने वैश्विक स्तर पर इसी प्रकार के विभिन्न सत्रों के आयोजन के लिए कदम बढ़ाए। उन्होंने शब्दों की दुनिया के कुछ महान दिग्गजों के साथ सत्रों की मेजबानी की है, और इसके साथ ही उन्होंने उभरती हुई प्रतिभाओं के लिए एक मंच तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया है। इनमें से प्रत्येक सत्र की अपनी एक अलग ख़ासियत थी, जिससे लोग अलग-अलग क्षेत्रों के मूल भावों से अवगत हुए। इससे पहले भी, कई गणमान्य एवं प्रभावशाली हस्तियां एक मुलाकात के सत्र का हिस्सा रही हैं, जिसमें डॉ. शशि थरूर, जावेद अख़्तर, आशीष विद्यार्थी, डॉ. सोनल मानसिंह, दीया मिर्जा, उषा उत्थुप, नंदिता दास, बैरोनेस संदीप वर्मा, बिट्टू सहगल, सुदर्शन पटनायक और इसी प्रकार के कई अन्य नाम शामिल हैं। वर्तमान में पूरे देश में फैल चुकी इस महामारी की वजह से, अब प्रभा खेतान फाउंडेशन ने वर्चुअल प्लेटफॉर्म के जरिए इस पहल को आगे बढ़ाया है, और पहली बार श्री कैलाश सत्यार्थी के साथ बातचीत के माध्यम से इस प्रकार के वर्चुअल सेशन की शुरुआत की है।