नई दिल्ली। सवाल है पिछले साल गोवा और मणिपुर से लेकर नगालैंड, मेघालय में और अब जो कर्नाटक में हुआ है क्या वह चाणक्य नीति है? यह तो सत्ता, शक्ति और पैसे के दुरूपयोग वाली राजनीति है जिसे चाणक्य नीति बताया जा रहा है। इसमें ज्यादा भूमिका मीडिया की है जिसने राजनीतिक तिकड़मों पर चाणक्य नीति का जुमला लपेट दिया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की सोशल मीडिया में एक वायरल फोटो है जिसमें वे सिंहासननुमा कुर्सी पर बैठे हैं और उनके पीछे दो तस्वीरें लगी हैं- एक सावरकर की और दूसरी चाणक्य की! पिछले दिनों दिल्ली में प्रदेश भाजपा के नेताओं ने कई जगह उनकी होर्डिंग्स लगाई थी, जिसमें उनको आधुनिक भारत का चाणक्य कहा गया। एक के बाद एक राज्यों में भाजपा की सरकार बनाने के उनके कारनामे को कई लोग चाणक्य नीति करात देते हैं।
भारत में इस तरह के अनगिनत नेता और प्रसंग हैं। पीवी नरसिंह राव की सरकार बचाने के लिए दिन तिकड़म हुआ करती थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा के सासंद उन्हीं में किसी तिकड़म का शिकार हुए थे और लंबे समय तक रिश्वत का मामला चलता रहा था। पर उस समय पैसे देकर सांसदों के वोट खरीदने को भ्रष्टाचार की श्रेणी में रखा गया और आज अगर यह चर्चा चली है कि जेडीएस के विधायकों को सौ सौ करोड़ रुपए का प्रस्ताव दिया जा रहा है तो उसे चाणक्य नीति का नाम दिया जा रहा है। विद्याचरण शुक्ल से लेकर शरद पवार और रामविलास पासवान तक अनेक नेता इस देश में हुए, जो लगातार सत्ता में रहे। पर कोई भी उनको चाणक्य नहीं कहता है। वे अवसरवादी और मौकापरस्त कहे जाते हैं। पर उनके जैसी ही राजनीति कर सत्ता में बने रहने के भाजपा नेताओं के काम को चाणक्य नीति का नाम दिया जा रहा है। असल में इसमें से कोई भी काम चाणक्य नीति के तहत नहीं हुआ है। चाणक्य की नीति तो धर्म की राजनीति करने की और नंद से अधर्म राज के खत्म कर धर्म राज स्थापित करने की थी। इसमें उन्होंने कहीं भी गलत साधनों को इस्तेमाल की वकालत नहीं की है।
एक आदर्श आचार्य में जो गुण होने चाहिएं वह उनमें थे और उन्होंने अपने शिष्य चंद्रगुप्त में भी उन गुणों को किसी न किसी रूप में हस्तांतरित किया। चाणक्य ने हमेशा शासक के सद्गुणों पर जोर दिया यहां जिन चीजों को राजनीति की बुराई के तौर पर पहचाना गया है उन्हें चाणक्य नीति का नाम दिया जा रहा है। भारत में ऐसी तिकड़म करने वाले कई नेता रहे हैं। हरियाणा के भजनलाल को इस खेल का सबसे माहिर खिलाड़ी माना जाता था। उन्होंने पूरी पार्टी का ही दलबदल करा दिया था। वे कहा करते थे कि अगर हरियाणा में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल जाए तो भले मैं मुख्यमंत्री नहीं बन पाऊं पर अगर बहुमत नहीं मिला तो मैं ही मुख्यमंत्री बनूंगा। देश के किसी भी राज्य में कांग्रेस बहुमत से पीछे रह जाए और हवाई जहाज में बैठ कर भजनलाल अगर उस राज्य की राजधानी के लिए उड़ गए तो माना जाता था कि अब वहां कांग्रेस की ही सरकार बनेगी। पर किसी ने उनकी इन तिकड़मों या राजनीतिक धतकरमों को चाणक्य नीति का नाम नहीं दिया।