-आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री
नारद पुराण अठारह पुराणों का सार है। वैष्णव भक्ति होने के कारण इसे वैष्णव पुराण भी कहा जाता है। इस पुराण में गंगा के उद्गम और उसके तटों पर स्थित तीर्थों का वर्णन किया गया है। नारद पुराण पूर्व भाग और उत्तर भाग में विभाजित है। पूर्व भाग में 125 अध्याय और उत्तर भाग में 82 अध्याय हैँ। दोनों में कुल पच्चीस हजार श्लोक हैं।
पूर्व भाग में गंगा की महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है।
गंगा अवतरण की कथा
प्रचीन समय की बात है- इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक प्रसिद्ध राजा हुए। वे विद्वान्, तपस्वी, बुदि्धमान्, शूरवीर और सत्यप्रिय राजा थे। उनकी केशिनी और महती नामक दो रानियां थीं। एक दिन महर्षि और्व ने उनकी रानियों को वर देते हुए कहा कि- तुम्हारी एक रानी को साठ हजार पुत्र प्राप्त होंगे, जबकि दूसरी रानी को केवल एक पुत्र प्राप्त होगा। किंतु वंश चलाने वाला दूसरी रानी से उत्पन्न एक पुत्र ही होगा। इसलिए जिसकी इच्छा हो, वह वर ले लो। इस पर केशिनी ने एक पुत्र वाला और महती ने साठ हजार पुत्रों वाला वर स्वीकार कर लिया।
कुछ समय बाद रानी केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम असमंजस रखा गया। दूसरी रानी महती के गर्भ से बीजों से भरी एक थैली उत्पन्न हुई, जिसमें बीजाकार में साठ हजार अण्ड थे। राजा ने उन्हें घृतघटों में रखवा दिया और उनकी देखभाल के लिए साठ हजार सेविकाएं नियुक्त कर दीं। उचित समय पूर्ण होने पर उन घृतघटों से साठ हजार बालक उत्पन्न हुए। वे सभी बालक वीर, बलशाली और उग्र पराक्रम से परिपूर्ण थे। समय बीतता गया और एक बार राजा सगर के मन में अश्वमेध यज्ञ करने का विचार उत्पन्न हुआ, उन्होंने अपने मंत्रियों को यज्ञ की तैयारी करने का आदेश दिया। शुभ
मुहूर्त में यज्ञ आरंभ हुआ और यज्ञ अश्व को छोड़ा गया। इस यज्ञ से देवराज इंद्र को अपना सिंहासन हिलता दिखने लगा। देवराज इंद्र ने दैत्य का रूप धारण करके छलपूर्वक यज्ञ अश्व को चुराकर भगवान् विष्णु के अंशावतार महर्षि कपिल के आश्रम में छिपा दिया। अश्व हरण पर यज्ञ में विघ्न उत्पन्न हो गया, इस पर यज्ञ ऋषियों ने राजा से अमंगल नाश के लिए अति शीघ्र अश्व खोजने को कहा। इस पर राजा सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को अश्व की खोज के लिए सभी दिशाओं में भेज दिया। सगर पुत्रों ने सारी पृथ्वी छान ली, लेकिन अश्व नहीं मिला। तब उन्होंने अपनी बलिष्ठ भुजाओं से पृथ्वी को खोदना शुरु कर दिया। उनके भीषण प्रहारों से पृथ्वी सहित पृथ्वी में रहने वाले नाग, दैत्य और अन्य प्राणी चीत्कार
करने लगे।
सगर पुत्र पृथ्वी खोदते-खोदतें कपिल मुनि के आश्रम तक जा पहुंचे और उन्हें वहां बंधा यज्ञ अश्व दिखाई दिया। उन्होंने सोचा कि यज्ञ में बाधा के उद्देश्य से कपिल मुनि ने ही यज्ञ अश्व का हरण किया है, वे मुनि के साथ अभद्रता कर बैठे। इस पर कपिल मुनि को क्रोध आया और उन्होंने साठ हजार सगर पुत्रों को भस्म कर डाला।यह समाचार जब राजा सगर तक पहुंचा तो वे शोक में डूब गए। आपत्ति काल की उपस्थिति में राजा सगर के पौत्र अंशुमान् ने महर्षि कपिल की स्तुति करके उनका क्रोध शांत किया। महर्षि को प्रसन्न कर अंशुमान् ने मृत सगर पुत्रों के उद्धार के विषय में पूछा तो महर्षि कपिल ने कहा कि गंगा की पवित्र जलधारा ही सगर पुत्रों का उद्धार कर सकती है।
महर्षि कपिल के परामर्श के अनुसार राजा सगर गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप करने लगे, लेकिन गंगा को लाने से पूर्व ही उनकी मृत्यु हो गई। उसके बाद उनके पौत्र अंशुमान ने और फिर उनके पुत्र दिलीप ने अनक वर्षों कठोर तप किया, लेकिन वे गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल न हो सके। अंत में अंशुमान के पौत्र भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान् विष्णु की घोर तपस्या की, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् विष्णु ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिए। भगवान् के दर्शन पाकर भगीरथ श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति करने लगे। तब भगवान् ने प्रसन्न होकर भगीरथ से कहा कि- वत्स! तुम्हारे कठोर तप से मैं अति प्रसन्न हूं, तुम्हें अभीष्ट वर देने के लिए ही प्रगट हुआ हूं। अतः तुम निःसंकोच होकर इच्छित वर मांग लो। तब भगीरथ ने कहा कि – भगवन्! अनेक वर्षों पूर्व महर्षि कपिल ने श्राप से मेरे पूर्वजों को भस्म कर दिया था, तभी से वे प्रेत योनि में भटक रहे हैँ। महर्षि ने कहा था कि यदि गंगा देवी पृथ्वीलोक में आकर अपने पवित्र जल से उनकी शुध्दि कर दें तो उनका उद्धार हो जाएगा और वे आपके परम धाम के अधिकारी हो जाएंगे। हे प्रभु! गंगा मां को पृथ्वी पर लाने के लिए मेरे प्रपितामह सगर, पितामह अंशुमान और पिता दिलीप ने अनेक वर्षों तक कठोर तप किया, किंतु वे इसमे सफल नहीं हुए और तपस्या करते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिए। तब मैंने उनके कार्य को पूर्ण करने के लिए कठोर तपस्या की। हे दयानिधान! यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैँ तो गंगा देवी को पृथ्वी पर भेजने की कृपा करें।
राजा भगीरथ की बात सुनकर भगवान् विष्णु ने गंगा से कहा कि गंगे! तुम अभी नदी रूप में पृथ्वी पर जाओ…और सगर के सभी पुत्रों का उद्धार करो। तुम्हारे स्पर्श से वे सभी राजकुमार मेरे धाम को प्राप्त होंगे। पृथ्वी पर जो भी पापी तुम्हारे जल में स्नान करेगा,उसके सभी पापों का नाश हो जाएगा।पर्वों और विशेष पुण्यतिथियों पर तुम्हारे जल में स्नान करने वाले प्राणियों को सुख सम्पत्ति, भोग और ऐश्वर्य के अतिरिक्त मृत्यु पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति होगी। सूर्य ग्रहण के समय तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को पुण्य और सुखों की प्राप्ति होगी। तुम्हारे स्मरण मात्र से ही प्राणियों के दुःखों और कष्टों का नाश हो जाएगा।
यह सुनकर गंगा हाथ जोड़कर बोलीं कि – भगवन् आपकी आज्ञा मुझे स्वीकार है। परन्तु मुझे कितने वर्ष तक पृथ्वीलोक में रहना होगा! स्नान करके पापीजन अपने पाप मुझे दे देंगे तो मझ पर चढ़े उन पापों का नाश कैसे होगा! भगवन्! आप भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता हैं, संसार की कोई बात आपसे छिपी नहीं है, इसलिए आप मेरी इस शंका का भी समाधान करें।
भगवान् विष्णु ने कहा कि हे गंगे! तुम नदी रूप में पृथ्वी पर रहोगी और मेरे अंशस्वरूप समुद्र तुम्हारे पति होंगे। सभी नदियों में तुम श्रेष्ठ, सौभाग्यवती और पुण्यदायिनी रहोगी। हे देवी! कलियुग में पांच हजार वर्षों तक तुम्हें पृथ्वी पर रहना होगा। समस्त प्राणी देवी के रूप में तुम्हारी स्तुति करेंगे। जो भी मनुष्य भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति वंदना करेगा, उसे अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होगा। गंगा शब्द का निरंतर जप करने वाले भक्तों के पूर्वजन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाएंगे और मृत्यु के बाद वे मेरे परमधाम को प्राप्त होंगे।
-आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री
अध्यक्ष, राष्ट्रीय ज्योतिष परिषद भारत
अधिष्ठाता,
श्री पीताम्बरा विद्यापीठ सीकरीतीर्थ
7351200046