राहुल गांधी लाक डाउन की अनिवार्यता को समझें

कृष्णमोहन झा

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल में ही वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए पत्रकारोंसे बात की जिसमें उन्होंने कहा कि लाक डाउनहटने के बाद कोरोना संकट की फिर से वापसी हो सकती है इसके लिए केंद्र सरकार को अभी से सतर्कता बरतनी होगी उनका कहना था कि लाक डाउन एक पाज बटन जैसा है यह संकट का स्थायी समाधान नहीं है | राहुल गांधी की यह आशंका अनावश्यक प्रतीत होती है
क्योंकि कोरोना वायरस के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए मोदी सरकार ने समय रहते सारे देश में लाक-डाउन लागू करने का जो कठोर फैसला लिया था उसकी अनिवार्यता को आज सारी अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी भी स्वीकार कर चुकी है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी यह माना है कि समय रहते लाक डाउन लागू करने के कारण ही भारत में कई बड़े देशों की तुलना में कोरोना वायरस का प्रकोप सीमित रहा |मोदी सरकार के इस कठोर फैसले का समर्थन देश के उन राज्यों की सरकारों ने भी किया है जहां भाजपा के हाथों में सत्ता की बागडोर नहीं है | इन राज्यों में राजस्थान भी शामिल है जहां की कांग्रेस सरकार ने राज्य के भीलवाडा जिले में कोरोना प्रकोप की स्थिति चिंताजनक होने पर वहां सुपर कर्फ्यू लागू करने में भी कोई संकोच नहीं किया था परंतु उस समय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने वहां की गहलोत सरकार को सलाह नहीं दी कि उसे राज्य में कोरोनावायरस के प्रकोप पर काबू पाने के लिए कोई स्थायी उपाय खोजना चाहिए | गौर तलब है कि लाक डाउन के भीलवाडा माडल का हीआज अऩेक राज्य सरकारें अनुकरण कर रही हैं | हाटस्पाट बनने वाले क्षेत्रों को तत्काल सील किया जा रहा है और उसके सुखद परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ रहे हैं | ऐसे में राहुल गांधी के द्वारा लाक डाउन की पाज बटन से तुलना किया जाना समझ से परे है | राहुल गांधी को तो देश में समय रहते लाक डाउन लागू करने के लिए प्रधान मंत्री मोदी की सराहना करनी चाहिए थी परंतु उन्हें तो प्रधानमंत्री पर परोक्ष निशाना साधने के लिए किसी बहाने की तलाश थी |राहुल गांधी को शायद इस सच्चाई का अहसास हो चुका है कि इस नाजुक घड़ी में प्रधानमंत्री की सीधी आलोचना करने से वे अपने प्रति जनता की बची खुची सहानुभूति भी खो देंगे |इसीलिए वे वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित अपनी पत्रकार वार्ता में प्रधानमंत्री पर सीधे सीधे निशाना साधने से बचतेरहे |
राहुल गांधी ने लाक डाउन को कोरोना वायरस के प्रकोप को कुछ समय के लिए स्थगित करने वाला कदम बताते हुए कहा कि यह एक भयावह संकट से सुरक्षा केवल एक तात्कालिक उपाय है और लाक
डाउन को हटाते ही पुनः संक्रमण फैलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन वे यह नहीं पाए कि जब देश में कोरोनावायरस के संक्रमणकी शुरुआत हुई थी तब क्या लाकडाउन से बेहतर किसी अन्य उपाय से देश में कोरोना संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता था | पत्रकार वार्ता में प्रधानमंत्री मोदी से
संबंधितअधिकांश सवालों के जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि वे मोदीजी से कई मामलों में असहमत रहे हैं और आज भी हैं परंतु यह समय मोदी जी से लड़ने का नहीं है अभी हमें कोरोना वायरस से है और यह लड़ाई एक जुट होकर ही लडी जा सकती है | राहुल गांधी से पहले प्रधानमंत्री मोदी देशवासियों के नाम अपने हर संदेश में इसी एकजुटता पर जोर देते रहे हैं|उल्लेखनीय है कि गत 5अपैल को सारे देश वासियों ने रात 9 बजे 9मिनिट का जो अनूठा दीपोत्सव मनाया था वह भी देश वासियों की एकजुटता का ही परिचायक था राहुल गांधी इस बात के लिए निसंदेह साधुवाद के हकदार हैं कि इस नाजुक घड़ी में वे अपने सारे राजनीतिक मतभेदों को भुला कर कोरोनावायरस के विरुद्ध जारी लड़ाई में प्रधानमंत्री के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े हैं | यही एकजुटता बड़ी से बड़ी लड़ाई में किसी भी राष्ट्र की विजय सुनिश्चित करती है |यहां यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी देश में कोरोना संक्रमण की शुरुआत के बाद जब भी देशवासियों से मुखातिब हुए हैं उन्होंने किसी भीराजनीतिक दल अथवा किसी भी संगठन के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की |प्रधान मंत्री ने हर संदेश में एकजुटता पर जोर दिया और कोरोना संकट से लडाई में जनता का सहयोग मांगा |इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री मोदीे ने विगत कुछ सप्ताहों में जो भी फैसले लिये हैं उनकी अपरिहार्यता को आज सारा देश स्वीकार कर रहा है और सारा देश उनके नेतृत्व में
एकजुट है |कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने पत्रकार वार्ता में कई सवालों के जवाब देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि वे इन सवालों के जवाब तब देंगे जब देश कोरोना के संकट से उबर जाएगा |राहुल गांधी को जहाँ कहीं भी यह महसूस हुआ कि उनके जवाब से विवाद की स्थिति निर्मित हो सकती है वहाँ वे उन सवालों का जवाब देने से बचते नजर आए |राहुल गांधी ने कहा कि हमारा काम प्रधानमंत्री को सुझाव देना है | उन सुझावों पर फैसला करना प्रधान मंत्री का काम है | कोरोना वायरस के संक्रमण को नियन्त्रित
करने के लिए मिलने वाला हर सुझाव का इस समय सरकार के लिए महत्वपूर्ण है इसलिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह वह किसके द्वारा दिया गया है |सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता यह है कि हर हालत में कोरोनावायरस की चेन तोडना है | अगर किसी के भी सुझाव पर अमल करने से देश के अन्दर कोराेना संकट पर काबू पाने में सफलता मिलने की संभावनाएं बलवती प्रतीत हो रही हों तो प्रधानमंत्री उस पर निश्चित रूप से विचार करेंगे फिर वह सुझाव भले ही राहुल गांधी की ओर से क्यों न. आ़या हो |

राहुल गांधी ने लाकडाउन के कारण गरीब मजदूरों की दिक्कतों से जुड़े सवाल के जवाब में कहा कि सरकार को गोदामों में भंडारित अनाज इन गरीब मजदूरों में बांट देना चाहिए और उन्हें हर सप्ताह मुफ्त अनाज वितरित करना चाहिए |उनके इस सुझाव के पहले ही केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करने में जुट चुकी हैं कि कोरोना संकट के कारण गरीब मजदूरों के परिवार जनोंको भूखे पेट न सोना पड़े | सरकार उनको आर्थिक मदद भी दे रही है और उन्हें मुफ्त अनाज भी वितरित कर रही है | फिर भी राहुल गांधी को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है और बेबस गरीब मजदूरों की दिक्कतोंको दूर करवाना सरकार की जिम्मेदारी है | दर असल दूरदराज के इलाकों में रहने वाले वाले ये मजदूर इस समय वापिस अपने घर जाने के लिए व्याकुल हैं |कोरोनावायरस के प्रकोप ने उन्हें इतना भयभीत कर दिया है कि वे इस विपदा के समय अपने परिजनोंके बीच रहना चाहते हैं | वे जिन क्षेत्रों काम करके रोजी रोटी कमा रहे हैं उन राज्यों की सरकारों को उन्हें यह भरोसा दिलाना होगा कि वे उन राज्यों के लिए पराए नहीं हैं | उनके प्रति सहानुभूति और संवेदना प्रदर्शित करना ही काफी नहीं है उनका दिल भी जीतना होगा | ऱाहुल गांधी की इस बात से सहमत हुआ जा सकता है कि कोरोना संकट पर काबू पाने के लिए त्वरित जांच की आवश्यकता है परंतु वे जब यह कहते हैं कि लाक डाउन हटाने के बाद यह संकट फिर पैदा हो सकता है तो ऐसी चेतावनी देने से उन्हें बचना चाहिए | इस तरह की बातें उन लोगों में अनावश्यक भय पैदा कर सकती हैं जो अपनी जिंदगी की गाडी जल्दी ही पटरी पर लौटाने की अधीरता से प्रतीक्षा कर रहे हैं |

(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है)

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