क्लास ,मार्क्स और अल्पसंख्यकों के बीच बीजेपी की फुफकार

जो कल तक कांग्रेस थी अब टीएमसी हो गयी है। ममता दीदी के नेतृत्व में टीएमसी खूब फल फूल रही है और सत्ता पर काबिज भी है। ममता आज भी बंगाल की शेरनी बनी हुयी है। सामने वाला मार्क्स मुरझा सा गया है। बेदम मार्क्स अब अपनी जान बचाने में ही परेशान है। कांग्रेस और मार्क्स का घालमेल ही टीएमसी है।

अखिलेश अखिल

बंगाल में बीजेपी फुफकार रही है। क्लास ,मार्क्स और अल्पसंख्यकों के घालमेल वाले इस सूबे की राजनीति और राज्यों से विलग है। यहां सबकुछ है और कुछ भी नहीं। इस सूबे की राजनीति उत्तर भारत के अन्य राज्यों से जुदा है। यहां कभी कांग्रेस और मार्क्सवाद के बीच लड़ाई चलती थी। समय बदला तो मार्क्स और टीएमसी की लड़ाई जारी हो गयी। मार्क्सवाद टीएमसी के सामने नतमस्तक हो गया। कांग्रेस इस लड़ाई से अलग हो गयी और एक छोटी सी पूंजी को संजोये कांग्रेस वहाँ नाम मात्र की राजनितिक पार्टी रह गयी है। जो कल तक कांग्रेस थी अब टीएमसी हो गयी है। ममता दीदी के नेतृत्व में टीएमसी खूब फल फूल रही है और सत्ता पर काबिज भी है। ममता आज भी बंगाल की शेरनी बनी हुयी है। सामने वाला मार्क्स मुरझा सा गया है। बेदम मार्क्स अब अपनी जान बचाने में ही परेशान है। कांग्रेस और मार्क्स का घालमेल ही टीएमसी है।
इधर पुरे भारत को नापने का सपना संजोये बीजेपी बंगाल में भी पाँव पसारने की तैयारी में है। उसे वहाँ बड़ा स्पेस दिख रहा है। पिछले कुछ सालों में बीजेपी वहाँ पैठ भी बनायी है। उसका संगठन भी बना है और कार्यकर्ताओं की अच्छी खासी हुजूम भी तैयार हुयी है। वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ है और क्लास -मार्क्स का एक तपका बीजेपी की हिंदूवादी राजनीति की तरफ ललचाई नजरों से देख रहा है। बीजेपी को लग रहा है कि वह बंगाल में बड़ा करामात कर सकती है और ममता को सत्ता से बेदखल भी कर सकती है। ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी। आज नहीं भी हो कल संभव है। जब मार्क्स से जुड़े लोग टीएमसी को लगा सकते हैं तो तो भला टीएमसी से जुड़े लोग बीजेपी को स्वीकार क्यों नहीं कर सकते। ऐसा होता रहा है और आगे भी होगा। इसलिए बीजेपी के लिए बंगाल एक खुला मैदान है।
बीजेपी को लगता है कि ममता बनर्जी से बंगाल के हिन्दू नाराज हैं क्योंकि टीएमसी अल्पसंख्यकों को ज्यादा तरजीह दे रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि टीएमसी की राजनीति को आगे बढ़ाने में बंगाल के मुसलमानो की भूमिका आगे रही है और ममता बनर्जी भी कुछ मामले में मुसलमानो के प्रति ज्या संवेदनशीन बानी रही है। लेकिन यह तो हिन्दू और मुसलमानो के बीच राजनीतिक समझ बन रही है। बीजेपी की असली नजर ममता सरकार में हुए घपले और घोटाले को लेकर है। पिछले कुछ सालों में ममता के कई बड़े नेताओं पर भ्रष्टाचार के दाग लगे हैं और उनमे से कई दागी नेता बीजेपी में शामिल हुए हैं। बीजेपी उन्ही दागी नेताओं के साथ मिलकर ममता की राजनीति को रोकना चाहती है लेकिन राजनीति की बेहतर समझ रखने वाली ममता अब उन्ही दागी नेताओं को टारगेट करके बीजेपी को घेरने में लगी है। खेल अब यही तक का नहीं रहा। ममता अब हिन्दू वोटरों के प्रति भी पहले से ज्यादा सॉफ्ट हुयी है और बड़ी संख्या में क्लास वाले हिन्दू भी ममता के साथ जुड़ रहे हैं।
इसमें अब कोई शक नहीं कि ममता भी अब हिन्दू वोटरों को लुभाने में लगी है और इसी के तहत हिन्दू पुजारियों में पैठ बना रही है। तृणमूल कांग्रेस के बीरभूम जिले के अध्यक्ष अनुब्रता मंडल ने सोमवार को हिंदू पुजारियों को सम्मानित करने के लिए एक समारोह का आयोजन किया। यह आयोजन यह बीजेपी के उस बयान का जबाव माना जा रहा है, जिसमें वह कथित तौर पर टीएमसी को मुस्लिमों का पक्ष लेने वाली पार्टी बताती रही है। बीरभूम के टीएमसी कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि मंडल जिले और उसके आसपास के करीब 12 हजार पुजारियों को एक मंच पर साथ लेकर आए। बीरभूम जिले में बीजेपी का वोट शेयर बढ़ रहा है। 2014 के आम चुनावों में पार्टी उम्मीदवार जॉय बनर्जी को पिछले पांच वर्षों के 4.62 प्रतिशत की तुलना में 18.47 प्रतिशत वोट मिले थे। बीजेपी नेताओं ने कहा कि इस साल होने वाले पंचायत चुनावों से पहले मंडल समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।
वहीं मंडल ने कहा कि इस समारोह का बीजेपी को हालिया चुनावों में मिले फायदे से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने समारोह में कहा कि अर उन्हें कभी हिंदुत्व का पाठ पढ़ना होगा तो वह इन पुजारियों से सीखेंगे। इस समारोह का एेलान 18 दिसंबर को किया गया था। इसी दिन गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे घोषित किए गए थे। उसके बाद से पार्टी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने दो हिंदू मंदिरों का रुख किया था।
बता दें कि पश्चिम बंगाल के ग्रामीण और शहरी इलाकों में बीजेपी अपनी पहुंच और प्रभुत्व लगातार बढ़ाती जा रही है। हाल में हुए सबांग उपचुनाव में बीजेपी ने चौकाते हुए 37 हजार 476 वोट हासिल किये, जबकि 2016 में पार्टी को यहां पर महज 5610 वोट ही मिले थे। हालांकि यह सीट टीएमसी ने जीती और पार्टी को 1,06,179 वोट हासिल हुए। दक्षिण कांठी में भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा था। गौर करने वाली बात यह है कि इन इलाकों में बीजेपी का संगठन नाम मात्र का है। बावजूद इसके बीजेपी का उभार पश्चिम बंगाल की राजनीति में बदल रही बयार को दर्शाती है। क्लास, मार्क्स और अल्पसंख्यकों के कठिन घालमेल में जकड़े बंगाल की राजनीति में दूसरे दलों का पैठ बना पाना बेहद मुश्किल है। अब देखना होगा कि बीजेपी की राजनीती कहाँ तक आगे बढ़ती है और ममता की राजनीति बीजेपी को कैसे रोक पाती है। इतना तो साफ़ है कि अब लोग पहले जैसे किसी एक पार्टी के चंगुल में बंध कर रहना नहीं चाहते। समय के साथ बदलाव हो रहा है इसलिए बंगाल में भी बदलाव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

 

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