नई दिल्ली। मराठा राजाओं की तरह उनकी रानियां भी महान वीरता और प्रेरणा की मिसाल थीं। अहिल्याबाई होल्कर उनमें से एक थीं, जिनकी प्रशंसा को शायद ही ज्यादा तरजीह दी जाती है। मालवा की परोपकारी रानी के गौरवशाली जीवन को दर्शाने वाले सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन के पीरियड ड्रामा पुण्यश्लोक अहिल्याबाई को दर्शकों से अपार प्रशंसा मिली है। एक प्रेरक कहानी के साथ यह शो अहिल्याबाई होल्कर की जीवन यात्रा पर रोशनी डालता है, जिन्होंने अपने ससुर मल्हार राव होल्कर के अटूट समर्थन के साथ, ऐसे समय पर पुरुषों के बनाए नियमों को हराने और महिलाओं के अधिकारों को स्थापित करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, जब महिलाएं अपने घरों की चारदीवारी तक सीमित रहा करती थीं।
इस शो के वर्तमान ट्रैक में दिखाया गया है कि कैसे ऐसे समय में जब महिलाएं समाज के तय किए गए पुरुषवादी नियमों के कारण अपनी आवाज और अधिकारों से वंचित थीं, तब अहिल्या ने निडर होकर महिलाओं के घरेलू शोषण के खिलाफ एक आवाज उठाई। भले ही अहिल्याबाई गर्भवती थीं, लेकिन उन्होंने अपनी सेविका कृष्णा के लिए लड़ाई लड़ी, जो अपने पति द्वारा घरेलू शोषण का शिकार थी। अहिल्या को महिलाओं का इस तरह का अपमान बर्दाश्त नहीं था और वो इस मामले को दरबार में ले जाती हैं ताकि इस मुद्दे को हल किया जा सके और कृष्णा जैसी सभी महिलाओं को न्याय मिल सके, जो इस तरह के दुर्व्यवहार का सामना करती हैं, लेकिन इस बारे में अपने पतियों के खिलाफ कुछ भी बोलने से डरती हैं।
अपने समय से आगे की महिला, अहिल्याबाई ने हमेशा अपनी जरूरतों से पहले अपने राज्य के लोगों को प्राथमिकता दी और समाज में अपार योगदान दिया। उनकी उदारता और बहादुरी हर महिला को हमेशा प्रेरित करेगी।
शो में अहिल्याबाई होल्कर की भूमिका निभा रहीं एतशा संझगिरी ने कहा, “हमारे समाज में घरेलू शोषण एक गंभीर मुद्दा है, जिसका एक महिला के स्वास्थ्य और खुशियों पर गहरा असर पड़ता है। लगातार इस तरह का व्यवहार किया जाना नैतिक रूप से अनुचित है। जहां कुछ महिलाएं खुद पर होने वाली घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ने में सक्षम हैं, वहीं कुछ ऐसी भी हैं जो इस बारे में बोल नहीं पाती हैं। तो आप सोच सकते हैं कि अहिल्याबाई होल्कर के दौर में क्या हालात रहे होंगे।
शो के वर्तमान ट्रैक में दिखाया गया है कि कैसे एक ऐसे युग में, जहां महिलाओं को कभी भी बोलने की इजाजत और कोई महत्व नहीं दिया जाता था और उन्हें बस अपने घरों की चार दीवारों तक सीमित रहकर अपमान का सामना करना पड़ता था, वहां अहिल्याबाई ने निडर होकर घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई ताकि उन सभी महिलाओं को न्याय मिल सके, जो असल में सम्मानजनक व्यवहार की हकदार हैं। अपने समय से आगे की महिला, अहिल्याबाई ने हमेशा अपनी जरूरतों से पहले अपने राज्य के लोगों को प्राथमिकता दी और समाज में अपार योगदान दिया। उनकी उदारता और बहादुरी हर महिला को हमेशा प्रेरित करेगी। और मैं अपनी ज़िंदगी के हर दिन इस भूमिका को निभाकर कृतज्ञ महसूस करती हूं क्योंकि अहिल्याबाई होल्कर के साहस, धीरज और दृढ़ संकल्प को करीब से देखने के बाद यह मेरे लिए ज़िंदगी बदलने वाला अनुभव रहा है।”