नई दिल्ली। आराम पसंद लाइफस्टाइल और फैटी फूड से दिल के रोगों का ही नहीं, डीवीटी यानी डीप वीन थ्रॉम्बोसिस का खतरा भी बढ़ रहा है। डीवीटी शरीर की गहराई में खून का थक्का बन जाने को कहते हैं। इस तरह के थक्के पिंडलियों, जांघों, किडनी, दिमाग, आंतों और लिवर में बन सकते हैं। इस खतरे की चपेट में अब बड़ी उम्र के लोग या किसी कारण से चल फिर न पाने वाले ही नहीं, युवा और बच्चों भी आने लगे हैं। कई बार जॉइट रीप्लेसमेंट सर्जरी और गंभीर किस्म के एक्सीडेंट के मामलों में की जाने वाली सर्जरी के कारण भी फ्री हुए टिश्यू और फैट में मिल जाते हैं, जो कि डीवीटी की वजह बनते है। वास्तव में डीवीटी का सबसे बड़ा जोखिम यह है कि जब थक्का के टुकड़े अन्तरू शल्य हो जाते हैं। तो यह खून के साथ फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। यह प्रक्रिया ‘‘पलमोनरी एम्बोजिम’’ कहलाती है। यह एक ऐसी स्थिति जो एक साधारणत या जिंदगी के लिए बहुत डरावनी होती है। मुबंई स्थित पी.डी.हिंदुजा नेशनल अस्पताल के हेड, आर्थोपेडिक्स डा.संजय अग्रवाला का कहना है कि थक्का के फेफडों में जाने के समय से लेकर 30 मिनटों के अंदर एक व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है। लगभग 80 प्रतिशत डीवीटी के रोगियों में यह पाया गया हैं कि यह बीमारी कोई लक्षण प्रस्तुत नहीं करती। जो भी हो, यह कहा जाता है कि रोग-विशेषज्ञों के लिए भी यह एक गुप्त रोग की तरह होती है। इसके साथ इसे एक संभावित चुनौती मानकर जल्द से जल्द दूर करने की कोशिश की जानी चाहिए तथा इसके बारे में भलीभांति जानना भी चाहिए। डीवीटी एक जिंदगी भर डराने वाली स्थिति की तरह होती है। कभी-कभी इसको ‘‘इक्नॉमी क्लॉस सिंड्रोम’’ भी कहा जाता है। क्योंकि इसके विकास के साथ ही इसकी बढने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। जब शरीर की विभिन्न गतिविधियां रूक जाती है जैसे लंबी व जटील हवाई यात्रा के दौरान पैरों का सून पड़ जाना। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शरीर के किसी भाग में खून जम जाता है। ज्यादातर पैरों की लंबी शिराओं में, हाथों, कंधों पर ऐसा होता है।
क्या होता असर
डा.संजय अग्रवाला का कहना है कि डीवीटी के कारण प्रभावित अंग में खून की सप्लाई पर असर पडने लगता है। इसके कारण दर्द, सूजन और प्रभावित अंग में भारीपन हो जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक डीवीटी में जो थक्के बनते हैं, उनके लंगस में पहुंचने पर अचानक सांस लेने में दिक्कत हो सकती हैं। ये अगर दिल या ब्रेन में पहुंच जाएं तो हार्ट अटैक या स्ट्रोक की वजह बन सकते हैं।
क्यों होता है डीवीटी
ज्यादातर लोग आजकल शारीरिक श्रम नहीं करते। चलने फिरने से भी उन्हें पहरेज रहता है। यह इसकी वजह बन सकता है। इसके अलावा जंग फूड और तंबाकू आदि का सेवन भी इस समस्या को बढ़ा रहा है. इसके कारण युवा और बच्चों तक इसकी चपेट में आने लगे हैं।
निदान और उपचार
डा.संजय अग्रवाला का कहना है कि आज कल डीवीटी का अल्ट्रासाउंड द्वारा भी पता लगाया जाता है। डॉक्टरों का विश्वास है कि इस तरीके का प्रयोग कर वह छोटे-छोटे थक्कों का पता लगा सकते हैं। थ्रोम्बोसिस का खून की जांच करके भी पता लगाया जा सकता है। जो कि एक बहुत अच्छा तरीका माना जाता है। एक ऐसी जांच जो क्लोटिंग सामग्री के बाय-प्रोडक्ट्ड्ढस के स्तर को मापती है डी-डीमर कहलाती है और इसका इस्तेमाल आजकल बहुत प्रचलन में हैं। डीवीटी के असरदायक प्रबंधन के लिए इसका जल्द निदान, शीघ्र रोग निरोधन और संपूर्ण इलाज निर्णायक हैं। जब आप बैठे हो तो पैरों के विभिन्न व्यायाम करने जैसे एडियों को घुमाना, पैरों की उंगलियों को हिलाना-डुलाना आदि करते रहना चाहिए। क्यों कि इससे पैरों में खून एकत्रित होने से बच जाएगा और इसके बाद शरीर में खून का प्रवाह लगातार बना रहेगा।
यह है इलाज
डा.संजय अग्रवाला के अनुसार डीवीटी के निदान के लिए इसमें आमतौर पर प्रारंभ में इंजेक्शन के जरिए हैपरीन की ऊंची मात्रा दी जाती है। मरीज को वारफैरीन की भी दवाई कुछ महीनों तक खाने के लिए निर्देशित की जाती है। जब तक यह रक्त विरलन दवाइयां ली जाती है मरीज को रोजाना अपने खून की जांच करानी पड़ती है कि मरीज सही तरीके से दवाइयां ले रहा है तथा वह हैमोरेज के खतरे में तो नहीं है। डीवीटी के लक्षणों से बचने के लिए दर्द विनाशक व उस स्थान पर गर्मी पहुंचाने वाली दवाइयां लेने की डॉक्टर द्वारा राय दी जाती है। इसके बाद मरीज कहीं भी आ जा सकता है। जवान लोगों में डीवीटी की संभावना बहुत कम होती है, जिनकी उम्र 40 तक होती उनमें यह बीमारी आमतौर पर होती है। लोगों को अपनी लाइफ स्टाइल में सुधार करना चाहिए और खानपान में संयम बरतना चाहिए। अगर इसके बाद भी किसी कारण से डीवीटी की समस्या पैदा होती है तो उसे दवाओं और इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी की मदद से ठीक किया जा सकता है। एक्सीडेंट या सर्जरी के कारण होने वाले डीवीटी के मामलों में कई बार रोका नहीं जा सकता है, लेकिन लाइफ स्टाइल के कारण पैदा हुई समस्या को हम रोक सकते हैं।
