नई दिल्ली। भारतीय कृषि रसायन उद्योग ने हाल ही में निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है, और विशेषज्ञों का मानना है कि यह अगले चार वर्षों में 80,000 करोड़ रुपए के आंकड़े को पार कर सकता है। एग्रो कैम फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसीएफआई) ने यहां अपने नॉलेज पेपर—‘इंडियन एग्रोकैमिकल इंडस्ट्रीः द स्टोरी, द चैलेंजेज, द एस्पीरेशन्स’—में इस उद्योग की संभावनाओं और चुनौतियों पर प्रकाश डाला।
नॉलेज पेपर के अनुसार: भारतीय कृषि रसायन उद्योग की गुणवत्ता और सस्ते दामों के कारण इसके उत्पाद 130 देशों में लाखों किसानों की पहली पसंद बने हुए हैं। उद्योग के दिग्गजों का कहना है कि अगर इस क्षेत्र को अनुकूल माहौल प्राप्त होता है, तो यह अगले चार वर्षों में 80,000 करोड़ रुपए के निर्यात आंकड़े को पार कर सकता है।
प्रस्तावित उपाय: पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाना: नए कृषि रसायनों के लिए पंजीकरण प्रक्रिया को अधिक सुगम और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। एमआरएल नियमों का अनुकूलन: कृषि रसायनों के लिए देशों के साथ अनुकूल और समन्वित मैक्सिमम रिजिडुअल लेवल (एमआरएल) नियम बनाना आवश्यक है। जीएसटी में कटौती: कृषि रसायनों पर वर्तमान 18 फीसदी जीएसटी को घटाकर 5 फीसदी करने की सिफारिश की गई है।
एसीएफआई के चेयरमैन, परीक्षित मुंध्रा ने पैनल चर्चा के दौरान कहा, “जेनेरिक मॉलीक्यूल्स की निर्भरता, कृषि रसायनों का कम उपयोग, और जटिल पंजीकरण प्रक्रिया ऐसी चुनौतियाँ हैं जिन्हें ‘मेक इन इंडिया’ के माध्यम से अवसरों में बदला जा सकता है।” उन्होंने यह भी कहा कि कृषि क्षेत्र 3.8-4 फीसदी की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इसे 9.3 फीसदी की वार्षिक वृद्धि दर से विकसित किया जाना चाहिए।
पैनल चर्चा में अन्य प्रमुख वक्ता जैसे परीक्षित झावेर, संस्थापक और प्रमोटर, टैगरोस कैमिकल्स, राजेश अग्रवाल, एमडी, इन्सेक्टीसाईड्स इंडिया लिमिटेड, अंकुर अग्रवाल, एमडी, क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन लिमिटेड, मिस आशीष कसद, सीनियर पार्टनर, ईवाय, और मौलिक मेहता, सीईओ, दीपक नाइट्राइट लिमिटेड ने भी ‘मेक इन इंडिया’ पहल के अंतर्गत भारतीय कृषि रसायन उद्योग को वैश्विक निर्माण और निर्यात शक्ति में बदलने की क्षमता पर जोर दिया।
एसीएफआई के महानिदेशक, डॉ. कल्याण गोस्वामी ने कहा, “भारत का कृषि रसायन उद्योग फसलों की उत्पादकता बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जबकि भारत दुनिया के चौथे सबसे बड़े कृषि रसायन उत्पादक के रूप में उभरा है, हमें चीन जैसे देशों से बड़े पैमाने पर आयात करना पड़ता है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल इन चुनौतियों को अवसरों में बदलकर भारत को कृषि रसायनों के निर्माण और निर्यात हब के रूप में स्थापित करने की क्षमता रखती है।”