शाह की सियायसत वाया हार्दिक-राहुल

सुभाष चंद्र

गुजरात विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजर है। इसे इसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं। इसी सूबे से भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह आते हैं। इसी सूबे की मिसाल बीते चार साल से प्रधानमंत्री पूरे देश को देते आए हैं। इसी सूबे में दो दशक से अधिक समय तक भाजपा सत्ता में है। इसी सूबे से मुकेश अंबानी और गौतम अडानी आते हैं, जिनकी बातेें समूचा विपक्ष गाहे-बेगाहे करता है। ऐसे में खुद ब खुद पूरे देश टकटकी लगाए हुए है कि यहां शाह और मोदी की जोडी कौन-सा रंग दिखाएगी ?
गुजरात में चुनाव है और हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश की जोड़ी भाजपा के लिए सिरदर्द बनी हुई है। यही मुद्दा अमित शाह से बातचीत में भी छाया रहा। चूंकि बातचीत पूरी तरह अनौपचारिक थी इसलिए पत्रकार भी खुलकर सवाल पूछ रहे थे और अमित शाह भी बेबाक होकर जवाब दे रहे । इस अनौपचारिक बातचीत को मानें तो भाजपा चाहती है कि किसी भी तरह हार्दिक पटेल और कांग्रेस में समझौता हो जाए क्योंकि अमित शाह इसी दोस्ती में बीजेपी की जीत देख रहे हैं।
भाजपा मुख्यालय में दीपावली मिलन कार्यक्रम के नाम पर पत्रकारों का भारी जमावड़ा लगा था। लंच पर चर्चा करते हुए अमित शाह ने कहा कि अभी तक पाटीदार हार्दिक के साथ हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि हार्दिक समाज की लड़ाई लड़ रहे हैं, कांग्रेस की लड़ाई नहीं। जिस दिन कांग्रेस और हार्दिक एक हो जाएंगे भाजपा से नाराज़ पाटीदार समाज वापस भाजपा के पास ही लौटेगा। अमित शाह की इस दलील में कितनी सच्चाई है इसका अंदाज़ा गुजरात के एक वरिष्ठ पत्रकार की बात से लगता है। उन्होंने कहा कि यह हार्दिक पटेल की सबसे बड़ी परीक्षा है। हार्दिक इस वक्त गुजरात के अलग-अलग शहरों में यात्रा कर रहे हैं। हार्दिक ही इकलौते नेता हैं जो चुनाव प्रचार पर निकल चुके हैं। बाकी पार्टियों के नेता उम्मीदवार चुनने और रणनीति बनाने में जुटे हैं। हार्दिक को उनके समाज की तरफ से साफ रिपोर्ट मिल रही है कि कांग्रेस के साथ हाथ मिलाना घाटे का सौदा हो सकता है। पटेल समाज हार्दिक के साथ तभी तक खड़ा रहेगा जब तक वे अकेले दम पर लड़ेंगे, वैसे भी उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है और वक्त आने पर पाने के लिए सब कुछ है।
हार्दिक से बात करने वाले कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कुछ पत्रकारों को बताया कि समर्थन देने से पहले हार्दिक पाटीदार समाज को आरक्षण देने का लिखित समझौता चाहते हैं और आरक्षण का फॉर्मूला भी उनका ही होगा। लेकिन ऐसा होना व्यावहारिक नहीं है। कांग्रेस की तरफ से हार्दिक को ऑफर दिया गया है कि अगर गुजरात में कांग्रेस की सरकार बनी तो पाटीदारों को आरक्षण दिया जाएगा और फिर 2019 में जब केंद्र में राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे तब संसद से नया कानून पास करवाया जाएगा।
2019 के चुनाव में क्या होगा, उस पर भरोसा कर अभी 2017 में कोई समझौता कर ले, इतनी कमजोर समझ वाले हार्दिक पटेल नहीं है। इसीलिए हार्दिक पटेल के तेवर अब तल्ख हुए हैं। वे सीधे-सीधे राहुल गांधी को धमकी दे रहे हैं। भाजपा को इस हार्दिक से ज्यादा डर लगता है जो अल्पेश ठाकोर की तरह जल्दी से कांग्रेस के हाथ थामने को तैयार नहीं दिखते। गुजरात में अब तक चुनाव दो दलों के बीच ही होता रहा है। हार्दिक इस चुनाव को तिकोना भी बना सकते हैं। भाजपा को तिकोने चुनाव से भी ज्यादा चुनाव बाद के हालात का खौफ है। हार्दिक पूरी तरह पटेल समाज के आंदोलन के प्रतीक हैं। अगर वे कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाते और अपनी भूमिका अलग ही रखते हैं तो आगे भाजपा को जबरदस्त परेशान करने वाले हैं. उनकी वजह से 2019 का चुनाव भी खराब हो सकता है क्योंकि उस वक्त तक हार्दिक पटेल 25 की उम्र पार कर चुके होंगे और खुद चुनाव भी लड़ सकते हैं।
अमित शाह की बातें सुनने वालों को लगा कि भाजपा की दिली इच्छा है कि हार्दिक जितनी जल्दी हो राहुल गांधी के साथ आ जाएं, जितनी ज्यादा हो सकें उतनी रैलियां उनके साथ मिलकर करें ताकि भाजपा खुलकर कह सके कि हार्दिक पटेल समाज के लिए नहीं बल्कि राहुल गांधी के लिए काम कर रहे थे। एक भाजपा नेता की बात गौर करने वाली थी। अगर साम-दाम-दंड-भेद से भी हार्दिक पटेल और राहुल गांधी एक साथ आ जाएं तो यह भाजपा के भविष्य के लिए बेहतर होगा, क्योंकि राहुल गांधी के साथ जो नौजवान नेता हाथ मिलाएगा उसका नतीजा अखिलेश यादव की तरह ही होगा।

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