4 जनवरी जन्मदिन पर यशस्वी गीतकार, ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत ‘नीरज’ के जन्म-दिवस पर बधाई !

4 जनवरी जन्मदिन पर यशस्वी गीतकार, ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत ‘नीरज’ के जन्म-दिवस पर बधाई ! इस मुबारक मौक़े पर उनके पाठकों व प्रशंसकों के लिए उन्हीं का यह गीत :
” गी त “
इसीलिए तो  नगर-नगर बदनाम हो गए  मेरे आंसू ;
मैं उनका हो गया कि जिनका कोई पहरेदार नहीं था||
जिनका दुख लिखने की ख़ातिर
मिली न इतिहासों को स्याही ,
क़ानूनों को नाख़ुश करके
मैंने  उनकी  भरी गवाही !
जले उमर-भर फिर भी जिनकी
अरथी उठी  अंधेरे  में  ही ,
ख़ुशियों की नौकरी छोड़कर
मैं उनका बन गया सिपाही !
पदलोभी आलोचक करता  कैसे दर्द पुरस्कृत मेरा ,
मैंने जो कुछ गाया, उसमें करुणा थी, शृंगार नहीं था||
मैंने चाहा नहीं कि कोई
आकर मेरा दर्द बंटाए,
बस यह ख़्वाहिश रही कि-
मेरी उमर ज़माने को लग जाए !
चमचम चूनर चोली पर तो
लाखों ही थे लिखने वाले ,
मेरी  मगर  ढिठाई  मैंने
फटी कमीज़ों के गुन गाए !
इसका ही फल है शायद, कल जब मैं निकला दुनिया में
तिलभर ठौर मुझे देने को  मरघट भी तैयार नहीं था||
कोशिश भी की किन्तु हो सका
मुझसे यह न कभी जीवन में ,
इसका  साथी  रहूं  जेठ  में
उससे प्यार करूं सावन में !
जिसको भी अपनाया उसकी
याद संजोई मन में ऐसी ,
कोई सांझ सुहागिन दीया
बाले ज्यों तुलसी-पूजन में !
फिर भी मेरे स्वप्न मर गए अविवाहित केवल इस कारण
मेरे पास सिर्फ़  कुमकुम था,  कंगन पानीदार  नहीं था||
दोषी है, तो बस इतनी ही
दोषी है मेरी तरुणाई ,
अपनी उमर घटाकर मैंने
हर आंसू की उमर बढ़ाई !
और गुनाह किया है कुछ, तो
इतना सिर्फ़ गुनाह किया है ,
लोग चले जब राजभवन को
मुझको याद कुटी की आई !
आज भले ही कुछ कह लो तुम, पर कल विश्व कहेगा सारा-
‘नीरज’ के गीतों में सबकुछ था, पर प्यार नहीं था ||
इसीलिए तो…

 

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