भोजपुरी को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाना है: कल्पना

छूट रही परंपरागत लोक शैली की विधाओं खंगाल रही है असम की भोजपुरिया सुरीली कंठ

लोकगायिकी खासकर भोजपुरी भाषा में हजारों गाने को अपने सुरीले कंठ से सजाने वाली कल्पना पटवारी अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। असम की बारपेटा का एक गांव सरभोग से ताल्लुक रखने वाली कल्पना गायन के यथार्थ में बहुत आगे निकल चुकी हैं। अब वह लोकगायिकी में नए प्रयोगों के दौर से गुजर रही है। अपनी गायिकी से परंपरागत रीति-रिवाजों और लोकशैली को खंगाल रही है। हाल ही में वह दलित स्त्री के जीवन पर आधारित एक फिल्म ‘लाइफ आॅफ आउट कास्ट’ की स्क्रीनिंग पर दिल्ली आईं थीं। प्रस्तुत हैं वरिष्ठ पत्रकार सुशील देव से की गई उनकी बातचीत के प्रमुख अंश-

कल्पना जी इस फिल्म की कहानी क्या है, आपने क्या गाया है?

यह दलितों के संघर्ष की कहानी है, खासकर महिलाओं की उत्पीड़न को दिखाया गया है जिसमें एक नई-नवेली वधु को कैसे कोई जमींदार अपने साथ पहली रात बिताने का दबाव बनाता है। असल में उस स्त्री की पीड़ा, वेदना और गुस्से पर आधारित एक शीर्षक गीत हमने हिंदी में गाया है। गाने के बोल फिल्म के लेखक-निर्देशक पवन श्रीवास्तव ने लिखा है। इस गाने को रिकार्ड करते हुए मैं स्वयं भावुक हो गई थी।

क्या हैं गाने के बोल, अगर आप बता सकें?

हां क्यों नहीं, गीत के बोल हैं- ‘अम्मा मोरी आज तुम मंगल गाना, अपने आंसुओं को पोंछ लेना और हो सके तो आज खूब हंसना।’ असल में इस गीत में बेटी होने का दर्द भी छिपा है कि कैसे पैदा होने, उसके लालन-पालन से उसकी शादी तक मां-बाप को उसकी सुरक्षा का ख्याल रखना पड़ता है और वह कैसे हमेशा समाज के दरिंदों से बचाने का संघर्ष करते हैं।

हाल ही में आपने कॉमनवेल्थ गेम्स में लोकगायिकी से भारत को रिप्रजेंट किया था, कैसा अनुभव रहा?

मेरे लिए यह सौभाग्य की बात रही कि देश भर से कॉमनवेल्थ गेम्स में लोक गायन के लिए मुझे चुना गया था। मुझे आस्ट्रेलियन सरकार से सीधे यह आॅफर मिला था। मगर दुख है कि बिहार और यूपी सरकार ने इसका संज्ञान भी नहीं लिया। खैर, मैं गौरवान्वित हूं कि मैंने वहां भोजपुरी में भिखारी ठाकुर के गीत गाए जिसमें उनकी प्रसिद्ध कृति ‘गंगा स्नान’ प्रमुख है। वहां भव्य मंच के सामने प्रशांत महासागर और जल तत्वों से सजी महफिल ने चार-चांद लगा दिया।

आपने भोजपुरी समेत कई भाषाओं में कई हजारों गीत गाए हैं, अब आगे क्या?

आपने सही कहा। मैंने अब तक करीब 30 भाषाओं में 17-18 हजार गाने गा चुकी हूं। अब मैं लोकगायिकी में कुछ शोध एवं प्रयोगों में लगी हुई हूं। हाल में मैंने बिहार के लोक कलाकार भिखारी ठाकुर पर बहुत काम किए हैं और आगे भी कर रही हूं। मैथिली भाषा में काम करना चाहती हूं। कवि विद्यापति और महेंद्र मिश्र जैसे महान हस्तियों की रचनाओं को गाने की कोशिश में लगी हुई हूं। मगर मैं असमिया लोक संगीत पर भी काम कर रही हूं। वहां भी लोक गायिकी की कई विधाएं हैं जो बेहद रोचक और महत्वपूर्ण हैं।

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री या गानों की वर्तमान हालत कैसी है?

संभावनाएं बहुत हैं, मगर संतोषजनक कार्य कम हो रहे हैं। वजह भोजपुरी को सरकार की ओर से पर्याप्त मदद नहीं मिल पा रही। केंद्र या राज्य स्तर पर सहयोग मिले तो यह इंडस्ट्री बहुत आगे होगी। देखिए न, मुंबई में रहकर हमलोग भोजपुरी में गा रहे हंै। मुंबई शहर ही भोजपुरी फिल्म उद्योग भी चला रहा है। कई लोग तो पैसे नहीं कमा रहे तब भी लगातार इस विधा में काम कर रहे हैं। इसलिए गानों या फिल्मों के स्तर के लिए केवल इंडस्ट्री को दोष देना उचित नहीं।

तो क्या लगता है कि कोई भी सरकार इसके लिए आगे नहीं आ रही?

नहीं आ रही। अगर आगे आती तो भोजपुरी भाषा में स्तरीय और जो छूट गया है यानी पौराणिक-पारंपरिक लोक गायिकी के कई पहलुओं पर अभी काम नहीं हो पाए हैं। उसे करने की जरूरत है। मगर आर्थिक अभाव में यह काम नहीं हो पा रहे। भिखारी ठाकुर की स्मृति में मनाया जाने वाली उनकी जयंती समारोह की उदासीनता इस बात का द्योतक है। हमने स्वयं पता किया तो पता चला कि इस काम के लिए मिले पैसों का बंदरबांट हो जाता है और उनके समारोह की औपचारिकता निभा दी जाती है।

विदेशों में भोजपुरी लोकप्रिय है, फिर आर्थिक रूप से कमजोरी का सवाल कैसे?

सही कहा आपने। मैंने भी देश-विदेशों में प्रोग्राम किए। सूरीनाम, त्रिनिदाद, टोबैगो, गुयाना, मॉरीशस में लोग जितने उत्साहित और प्रसन्न दिखते, उतना अपने यहां नहीं। वहां के लोग अपनी पुरानी लोक परंपराओं और प्रयोगों पर खुश होते हैं। वह लोक धरोहरों को संजोना चाहते हैं। एक कारण यह भी है कि यहां के प्राइस टैग सस्ते हैं, मुझे लगता है कि हमारे भोजपुरी के बेहतरीन गाने 25 से 35 रूपए में बिके होंगे। मगर जब से मैंने समझा है कि भोजपुरी के शख्सियतों की रचनाओं में कितना दम है तबसे सस्ते में नहीं गाना चाहती। कम से कम भिखारी ठाकुर को इस कदर नहीं बेचूंगी। फिर लंदन के एक स्टूडियो में मैंने उनका एक गाना 195 रूपए में रिकार्ड किया।

अब आपका लक्ष्य क्या है?

अपनी गायन शैली से भोजपुरी को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाना। इस भाषा में ग्रास रूट पर जाकर काम करने की जरूरत है। भोजपुरी की रचनाओं को संरक्षित रखने की कोशिश करना। इन दिनों लोक गायिकी में मैं बिहार-यूपी और असम के गीतों पर काम कर रही हूं। हाल ही में मैंने कोक स्टूडियो के साथ मिलकर फ्यूजन के जरिए विरहा गाया। श्रोताओं ने उसे खूब पसंद किया। अब ‘एंथोलॉजी आॅफ बिहार’ और ‘लीगेसी आॅफ भिखारी ठाकुर’ के साथ धोबिया कल्ट पर भी काम करना चाहती हूं। असल में अब मैं अपने गीत-‘ऐ गणेश के पापा’ या ‘गवनवां ले जा राजा,’ से उपर उठकर भी काम करना चाहती हूं।

सुशील देव

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