ऑपरेशन ज़ेपेलिन: हिंडनबर्ग रिपोर्ट के खिलाफ अदाणी समूह का रणनीतिक प्रत्युत्तर

 


नई दिल्ली। हिंडनबर्ग रिसर्च – उस फोरेंसिक फाइनेंशियल फर्म का नाम एक ऐसे एयरशिप से प्रेरित है जो 1937 में न्यू जर्सी पहुंचने पर जलकर राख हो गया था। इस फर्म ने जनवरी 2023 में अदाणी समूह पर निशाना साधते हुए उसे “कॉर्पोरेट इतिहास का सबसे बड़ा धोखा” बताया था। इसके जवाब में जो गुप्त अभियान चलाया गया, उसका नाम था – ऑपरेशन ज़ेपेलिन, जिसे प्रथम विश्व युद्ध में जर्मन डिरिजिबल एयरशिप्स की तर्ज पर नामित किया गया था।

रिपोर्ट के आने के बाद, अदाणी समूह के शेयरों में भारी गिरावट आई, और समूह की सबसे बड़ी पब्लिक ऑफरिंग को रद्द करना पड़ा। एक समय ऐसा प्रतीत हुआ मानो गौतम अदाणी का साम्राज्य ढहने की कगार पर हो। लेकिन यह छवि जल्द ही बदल गई।

अदाणी समूह ने पब्लिक रिलेशंस, कानूनी रणनीतियों और वित्तीय सुधारों का सहारा लेकर स्थिति को संभाला। इस पुनः वापसी को मजबूती देने में एक गुप्त अभियान की अहम भूमिका रही, जिसमें सूत्रों के अनुसार, एक इजरायली खुफिया एजेंसी की सहायता भी शामिल थी।

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ठीक उस समय आई जब गौतम अदाणी इज़राइल में 1.2 अरब डॉलर के हाइफ़ा पोर्ट अधिग्रहण को अंतिम रूप देने पहुंचे थे। यह अधिग्रहण इज़राइल की दशक की सबसे बड़ी निजीकरण परियोजना थी। सुरक्षा जांचों के बाद अदाणी पोर्ट्स और गडोट के ज्वाइंट वेंचर ने इसे हासिल किया।

रिपोर्ट के बीच, हाइफ़ा पोर्ट पर एक निजी बैठक में इज़राइली नेतृत्व ने अदाणी से आरोपों पर सवाल किया, जिस पर उन्होंने इन्हें “पूर्णतः असत्य” बताया। बैठक में एसशेल अर्मोनी, जो पोर्ट चेयरमैन और पूर्व मोसाद अधिकारी थे, की उपस्थिति भी मानी जाती है।

कुछ इज़राइली अधिकारियों ने इसे भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे को नुकसान पहुंचाने का प्रयास माना, जिसे चीन के प्रभाव के मुकाबले एक रणनीतिक उत्तर के रूप में देखा जा रहा था।

भारत लौटकर अदाणी ने ऋण चुकाने, प्रमोटर शेयर गिरवी कम करने और निवेशकों का विश्वास पुनः प्राप्त करने जैसे उपाय किए। साथ ही, शुरू हुआ ऑपरेशन ज़ेपेलिन – हिंडनबर्ग की कार्यप्रणाली और उसके सहयोगियों की पहचान करने हेतु एक गुप्त जांच।

सूत्रों के अनुसार, न्यूयॉर्क स्थित हिंडनबर्ग कार्यालयों और उसके संस्थापक नेथन एंडरसन पर निगरानी रखी गई। जांचकर्ताओं ने वकीलों, पत्रकारों, हेज फंड्स और राजनैतिक हस्तियों के बीच एक वैश्विक नेटवर्क को उजागर किया, जिनमें से कुछ का संबंध चीनी हितों और कुछ का वाशिंगटन के शक्ति केंद्रों से था।

शिकागो के ओकब्रुक टेरेस क्षेत्र में एक ठिकाने में घुसपैठ कर जासूसों ने भारत, अमेरिका, यूरोप, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के सक्रिय संगठनों के बीच एन्क्रिप्टेड संचार का भी पर्दाफाश किया।

जनवरी 2024 में स्विट्ज़रलैंड यात्रा के दौरान गौतम अदाणी को इस पूरे ऑपरेशन की जानकारी दी गई। उन्होंने प्रतिक्रिया में शोर नहीं, रणनीति चुनी। अंतरराष्ट्रीय कानूनी और खुफिया सलाहकारों की एक टीम बनाई गई। अहमदाबाद में एक उच्च तकनीकी नियंत्रण केंद्र स्थापित किया गया।

अक्टूबर 2024 तक, ‘ज़ेपेलिन डोज़ियर’ 353 पृष्ठों का हो चुका था। कथित तौर पर, कुछ लीक दस्तावेजों ने अमेरिकी एजेंसियों और मीडिया संस्थानों के बीच संबंधों की ओर इशारा किया, जो अदाणी विरोधी नैरेटिव को बढ़ावा दे रहे थे।

नवंबर 2024 में अमेरिकी न्याय विभाग और SEC ने अदाणी और उनके अधिकारियों पर भारत में नवीकरणीय ऊर्जा अनुबंधों को लेकर रिश्वत का आरोप लगाया, जिसे समूह ने सिरे से खारिज किया।

इसके साथ ही, अदाणी समूह ने न्यूयॉर्क की दक्षिणी जिला अदालत में हिंडनबर्ग रिसर्च और नेथन एंडरसन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की तैयारी की। एक 7-पृष्ठी ड्राफ्ट कानूनी नोटिस तैयार कर एंडरसन को भेजा गया।

हालांकि प्रस्तावित बैठक हुई या नहीं, इसकी पुष्टि नहीं हो सकी, लेकिन 15 जनवरी 2025 को – हिंडनबर्ग रिपोर्ट के दो साल पूरे होने से ठीक एक सप्ताह पहले – हिंडनबर्ग रिसर्च ने औपचारिक रूप से अपने संचालन को समाप्त करने की घोषणा कर दी।

ऑपरेशन ज़ेपेलिन, जो व्यापार, कूटनीति और साइबर रणनीति का संगम था, शायद पूरी तरह कभी सामने न आए, लेकिन यह निश्चित रूप से कॉर्पोरेट इतिहास की सबसे साहसी वापसी रणनीति के रूप में याद किया जाएगा।

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