पिट्यूटरी ग्रंथि ट्यूमर का लक्षण हो सकता है हार्मोनल असंतुलन



पटना।
पिट्यूटरी ग्रंथि के ठीक से कार्य नहीं करने पर आमतौर पर अत्यधिक या कम हार्मोन का उत्पादन होता है, जिसके कारण पिंड (मास) बनने का खतरा पैदा हो जाता है। इस पिंड को ट्यूमर कहा जाता है, जो कैंसर रहित (बिनाइन) या कैंसर युक्त (मैलिग्नेंट) हो सकता है। इस ग्रंथि में ऐसे ट्यूमर अंतःस्रावी तंत्र और पिट्यूटरी ग्रंथि के सामान्य कामकाज में हस्तक्षेप करके कई गंभीर चिकित्सीय समस्याएं पैदा कर सकते हैं।

राहुल (बदला हुआ नाम)35 के हार्मोनल असंतुलन के कारण पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर हो गया था। वह काफी जगह इलाज कराने के बाद एग्रीम इंस्टीच्यूट फॉर न्यूरो साइंसेस न्यूरोसर्जरी के निदेशक डॉ. आदित्य गुप्ता के पास आए और वहां पर अपना इलाज कराया। एग्रीम इंस्टीच्यूट फॉर न्यूरो साइंसेस के न्यूरोसर्जरी के निदेशक डॉ. आदित्य गुप्ता का कहना है कि, “हालांकि 30 साल की उम्र के बाद ट्यूमर की घटना होने की अधिक संभावना होती है, लेकिन यह कम उम्र के लोगों को भी प्रभावित कर सकता है। रोगी की जीवित रहने की दर ट्यूमर के जटिल स्थान पर होने के अलावा, रोगी की उम्र, ट्यूमर के आकार और प्रकार जैसे अन्य कारकों पर भी निर्भर करती है। ज्यादातर, पिट्यूटरी ग्रंथि ट्यूमर कैंसर रहित होते हैं, लेकिन इसके सटीक कारण अज्ञात हैं। उनमें से कुछ वंशानुगत होते हैं और कुछ दुर्लभ अनुवांशिक विकार के कारण होते हैं, जिन्हें मल्टीपल इंडोक्राइन नियोप्लासिया टाइप 1 कहा जाता है। यह डिसआर्डर भी 3 अलग-अलग अंतःस्रावी-संबंधित ग्रंथियों की अधिक क्रियाशीलता या ग्रंथियों के बड़े होने का कारण बन सकता है, जिसमें पिट्यूटरी ग्रंथि भी शामिल है।’’

शरीर में हार्मोन में अंतर के आधार पर, इसके लक्षण अलग- अलग हो सकते हैं। इसके सबसे आम लक्षणों में षामिल हैं – सिरदर्द, दृष्टि की समस्या, थकावट, मूड में उतार- चढ़ाव, चिड़चिड़ाहट, महिलाओं में मासिक धर्म चक्र में परिवर्तन, नपुंसकता, इनफर्टिलिटी, स्तन में अनुचित वृद्धि या स्तन दूध का उत्पादन, कुशिंग सिंड्रोम जिसमें वजन भी बढ़ता हैै, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, और हल्का मानसिक और षारीरिक चोट लगना, ग्रोथ हार्मोन में बहुत अधिक वृद्धि होने के कारण हाथ- पैर या किसी अंग का बड़ा होना, खोपड़ी और जबड़े की मोटाई में वृद्धि आदि।

पिट्यूटरी ग्रंथि मास्टर ग्लैंड के नाम से भी जाना जाता है। डॉ. गुप्ता के अनुसार, “उपचार के प्रत्येक सत्र में आमतौर पर लगभग 30 -50 मिनट तक का समय लगता है और यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत सस्ती है। इस तरह के जटिल ट्यूमर में इसकी सफलता दर 98 प्रतिशत होती है। पिट्यूटरी एडेनोमास से पीड़ित मरीजों को साइबरनाइफ के साथ स्टीरियोटैक्टिक रेडियो सर्जरी की जाती है और 12 महीने से अधिक समय इस पर नजर रखी जाती है। उपचार के 2-3 हफ्तों के बाद रोगी की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं की निगरानी की जाती है और सुनिश्चित किया जाता है कि किसी भी पिंड की पुनरावृत्ति न हो। साइबरनाइफ के साथ स्टीरियोटैक्टिक रेडियो सर्जरी पिट्यूटरी एडेनोमा के लिए प्रभावी और सुरक्षित इलाज है।“

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