राजबीर देसवाल : ऐसा पुलिस अधिकारी जिसके हाथ में डंडे की बजाय कलम


नई
दिल्ली/ टीम डिजिटल। हरियाणा का एक ऐसा पुलिस अधिकारी भी है जो हाथ में डंडे की बजाय कलम रखते रहे । अब एडिशनल डी जी के पद से सेवानिवृति से पहले फतेहाबाद , अम्बाला , हिसार , सोनीपत , करनाल , गुड़ग़ाव आदि जिलों में एसपी रहे राजबीर देसवाल का लेखन में सदैव दखल रहा । द ट्रिब्यून के संपादकीय पृष्ठ पर रोचक मिडल पढने को मिलते हैं तो विश्वास नहीं होता कि ये पुलिस अधिकारी लिख रहा है । शेव करने का ऐसा रोचक मिडल पीस लिखा कि आज तक याद है ।

मूल रूप से जिला जींद के अँटा गांव निवासी राजबीर देसवाल की नयी पुस्तक “ ब्राइड स्वैप”कुछ दिन पहले ही रिलीज़ हुई है । देहात की पृष्ठभूमि । घूँघट और कपड़ों में लिपटी दो दुल्हनो की अलटा पलटी को बड़े रोचक ढंग से बयान किया है देसवाल ने. रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से एम ए अंग्रेजी , दिल्ली यूनिवर्सिटी से एल एल बी के बाद किसान ट्रस्ट के पत्र रीयल इंडिया में और फिर राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान , करनाल के सम्पादक रहे और Indian पुलिस जर्नल के कार्यकारी संपादक रहे यानी पत्रकारिता से जुडे रहे । सन् 1983 में राज्य पुलिस सेवा में प्रथम रहे और डीएसपी के रूप में ज्वाइन किया । १९९१ में IPS बने. दिल्ली में चार वर्ष भारत सरकार  में सेवाएं दीं । अमेरिका व इंग्लैंड में प्रशिक्षण लिया भी और स्वदेश लौट कर उस प्रशिक्षण को लगभग दो दर्जन पुलिस संस्थानों में लागू किया
– लेखन का शौक कब लगा ?
– बचपन से ही । सातवीं कक्षा में रहा होऊंगा जब लिखना शुरू कर दिया । पत्र पत्रिकाओं में लैटर टू एडीटर लिखने का शौक था और मेनका गांधी के साप्ताहिक “सन”से पहली बार पांच रुपये का मनीआर्डर मिला । जो खुशी उन पांच रुपयों से मिली थी आज एक आर्टिकल के पांच हजार रुपये पाकर भी नहीं मिलती । काॅलेज मैगजीन में लिखा ।
– आप अनेक विधाओं और कलाओं में अपना हुनर दिखाते हो । बतायेंगे कौन कौन सी कलाएं हैं ?
– संगीत , एक्टिंग , फोटोग्राफी और लेखन तो है ही । मोटिवेशनल लैक्चर्ज भी ।
– लेखन का उद्देश्य ?
– अभिव्यक्ति में मजा आता है । बहुत लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं । सुकून मिलता है लिखकर ।
– हरियाणवी फिल्मों में क्या कमी रह जाती है जो लोकप्रिय नहीं हो पातीं ?
– बाॅलीवुड में हरियाणवी बोली तो लोकप्रिय हो गयी । बोली को स्थान मिल गया लेकिन हम फिल्म में आमिर खान को देखकर “दंगल “देखते हैं और सलमान को देखकर “सुल्तान” । हरियाणवी बोली को आज भी तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं । रणदीप हुड्डा ने जगह बनाई – नेशनल हाईवे व सरबजीत फिल्मों से । वैसे बदलाव आ रहा है ।
– कौन कौन सी पुस्तक लिखी ?
– “बारिशें गिरती रहीं” हिंदी में तो “रहगुजर” उर्दू में । “धनक रंग “ भी आई । अंग्रेज़ी में भी !
– कौन कौन से पुरस्कार मिले ?
– दो बार राष्ट्रपति अवार्ड “सराहनीय” और “उत्कृष्ट” सेवाओं के लिए । हरियाणा गौरव । करनाल की संस्था नीफ़ा का अवार्ड और हरियाणा साहित्य अकादमी का पंडित लखमीचंद पुरस्कार । विशेष साहित्य सेवी पुरस्कार । आजकल उच्च न्यायालय में वकालत करते हैं .
 कमलेश भारतीय, पत्रकार

Leave a Reply

Your email address will not be published.