क्या होता है वर्क-लाइफ बैलेंस, सद्गुरु ने बेहतरीन उदाहरण देकर समझाया


 

नई दिल्ली। तेजी से बदलती जिंदगी में लाइफस्टाइल में भी जबर्दस्त परिवर्तन देखने को मिला है। कामकाजी लोगों की जिंदगी में तो काम की भरमार है और वो हर सप्ताह के बाद मिलने वाले वीक ऑफ यानी छुट्टी का इंतजार करते हैं। भारत में कहीं पर कर्मचारियों को सप्ताह में एक वीक ऑफ मिलता है और कहीं पर दो। हालांकि, वीकेंड का इंतजार ना केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में होता है। और इसी ऑफ को लेकर वर्क-लाइफ बैलेंस की बात छिड़ जाती है। हालांकि, वर्क-लाइफ बैलेंस यानी काम और जीवन में संतुलन क्या होता है, लोगों को पता ही नहीं। इस बैलेंस के बारे में स्वदेशी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, कू ऐप पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने एक बेहतरीन उदाहरण देते हुए समझाया।

सद्गुरु बताते हैं कि काफी समय पहले अमेरिका में उनके एक मित्र उन्हें एक रेस्टोरेंट ले गए। उस रेस्टोरेंट का नाम था टीजीआईएफ। सद्गुरु ने अपने मित्र से पूछा टीजीआईएफ का क्या मतलब है? उनके दोस्त ने जवाब दिया कि इसका मतलब होता है, ‘थैंक गॉड, इट्स फ्राइडे’।

उनके मित्र ने आगे कहा, “शुक्रवार दोपहर का मतलब होता है कि लोगों ने काम करना बंद कर दिया है और अब पार्टी के बारे में सोच रहा है।” सद्गुरु कहते हैं कि इसका मतलब है कि वे लोग वीकेंड के लिए जी रहे हैं। एक व्यक्ति जो सप्ताह भर झेलता है, वीकेंड के लिए जीता है, बहुत तुच्छ जीवन जीता है। क्यों ऐसा नहीं है क्या? ऐसा क्यों होता है कि आप सप्ताह का मजा नहीं उठाते? यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप यह अंतर ना करें कि क्या काम (वर्क) है और क्या जीवन (लाइफ) है। अगर आप जो कर रहे हैं वो आपकी जिंदगी नहीं है, तो कृपया ऐसा मत करें। जिस क्षण से हम पैदा होते हैं और जब तक मर नहीं जाते, हम तब तक केवल जिंदगी, जिंदगी और जिंदगी जी रहे होते हैं और कुछ भी नहीं, केवल जिंदगी। काम मौत की तरह नहीं होना चाहिए।

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