योग फॉर ह्यूमैनिटी : वास्तव में डिकोडिंग का अर्थ क्या है?

 

दीप्ति अंगरीश

पूरी दुनिया कोरोना महामारी को झेल चुकी है। अब जीवन सामान्य होने की प्रक्रिया में है। कोरोना के बाद बहुत सारे बदलाव हुए हैं। उन्हीं में एक है भू-राजनीतिक दुविधाएं। इस भू-राजनीतिक माहौल का असर आम आदमी के जीवन पर पड़ा है। भू राजनीति इस बात का अध्ययन करती है कि किस तरह उसके भौगोलिक तत्व राजनीति को प्रभावित करती है। इसकी दुश्वारियां हमें कोरोना के दौर में ही देखने को मिलीं। जो लोग कोरोना से संक्रमित हुए, उसके बाद अधिकतर लोगों में अवसाद, घबराहट, चिंता, कई मानसिक व शारीरिक बीमारियों के रूप में देखा गया है। हाल में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से एक अनुमान व्यक्त किया गया था, जिसके अनुसार पूरी दुनिया में करीब 280 मिलियन लोग अवसाद से पीड़ित हैं।
आज के अस्थिर परिदृश्य में, योग लाभकारी साबित हो सकता है। हम कह सकते हैं कि योग को जीवन का अहम हिस्सा बनाकर आप और हम अपनी कमियों को सुधार सुधार सकते हैं। जीवन को बेहतर बना सकते हैं। वर्ष 2020 में जब विश्व कोरोना महामारी की चपेट में था, उस समय हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने ’कोपिंग विद कोरोनावायरस चिंता’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था। इस लेख में बताया गया है कि कैसे योग और ध्यान से व्यक्ति तनावग्रसि्ेत माहौल में भी शांत रह सकता है। योग गामा-एमिनोब्यूट्रिक एसिड (जीएबीए) नामक एक मस्तिष्क रसायन के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है, जो बेहतर मूड और चिंताओं का ग्राफ नीचे लाता है। इस बात को दुनिया भर के शोधकर्ता भी स्वीकारते हैं। वे इस बात से सहमत हैं कि योग चिकित्सा अवसाद के लक्षणों को कम करके, प्रतिरक्षा को बढ़ाकर, हृदय की कार्यप्रणाली में सुधार करके और नींद के पैटर्न को बढ़ाकर, जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

भारतीय ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख है। भगवत गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने योग को लेकर कई बातें कहीं हैं। जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, उससे पहले अर्जुन की मानसिक अवस्था विचलित थी। गीता का उपदेश सुनने के बाद उनका तन और मन एकाग्र हुआ था और उन्होंने अपने लक्ष्य को हासिल किया। भगवत गीता के दूसरे अध्याय में, भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को योग की स्थिति में रहते हुए अपने कार्यों को लगातार करने के लिए कहा। यहां योग को सभी परिस्थितियों में समान मन के रूप में परिभाषित किया गया है।

योग का अर्थ है ’ईश्वरीयता’ और ’आध्यात्मिकता’ के गुणों को किसी के मन में प्रवेश करने देना। यह आत्म-साक्षात्कार है। यह किसी के मन को आत्मा के साथ मिलाने की क्षमता है। इतना ही नहीं, बौद्ध धम्म धैर्य, आत्मसंयम, सहनशीलता और समझ के गुणों की भी बात करता है, जो सदाचारी शासक बनाते हैं। योग से होने वाले लाभ व्यक्ति को स्वयं का एक बेहतर संस्करण बनाते हैं। योग आपमें नई उर्जा का संचार करता है।
हमें यह समझना चाहिए कि एक स्वस्थ दिमाग एक सामंजस्यपूर्ण समुदाय का केंद्र होता है। ’योग फॉर माइंड’ को बढ़ावा देने से एक कर्म योगी समुदाय प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, जहां हर सदस्य सभी परिस्थितियों में समभाव बनाए रखते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। इसके अतिरिक्त, योग रचनात्मकता को जगा सकता है, जो कभी-कभी दैनिक जीवन में पसरी नीरसता से भी मुक्ति दिलाता है। रचनात्मकता को प्रवाहित करने से आत्म-प्रेम और ध्यान को लाभ पहुंच सकता है। ऐसा समुदाय कहीं अधिक शांतिपूर्ण विश्व का आधार बनेगा। एक अर्थ में योग में क्रांति का स्रोत बनने की क्षमता है, जो हमें हमारे दुखों से बाहर निकालती है।

योग मन को स्वस्थ करने के साथ-साथ शरीर को भी स्वस्थ करता है। आजकल कई रोग हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हैं। डॉक्टरों के अनुसार इनका कारण है बिगड़ी लाइफस्टाइल। इन रोगों को ठीक करने में योग बेहद लाभकारी है। योग पीठ दर्द से राहत दिलाने और गठिया के लक्षणों को कम करने में मदद करता है। योग को जीवन का अहम हिस्सा बनाकर वे योग शक्ति और शरीर में ंसंतुलन और लचीलापन पा सकते हैं।

देश ही नहीं, पूरी दुनिया को निरोग करने के लिए भारत ने एक नई शुरुआत की है। बीते दिनों गुजरात में ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन की स्थापना की गई। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और विश्व स्वास्थ्य संगठन के महासचिव ने इसका उदघाटन किया। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार के बीच एक सहयोग है, जो योग सहित पारंपरिक दवाओं और प्रथाओं के क्षेत्र में अनुसंधान को गहरा करेगा। प्रमाणन कार्यक्रमों के माध्यम से दुनिया भर में योग एक्सपर्ट के ज्ञान और कौशल में तालमेल, गुणवत्ता और एकरूपता लाने के उद्देश्य से एक योग प्रमाणन बोर्ड (वाईसीबी) की स्थापना की गई है। यहां दुनिया के तमाम पुरानी चिकित्सा पद्धतियों पर काम होगा। इसका लाभ पूरी मानवता को मिलेगा। दिलचस्प बात यह है कि आयुष मंत्रालय के तहत मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान का विजन और मिशन ’योग के माध्यम से सभी के लिए स्वास्थ्य, सद्भाव और खुशी’ की स्थापना करना है।
भारत सरकार द्वारा आयुष मंत्रालय का गठन नौ नवंबर 2014 को किया गया था। इसका उद्देश्य भारत की प्राचीन पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के ज्ञान को पुर्नजीवित करने और स्वास्थ्य देखभाल में आयुष प्रणालियों के प्रयोग, विकास और प्रसार को सुनिश्चित करने के लिए किया गया। आयुष भारत की पारंपरिक चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों जैसे आयुर्वेद, योग, नैचुरोपैथी, यूनानी, सिद्धा, होम्योपैथी और सोवा रिग्पा का प्रतिनिधित्व करता है। इससे पहले वर्ष 1995 में इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन एंड होम्योपैथी (आईएसएमएंडएच) का गठन किया गया था, जोकि इस व्यवस्था के विकास के लिए जिम्मेदार था। वर्ष 2003 में इसका दोबारा नाम बदलकर आयुर्वेद, योग और नैचुरोपैथी, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी विभाग रखा गया, इस विभाग का उद्देश्य आयुर्वेद, योग और नैचुरोपैथी, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी को शिक्षा और शोध को बढ़ावा देने का रखा गया।
अंतर्राष्ट्रीय योग 2022 के माध्यम से, आयुष मंत्रालय का लक्ष्य है कि योग का विश्व में प्रचार हो। आयुष मंत्रालय योग को वैश्विक बनाने के लिए लगातार काम कर रही है। जाति, धर्म, लिंग और वर्ग की बाधाओं को पार करते हुए, राजनीतिक सीमाओं के पार योग की शक्ति को बढ़ावा देने का एक अनूठा प्रयास है। स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने के सतत विकास लक्ष्य संख्या 3 के साथ योग के प्रचार को भी जोड़ा गया है।

एक शांतिपूर्ण आत्म और एक सामंजस्यपूर्ण दुनिया के लिए कभी-कभी एक अप्राप्य लक्ष्य प्रतीत होती है। हालांकि, आत्म-सुधार की दिशा में सचेत प्रयास करके, हम सामूहिक भलाई के लिए अपना योगदान सुनिश्चित कर सकते हैं। हमारे जीवन में जब योग अहम हिस्सा बन जाएगा, उसके बाद आत्म-सुधार अपने आप होता है। योग से हम एक बेहतर समाज और स्वस्थ्य दुनिया का निर्माण कर सकते हैं। आयुष मंत्रालय पूरी दुनिया को निरोग करने के लिए प्रतिपल काम कर रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.