कोरोना और भारतीय चिंतन

नवीन जोशी ‘नवल’

नई दिल्ली। १६ मार्च २०२० को एक विश्वपटल पर उदीयमान नेता ने समस्त विश्व के जनमानस की चिंता करते हुए वैश्विक आपदा कोरोना वायरस जनित संक्रामक रोग कोविड-19 से निपटने के लिए सभी दक्षेस देशों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से विचार विमर्श किया।
इससे पूर्व ईरान में फंसे भारतीयों के साथ साथ यथासंभव पड़ौसी देशों के नागरिकों को भी भारत से स्केनिंग किट साथ भेजकर सुरक्षित वापस लाने का सराहनीय कार्य कर दिखाया (इसकी कीमत वे जानते होंगे जो वहां फंसे थे)।
आज सभी दक्षेस देशों के शीर्ष नेतृत्व ने (एक को छोड़कर, जो चीन में फंसे अपने ही लोगों को स्वीकार न सका) एक स्वर से उनकी भूरि भूरि प्रशंसा की है।
गर्व का विषय है कि वह नेता मेरे देश का ही प्रधानमंत्री हैं।
संभवतः ‘सभी का भला हो, सभी निरोगी रहें’ इसी विचार से भारत विश्व गुरु रहा है।
इस कांफ्रेंस का परिणाम/क्रियान्वयन क्या होगा, कितना होगा यह तो आने वाले दिनों में ध्यान में आयेगा लेकिन आज पहल, प्रयास और सभी के सहयोग का आश्वासन व समर्थन से नीयत पर कोई शंका नहीं है। आज विश्व मान रहा है, WHO प्रसंशा कर रहा है, लेकिन भारतीय मीडिया लौबी, सोसल मीडिया आदि में यह नहीं दिख रहा है। वे प्रसंशा के मोहताज तो नहीं, लेकिन आखिर वो प्रधानमंत्री के साथ साथ एक मानव भी हैं, मनोबल तो बढ़ाने को देशवासियों का प्रयास होना चाहिए। मंत्र-संदेश “इस वैश्विक महामारी से घबराना नहीं, निपटना है” का अनुसरण करना भी उचित होगा।

वैज्ञानिक औषधि की खोज में प्रयत्नशील हैं, जल्द ही सुखद परिणाम आयेंगे। स्वच्छता रखें, सावधानी बरतें, हाथ धोते रहें। भारतीय सनातन पद्धति के अनुरूप मन, कर्म, आहार- व्यवहार रखें क्योंकि हमारी लाखों वर्षों की सांस्कृतिक परम्पराएं एवं उनपर आस्था भी वैज्ञानिकता पर आधारित है, यह उपहास का विषय नहीं, काफी हद तक रोगों के वाहक विषाणुओं को रोकने में सक्षम व मददगार है।
“सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:।।”

(लेखक विचारक हैं और स्वदेशी आंदोलन से जुडे हैं।)

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