नई दिल्ली। मुझे अच्छी तरह याद है । मैं सन् 1965 में नवम् जमात में पढ़ता था । सत्ताइस मई की दोपहर थी जब हमें एकत्रित कर हमारे प्रिंसिपल धर्मप्रकाश दत्ता ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के निधन की सूचना दी और दो मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि देकर छुट्टी कर दी । पर मुझे लगता है कि अभी नेहरु को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काम से छुट्टी नहीं दी ।
कोई भी काम बिगड़ जाए या बिगड़ने की आश॔का हो तो नेहरु ही उनकी जुबान पर आ जाते हैं । मुझे हंसी आती है एक हास्य प्रसंग याद करके । स्कूल में कुछ टूटता तो एक ही लड़के पर इल्जाम लगता । एक बार कोई टूट फूट हूई बेचारा बहुत जोर से रोने लगा । पूछने पर बोला कि स्कूल में कुछ भी हो जाए मेरा ही नाम लगता है । यही हाल पूर्व और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु का हो चुका है और यह लगता है कि जहां कहीं नेहरु होंगे उनकी आत्मा रो रही होगी अपना यह हश्र देख कर ।
अब दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी नेहरु ही साहब के काम आए । बोले कि क्या नेहरु भी साम्प्रदायिक थे जो पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा चाहते थे ? क्या वे हिंदू राष्ट्र बना रहे थे ? लीजिए । हो गया न नेहरु का उपयोग ? मुझे तो एक दिन लगा था जब हम चांद पर पहुंचने से ऐन आखिरी मौके पर चूक गये तो इसमें भी कहीं न कहीं पूर्व प्रधानमंत्री नेहरु का ही ही हाथ रहा होगा । नेहरु को तो पाठ्यक्रम से राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने हटवा दिया था । साहब तब भी मौन रहे थे ।
गांधी भी बड़े काम आते हैं साहब के । बस नोट से नहीं हटते बापू । नाथूराम गोडसे को प्रज्ञा ठाकुर महिमामंडित करती हैं तो साहब का दिल दुखी तो होता है पर वोट बैंक देख कर खामोश हो जाते हैं । प्रज्ञा अपना काम करती रहती हैं और साहब मन मसोस कर वोट गिनते रहते हैं । आप ही बताइए वोट बड़ी या गांधी ? आप के नेता और हमारे प्यारे हिसार में पले बढ़े केजरीवाल कह रहे हैं कि यदि काम करके भी हारा तो कोई भी काम की राजनीति नहीं करेगा । यह तो दिल्ली की जनता ने देखना है भाई ।
हां , चुनाव आयोग का कमाल देखिए कि पहली फरवरी की गलती पर नोटिस छह को देता है योगी आदित्यनाथ को । यह मिलीभगत कैसी लगी आपको ? कहते हैं कि सीबीआई तोता है तो क्या चुनाव आयोग तोता बनने की राह पर है ? अब शाहीन बाग को बाॅय बाॅय । फिर मिलेंगे । अगले किसी चुनाव में ।