क्या अस्तित्व का संकट है जदयू के सामने ?

सुभाष चंद्र

राजानीति में जब कोई भाव स्थायी नहीं होता है, तो इसके चरित्र को लेकर भी कोई यकीनी तौर पर नहीं कह सकता है। हाल के दिनों में जिस प्रकार से बिहार की राजनीति को लेकर जदयू-भाजपा में कई बातें कहने सुनने को मिल रही है और दिल्ली में पत्ते फेंटे जा रहे हैं, वह संकेत कर रहा है कि जदयू के लिए सबकुछ अच्छा नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने दोहरी चुनौती है। एक ओर गठबंधन को बचाने की और दूसरे ओर अपनी मलिकियत वाली पार्टी जदयू को सहेजने की। गठबंधन की चारों पार्टियों में अंदरखाने खींचतान चल रही है। दोनों छोटी पार्टियों रालोसपा और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा में ज्यादा बेचैनी है। पर जदयू और भाजपा में भी तालमेल बिगड़ा हुआ है। इसका संकेत जदयू के बड़े नेता और पिछली विधानसभा में स्पीकर रहे उदय नारायण चौधरी ने दिया है। चौधरी ने भविष्यवाणी करने
के अंदाज में कहा है कि भाजपा नीतीश कुमार के साथ अच्छा बरताव नहीं करेगी।
कई जानकार नेताओं का कहना है कि भाजपा अब भी उनके साथ अच्छा बरताव नहीं कर रही है और इसलिए नीतीश कुमार अलग राजनीतिक समीकरण बनाने में लगे हैं। एक खबर यह भी है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से नीतीश कुमार की बात नहीं हो रही है। हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि नीतीश कुमार के प्रयास करने के बावजूद बातचीत नहीं हो पाई या यूं ही कुछ समय से बातचीत नहीं हुई है। बहरहाल, जदयू के पूर्व सांसद और विदेश सेवा के अधिकारी रहे पवन कुमार वर्मा के कांग्रेस नेता मनीष तिवारी के किताब से जुड़े एक कार्यक्रम में मौजूदगी से भी चर्चा का नया दौर शुरू हुआ है। इस कार्यक्रम में शत्रुघ्न सिन्हा भी मौजूद थे, जो पिछले कुछ समय से लगातार अपनी पार्टी भाजपा के खिलाफ तेवर दिखा रहे हैं। पवन वर्मा ने इससे पहले गुजरात चुनाव की घोषणा में देरी पर ट्विट भी किया था और एक लेख लिख कर योगी आदित्यनाथ की राजनीति की आलोचना की थी।
तभी पवन वर्मा की मनीष तिवारी और शत्रुघ्न सिन्हा के साथ मौजूदगी के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। गौरतलब है कि सिन्हा के भाजपा छोड़ने और विपक्ष के साथ जाने की चर्चा है। यह भी कहा जा रहा है कि अगर किसी मुकाम पर भाजपा और जदयू की बात बिगड़ती है तो वे जदयू में भी जा सकते हैं। बहरहाल, कई बातों से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सत्तारूढ़ गठबंधन की चारों पार्टियां अपनी अपनी पोजिशनिंग कर रही हैं।
गौर करने योग्य यह भी है कि जन अधिकार पार्टी के संयोजक व सांसद पप्पू यादव ने दनवार गांव में जहरीली शराब से मृत लोगों के परिवारों से मिलने के बाद कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास जदयू को भाजपा में विलय कराने के अलावे अब और कोई राजनीतिक रास्ता नहीं बचा है। इसलिए वह शराब बंदी, बाल विवाह व दहेज कुप्रथा की अपने लिए मार्केटिंग कर रहे हैं। शराब का आधा राजस्व पड़ोसी राज्यों में जा रहा है, तो आधा अधिकारियों व नेताओं के यहां, जिससे 2020 के चुनाव की तैयारी की जा रही है। श्री यादव ने कहा कि राज्य भर में बड़ी संख्या में शराब पकड़ी गयी। पकड़ी गयी शराब की बोतलें कहां हैं? क्षेत्र में शराब बिकने के लिए क्या एमपी-एमएलए जिम्मेदार नहीं हैं? अगर सूबे में शराब पकड़ी जाती है, तो क्या नीतीश कुमार जिम्मेदार नहीं हैं? वह तो कहेंगे कि सरकार के संरक्षण में शराब बिक रही है। उन्होंने दहेज व बाल विवाह पर तंज कसते हुए कहा कि दोनों के लिए पहले से कानून है। नीतीश ने कौन सा नया कानून लाया है? जब सब वही है, तो फिर इसकी मार्केटिंग क्यों की जा रही है? कहते हैं कि लड़की वाले लिखकर दे कि दहेज नहीं दिया गया। ऐसे में तो बाद में कुछ होने पर लड़की वाले एक मुकदमा भी लड़के वालों पर नहीं कर सकते। यह सही नहीं है। जागरूकता के लिए काम होना चाहिए। अपनी मार्केटिंग के लिए नहीं। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में पक्ष-विपक्ष दोनों बाबाओं के आडंबर को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने राजनीतिज्ञों पर नक्सलियों को हथियार पहुंचाने का आरोप लगाते हुए कहा कि गरीबी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार राजनीतिज्ञ हैं। अब राजनीतिज्ञों के विरुद्ध धर्म युद्ध होना चाहिए, क्योंकि वे ईमानदारी से काम नहीं कर रहे हैं। हर तरफ बेरोजगारी व भूख बढ़ती जा रही है।

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