मिथिला में भाई-बहन के स्नेह का त्योहार है सामा चकेवा

सामा चकेवा बिहार में मैथिली भाषी लोगों का यह एक प्रसिद्ध त्यौहार है | भाई – बहन के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध को दर्शाने वाला यह त्यौहार नवम्बर माह के शुरू होने के साथ मनाया जाता है |इसका बर्णन पुरानों में भी मिला है | सामा – चकेवा एक कहानी है | कहते हैं की सामा कृष्ण की पुत्री थी जिनपर अबैध सम्बन्ध का गलत आरोप लगाया गया था जिसके कारण सामा के पिता कृष्ण ने गुस्से में आकर उन्हें मनुष्य से पक्षी बन जाने की सजा दे दी | लेकिन अपने भाई चकेवा के प्रेम और त्याग के कारण वह पुनः पक्षी से मनुष्य के रूप में आ गयी|

 

सुधीर कुमार

सामा-चकेवा भाई-बहन के प्रेम को समर्पित एक लोक पर्व है। इससे जुड़ी कई लोक कथाऐं हैं। एक कथा है कि भगवान श्री कृष्ण से शापित बेटी सामा व बेटा सांभ के अमर प्रेम की गाथा है जो बहन को शाप मुक्त कराने के लिए कठोर तपस्या करता है। दुसरी कथा है सर्दियों में पक्षी हिमालय से विस्थापित होकर समतल भूमि पर आ जाते है, जहाँ सर्दी कम पड़ती है। इन खूबसूरत और रंग बिरंगे पक्षियों के स्वागत में मिथिला में सामा चकेवा त्यौहार के रूप में मनाई जाती है।
यह त्यौहार सामा चकेवा नामक पक्षी के जोड़े के आगमन और स्वागत से शुरू होती है। बहने तरह तरह के मिट्टी से पक्षी बना उन्हें पारंपरिक तरीके से सजाती हैं। इस त्यौहार का अंत इस उम्मीद के साथ किया जाता है कि पक्षी फिर अगले वर्ष आवें और अपने चहचहाहट से मिथिलावासीयों को आनंदित करें।
दुसरी ओर भगवान श्री कृष्ण से जुड़े रहने की वजह से इस पर्व की महत्ता अधिक बढ़ जाती है। नेपाल व सम्पूर्ण मिथिलांचल में लोक पर्व छठ के दूसरे दिन से ही लड़कियां मनाने लग जाती है। अपने-अपने सहेलियों के संग प्रतिकात्मक रूप से मिट्टी की सामा-चकेवा, चुगला, भंवरा व अन्य मुर्तियां बनाती हैं। मूर्ति गढ़ने के दौरान लोक गीत-नाद की रसधारा बहती है। इसके बाद कार्तिक पूर्णिमा की संध्या सभी प्रतिकात्मक मूर्तियों को नदी – तालाब अथवा जोता हुआ खेत में विसर्जित करती हैं। विसर्जन के समय महिलाओं व लड़कियां सब के सब भावुक हो जाती है, सभी की आंखे डब-डबा जाती है। मिथिलावासीयों सामा के इस विदाई को बेटी की विदाई मानते हैं।
प्रतिदिन रात्रि समय बहने एक बांस की टोकरी में अपनी अपनी मूर्तियों को रख साथ ही एक दिया जलाकर जुते हुए खेतों में अपने भाइयों के साथ जाती हैं। बहने अपने अपने भाइयों के लम्बी उम्र की कामना मनोरंजक तरीके से करती हैं. भाई भी इस खेल में उपस्थित रहते हैं। यह सिलसिला प्रतिदिन रात्रि में होता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहने अपने भाइयों के साथ खेतों में जाती हैं और मूर्तियों को भाइयों के घुटने से तुड़वा उनकी लम्बी उम्र की कामना के साथ वहीं सामा चकेवा का विसर्जन कर देती हैं। भाइयों को मिठाई खिला अगले वर्ष फिर सामा चकेवा के आने की कामना के साथ घर वापस आ जाती हैं। साथ ही नई धान का चुड़ा और गुड़ बहनें भाईयों को देती है।
पदम पुराण के अनुसार
पदम पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की बेटी सामा चारुवक्र(चकेवा) से लूक-छुप प्रेम करती थी और सामा ने अपने पिता श्री कृष्ण की सहमति से ही चुपके से गांधर्व विवाह कर ली थी। इस विवाह से समाज व परिवार के अन्य लोग अनभिज्ञ थे। सावंत चूरक यानि चुगला ने सामा व चारुवक्र के खिलाफ षड्यंत्र रचकर महाराज भगवान श्री कृष्ण से न सिर्फ शिकायत की बल्कि पूरे राज्य मे सामा के चरित्रहीनता की भी अफवाह फैला दिया। महाराज श्री कृष्ण ने आजिज होकर सामा को दरबार मे हाजिर होने का आदेश दिया। सामा जब दरबार मे हाजिर हुई तो चरित्रहीनता को वंश का कलंक मानते हुए बिना जाने-सुने शाप दे दिया। उन्होंने कहा कि तुम आज और अभी से पक्षी बनकर वृन्दावन की जंगलो मे भटकती रहेगी।
पिता की शाप से जब सामा पक्षी बन गयी तो प्रेमी चारुवक्र ने सामा को नहीं पाकर उसकी तलाश मे निकाल पड़े। बेचारी पक्षी सामा तलाश मे जुटे चारुवक्र के कंधा पर बैठ पूरी घटना से अवगत कराई। सामा को पाने व मनोवांक्षित फल की प्राप्ति के लिए चारुवक्र ने भगवान विष्णु का वर्षों तक उपासना किया तो भगवान ने खुश होकर चारुवक्र से बोला क्या वर मांगते हो… मांगो… उसने सामा से मिलने की वरदान मांगा… भगवान विष्णु ने कहा की जिस किसी को तुम अपनी कथा सुनाओगे तो तुम भी पक्षी बन जाओगे। इसप्रकार तुम सामा से मिल सकते हो। सामा के भाई सांभ, सामा व चारुवक्र दोनों से असीम प्यार करता था और उनके प्रेम की असलियत भी जानता था। पिता के इस शाप से अपनी बहन व बहनोई की पक्षी योनि से मुक्ति दिलाने के लिए सांभ ने भगवान शिव व विष्णु की आराधना करना शुरू किया। प्रसन्न होकर भगवान ने उपाय बताते हिए कहा कि जब सम्पूर्ण मिथिलांचल की महिलाये और लड़कीयां कार्तिक मास के छठ के दिन से सामा व चकेवा की पूजा-अर्चना करेगी और कार्तिक पूर्णिमा की रात चूरक यानि चुगला के मुंह मे आग लगाकर जल मे विसर्जित करेगी तभी सामा-चकेवा मनुष्य योनि मे वापस लौट सकेगी। तभी से यह पर्व मिथिलांचल मे परंपरा बन गयी जो आज भी कायम है।
कोशी मे है वृन्दावन का जंगल
वृन्दावन जंगल सहरसा ज़िले के सिमरीब बख्तियारपुर में स्थित है। आम धारणा है कि यही वह जंगल है ज़हां सामा पक्षी बनकर भटकती थी। कहा जाता है कि इस वृदवान कि कहानी मोरंग से संबन्धित पाण्डुलिपि नेपाल नरेश के अभिलेखागार मे मौजूद है। सामा-चकेवा कि प्रचलित गीत वृदवान मे आगि लगलई केहु नै बुझावई हे, हमरो भईया, बड़का भईया, दौड़ि-दौड़ि बुझावई हे।…. भाई को भावूक करने वाली गीत कि प्रमुख पंक्ति बहन गाती है- अपना ल लिखिया भईया अन-धन लक्ष्मी हो, हमरा ल लिखीय भईया सामा और चकेवा हो। मतलब अपने प्रेमी पति के दीर्घायु की धन से भी अधिक महत्ता मिथिलांचल की बेटियाँ दिया करती है।

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