सुभाष चंद्र
दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कभी भी हो सकता है। सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की ओर से धडाधड निर्णय लिए जा रहे हैं। पोस्टर वार जारी है। आप के विधायक अपने अपने क्षेत्र में जनसंपर्क अभियान तेज कर चुके हैं। कांग्रेस और भाजपा के संभावित उम्मीदवार अपनी गोटी सेट करने में लगे हैं। दोनों ही दलों में अभी संभावित उम्मीदवार ही हंै। हाल ही में दिल्ली ने जिस प्रकार से नागरिकता संशोधन कानून को लेकर बवाल देखा है और लोकसभा चुनाव से पूर्व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मस्जिदों के इमामों की वेेतन सुविधा आदि में वृद्धि किया था, उससे जनता के मन में सवाल उठ रहा है कि क्या आप मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए ऐसा कदम चल रहा है।
असल में, आप के रणनीतिकारों को यह लगने लगा है कि बीते पांच साल में कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं की समझाइश की है, उससे पार्टी की स्थिति अच्छी हुई है। दिल्ली के मुस्लिम वोटर परंपरागत रूप से कांग्रेस के माने जाते रहे हैं। कांग्रेस की स्थिति अच्छी होने से वे इस पाले में आने लगे थे। ऐसे में आप के लिए ये खतरे की घंटी समझी जाती है। इसकारण ही अरविंद केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव से पहले ही मस्जिदों के इमामों के वेतन में वृद्धि करके मास्टर स्ट्ोक खेला था। हालांकि, आपसी बातचीत में कई भाजपा नेता कहते हैं कि भाजपा चुनावी सभाओं में इसे मुद्दा बनाएगी। दिल्ली में केवल मस्जिद ही नहीं है। यदि धार्मिक रूप से संस्थानों को मदद करना है तो मंदिर और गिरिजाघर के लिए भी दिल्ली सरकार को काम करना चाहिए था। लेकिन, नहीं, अरविंद केजरीवाल ने केवल मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाई है।
दिल्ली की राजनीति में यह भी देखने को आ रहा है कि भाजपा के रणनीतिकार झारखंड चुनाव हारने के बाद हर कदम पर गंभीर मंथन कर रहे हैं। दिल्ली चुनाव के लिए भाजपा नेतृत्व द्वारा बनाई गई प्रभारियों की टीम ने मोर्चा संभाल लिया है। पार्टी दिल्ली की केजरीवाल सरकार पर जनकल्याण के मामले में झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए मोदी ब्रांड को चुनाव में भुनाने की रणनीति पर काम कर रही है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सांसद रमेश चंद्र तोमर का कहना है कि जिस तरह का माहौल बना है उसे देखते हुए भाजपा की विधानसभा चुनाव में जीत तय है। संकेत के मुताबिक, चुनाव में नागरिकता कानून भी मुद्दा बनना तय माना जा रहा है। चार बार सांसद रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉक्टर रमेश चंद्र तोमर ने मुस्तफाबाद विधानसभा के प्रभारी बनने के बाद क्षेत्र का दौरा करते हुए कार्यकर्ताओं से कहा कि इतना सक्षम केंद्रीय नेतृत्व हमारे पास है कि हम कोई भी बाजी जीत सकते हैं।
उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता जान चुकी है कि मोदी सरकार कोई भी बड़ा और कड़ा फैसला राष्ट्रहित में ले सकती है। लोगों का समर्थन पार्टी के साथ है। बस केंद्रीय नेतृत्व की एक ही मंशा है कि सब मिलकर काम करें और बूथ-बूथ तक हमारे लोग मुस्तैदी से अपना एजेंडा लेकर पहुंचें। मोदी जी का नाम और भरोसा पैदा करने वाला काम ही दिल्ली में इस बार सरकार बनाने का इनाम देगा। कई अन्य प्रभारियों ने अलग-अलग इलाको में यही संदेश पहुंचाया है। पूर्व सांसद ने विधायक जगदीश प्रधान के कार्यालय पर सभी कार्यकर्ताओं की बैठक ली l पूर्व सांसद तोमर ने कहा कि नेतृत्व का एक ही संदेश है कि सभी भाजपा कार्यकर्ताओं को दिल्ली मे होने वाले चुनाव में एकजुट होकर काम करने के लिए जुट जाना है। तोमर ने मुस्तफाबाद विधानसभा सीट के बारे में बताते हुए कहा कि जब 2015 में चुनाव हुए थे तब पूरी दिल्ली में भाजपा के तीन विधायक जीते थे उनमें से जगदीश प्रधान मुस्तफाबाद विधानसभा सीट से अच्छे मतों से जीतकर विधायक बने थे।
दिल्ली ने अपने तीन पूर्व मुख्यमंत्री बीते 14 महीने में खोए हैं। इस बार बगैर पूर्व मुख्यमंत्री के ही दिल्ली का चुनावी रण होगा। कांग्रेस से शीला दीक्षित तीन बार मुख्यमंत्री रही हैं। 1998 से 2015 तक पांच विधानसभा चुनाव शीला दीक्षित के नेतृत्व में लड़े गए। उधर, दिल्ली में भाजपा की पहचान रहे पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना का निधन 27 अक्टूबर 2018 को हो गया। भाजपा को दूसरा झटका सुषमा स्वराज के रूप में लगा। पूर्व मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज का निधन छह अगस्त 2019 को हो गया। सुषमा सीधे तौर पर दिल्ली की सियासत में दखल नहीं देती थीं, लेकिन कई बार समीकरण साधने के लिए उनकी मदद ली जाती थी। बीते विधानसभा चुनाव में किरण बेदी को भाजपा ने मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया था। इस समय किरण बेदी पुड्डुचेरी की उपराज्यपाल हैं। संवैधानिक पद के चलते किरण बेदी का इन चुनावों में योगदान नहीं रहेगा। दिल्ली सरकार में मंत्री रहे और भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे जगदीश मुखी भी विधानसभा चुनावों में सक्रिय नहीं रहेंगे। मुखी असम के राज्यपाल हैं। अपनी उम्र के चलते दिल्ली में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रहे प्रो. विजय मल्होत्रा भी अब सक्रिय नहीं हैं।
आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान सोशल मीडिया पर प्रचार का जिम्मा संभालने के लिए कांग्रेस की ओर से कार्यालय पर ही डिजिटल मीडिया वॉर रूम तैयार किया जा रहा है। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के सोशल मीडिया प्रमुख राहुल शर्मा ने बताया कि पार्टी आम आदमी पार्टी और भाजपा की खामियों को सोशल मीडिया पर उजागर करेगी।आम आदमी पार्टी और भाजपा द्वारा चलाए जाने वाले झूठ का पर्दाफाश कांग्रेस का सोशल मीडिया प्रकोष्ठ करेगा। इसके साथ-साथ कांग्रेस का फोकस दिल्ली में पंद्रह साल तक रही शीला दीक्षित सरकार की उपलब्धियों को भी जनता के सामने ले जाना है। दिल्ली में विधानसभा चुनावों की सरगर्मी तेज होने को देखते हुए वॉर रूम को स्थापित करने का काम भी तेज हो गया है।
चुनाव नजदीक है इसलिए वर्तमान में जो रवैया दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का है, साफ़ पता चल रहा है कि केजरीवाल इस बात को मान चुके हैं कि दिल्ली में अगली सरकार दोबारा आम आदमी पार्टी की ही होगी। तैयारी तेज है।अगर बात रणनीति की हो तो आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी ने अपनी रणनीति बना ली है। बताया जा रहा है कि चुनाव खुद मुख्यमंत्री केजरीवाल के चेहरे पर लड़ा जाएगा। चुनाव हों तो मुद्दों का होना और उसके लिए वोट बैंक की पॉलिटिक्स बहुत जरूरी है। जैसा दिल्ली का माहौल है, इस बात को कहने में गुरेज नहीं किया जा सकता कि यहां मुद्दों की भरमार तो है ही। साथ ही यहां केजरीवाल के पास वोट बैंक पॉलिटिक्स करने का भरपूर चांस है।बिजली बहुत बेसिक चीज है। बिना बिजली के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। ये कहना हमारे लिए बिलकुल भी गलत नहीं है कि बिजली को लेकर जो कुछ भी केजरीवाल सरकार ने किया है उसकी तारीफ विपक्ष तक करता है। बात चूंकि दिल्ली की चल रही है तो बताना जरूरी है कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त कर दी है। यानी जिसका बिल 200 यूनिट के अन्दर आएगा उसे उसके लिए कोई शुल्क नहीं देना होगा।
गौर करने योग्य है कि दिल्ली में विधान चुनाव प्रक्रिया पूरी करने के बाद अगली सरकार का गठन 15 फरवरी, 2020 तक हर हाल में गठन होना है। 14 फरवरी, 2015 को आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी, इसी दिन AAP मुखिया अरविंद केजरीवाल ने बतौर मुख्यमंत्री शपथ ली थी।
बता दें 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी (आप) के 62 विधायक और भाजपा के चार विधायक हैं। बाकी सीटें अन्य दलों और निर्दलीयों के पास हैं। पिछली बार 7 फरवरी, 2015 को दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए थे।