नई दिल्ली। सीलिएक रोग के रोगियों के सामने आने वाली चुनौतियों के समाधान खोजने और सर्वोत्तम तरीकों पर चर्चा करने के लिए, 12 एवं 13 जनवरी, 2019 को इंडिया हैबिटेट सेंटर, नई दिल्ली में गेहूं से संबंधित विकारों पर सीलिएक सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएसआई) द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी (आईएसडब्ल्यूडी) का आयोजन किया जायेगा। सीएसआई सीलिएक रोग के शुरुआती निदान और प्रबंधन के बारे में जागरूकता पैदा करने के मिशन वाला पहला और एकमात्र गैर-लाभकारी संगठन है। इस कार्यक्रम में दुनिया भर के प्रतिनिधि शामिल होंगे, जिनमें यूएसए, यूके, जर्मनी, इटली, न्यूजीलैंड और इजरायल के पेशेवर शामिल रहेंगेे।
सीलिएक रोग एक ऑटोइम्यून बीमारी है जो एक प्रकार के प्रोटीन के कारण होती है, जिसे ग्लूटेन कहा जाता है, जो गेहूं और जौ जैसे अनाजों में मौजूद होता है। इन रोगियों में, ग्लूटन प्रोटीन पूरी तरह से पच नहीं पाता है और इससे छोटी आंतों के म्यूकोसा (जहां भोजन अवशोषित होता है) को नुकसान होता है। छोटी आंत की क्षति होने के कारण भोजन अवशोषित नहीं हो पाता है और इस प्रकार, इन रोगियों की ऊंचाई और वजन नहीं बढ़ पाते, और उसे दस्त, एनीमिया (कम हीमोग्लोबिन) और हड्डियों की कमजोरी की समस्या हो जाती है।
आंकड़ों के हिसाब से सीलिएक रोग की व्यापकता वैश्विक स्तर पर 1 प्रतिशत है। इसके अतिरिक्त, गेहूं से संबंधित बीमारी की व्यापकता लगभग 6 प्रतिशत है और 90 प्रतिशत से अधिक मामलों की जांच नहीं हो पाती है। भारत में, लगभग 6 से 8 मिलियन भारतीयों को यह बीमारी होने का अनुमान है, और उत्तर भारतीय समुदाय में इसकी व्यापकता 100 में से 1 है। इस सम्मेलन का उद्देश्य, चिकित्सा पेशेवरों, अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और जनता के बीच इस बढ़ती कंडीशन को सुर्खियों में लाना है। इसके साथ एक एक्सपो भी होगा, जिसमें ग्लूटेन-फ्री उत्पाद प्रदर्शित होंगे।
संगोष्ठी के बारे में बात करते हुए, सुश्री इशी खोसला, संस्थापक अध्यक्ष, सीलिएक सोसाइटी ऑफ इंडिया ने कहा, “गेहूं में ग्लूटन के प्रति संवेदनशीलता और सीलिएक रोग भारत में आमतौर पर जागरूकता की कमी के बड़े पैमाने पर पता नहीं चल पाते हैं। यह रोकथाम और उपचार की सबसे बड़ी बाधा भी है। इस संगोष्ठी के माध्यम से, उद्देश्य यह है कि गेहूं को लक्षित न करके, गेहूं के प्रति सेंसिटिव लोगों की पहचान की जाये और उन्हें बेहतर जीवन जीने में मदद की जाये। लक्षणों और स्क्रीनिंग टूल के बारे में डॉक्टरों, हैल्थकेअर पेशेवरों और जनता को पता होना चाहिए और इस सम्मेलन से ऐसा करने में मदद मिलेगी। संगोष्ठी के परिणामों के साथ, हम सार्वजनिक स्वास्थ्य के नजरिये से सिफारिशों के साथ एक श्वेत पत्र सरकार के समक्ष पेश करेंगे।”
गेहूं को शीर्ष आठ खाद्य एलर्जी कारकों के बीच सूचीबद्ध किया गया है और गेहूं व इसके प्रोटीन के प्रति रिएक्शन एलर्जी, सीलिएक रोग, त्वचा पर चकत्ते या इनटोलेरेंस के रूप में हो सकती हैं, जिन्हें गैर-सीलिएक ग्लूटर इनटोलेरेंस (एनसीजीआई) के रूप में भी जाना जाता है। एलर्जी के लक्षण श्वसन, अस्थमा, एटोपिक सूजन, पित्ती, और एनाफिलेक्सिस व कई और हो सकते हैं। कुछ व्यक्तियों में, यह लक्षणों के बिना भी हो सकता है।
डॉ. टॉम ओब्रायन, डीसी, सीसीएन, एडजंक्ट फैकल्टी, द इंस्टीट्यूट फॉर फंक्शनल मेडिसिन, साइंटिफिक एडवाइजरी बोर्ड- इंटरनेशनल एंड अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट्स ने अपनी टिप्पणी में कहा, “कभी एक पश्चिमी रोग माना गया, सीलिएक रोग अभी तक भारत और एशिया में बहुत अधिक चिंता की बात नहीं है। इस स्थिति की घटनाएं 1974 के बाद से पांच गुना बढ़ गयी हैं। इस तथ्य के अलावा कि यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है और इसकी पहचान कम ही हो पाती है, सीलिएक रोग और ग्लूटन इनसेंसेटिविटी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित कर सकती है। समय की मांग है कि आम जनता और चिकित्सकों के बीच जागरूकता बढ़ाई जाए। इतनी सारी चुनौतियों और अवसरों के साथ, मुझे यकीन है कि यह संगोष्ठी इनमें से कुछ मुख्य समस्याओं को सामने लाने के लिए एक आदर्श मंच साबित होगी।”
पद्म श्री अवार्डी, डॉ. के के अग्रवाल, अध्यक्ष, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने कहा, “गेहूं सदियों से भारत में पोषण का एक मूलभूत स्रोत रहा है। इस शक्तिदाई अनाज से संबंधित बढ़ती संवेदनशीलता के कारण, बड़े पैमाने पर जागरूकता पैदा करना अनिवार्य हो गया है। हालांकि इस क्षेत्र में बहुत सारे अनुसंधान चल रहे हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ कवर किया जाना बाकी है। तथ्य यह है कि गेहूं से संबंधित बीमारियां अन्य स्थितियों जैसे मुंह के अल्सर, एनीमिया, ऑस्टियोपोरोसिस, गठिया, साधारण फ्रैक्चर आदि से भी जुड़ी हैं, ऐसे में उपचार के विकल्प और सुरक्षित या गेहूं से कम हानिकारक विकल्प तलाशने की तत्काल आवश्यकता है।’’
संगोष्ठी में भाग लेने वाले कुछ अन्य वक्ताओं में प्रमुख हैं- प्रोफेसर अनुपम सिबल, एमडी, एफआईएमएसए, एफआईएपी, एफआरसीपी (ग्लासगो), एफआरसीपी (लोन), एफआरसीपीसीएच, एफएएपी, ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर, अपोलो हाॅस्पिटल्स ग्रुप; श्री पवन अग्रवाल, सीईओ, फूड सेफ्टी एंड स्टेंडर्ड्स अथाॅरिटी आॅफ इंडिया (एफएसएसएआई); डाॅ. बी एस रामाकृष्णा, प्रोफेसर एवं हेड, गेस्ट्रोएंटेरोलाॅजी विभाग, एसआरएम इंस्टीट्यूट फाॅर मेडिकल साइंस, वेल्लोर तथा प्रतिष्ठित पीडियाट्रिक गेस्ट्रोएंटेरोलाॅजिस्ट डाॅ. सरथ गोपालन, जो आईएसडब्ल्यूडी 2019 के आयोजन सचिव भी हैं।