नई दिल्ली । चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पद से हटाने के लिए कांग्रेस सहित 7 पार्टियों ने उनके खिलाफ महाभियोग लाने का प्रस्ताव दिया है। शुक्रवार को उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू को सौंपे गए इस प्रस्ताव में विपक्ष ने चीफ जस्टिस पर पांच आरोप लगाए हैं और महाभियोग शुरू करने की मांग की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों को मीडिया में आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी, मीडिया में आने के तीन महीने बाद भी सुप्रीम कोर्ट में कुछ नहीं बदला, चीफ जस्टिस के प्रशासनिक फैसलों को लेकर नाराजगी, बैक डेटिंग, जमीन अधिग्रहण, फर्जी एफिडेविट का आरोप और जज लोया समेत कई केस को लेकर विवादों को पर आरोप लगाए लेकिन विपक्ष के इन दांवों की राह में कई रोड़े हैं।
सबसे पहले तो राज्यसभा के सभापति यानी उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू इस प्रस्ताव को खारिज कर सकते हैं। दरअसल, इस प्रस्ताव के लिए लोकसभा के 100 या राज्यपाल के 50 सदस्यों के हस्ताक्षर जरूरी हैं, लेकिन राज्यसभा के सभापति को प्रस्ताव को मंजूर करने या उसे खारिज करने का अधिकार है।
अगर रिपोर्ट खिलाफ है तो चीफ जस्टिस की राज्यसभा में होगी पेशी। उसके बाद वोटिंग की जाएगी। प्रस्ताव की जीत के लिए 123 वोट जरूरी है, लेकिन अभी जिन 7 दलों ने महाभियोग का प्रस्ताव रखा है, उनके उच्च सदन में सिर्फ 78 सांसद हैं यानी प्रस्ताव गिरना लगभग तय है। अगर यह प्रस्ताव मंजूर हुआ तो तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाएगा जो आरोपों की जांच करेगी। इस 3 सदस्यीय समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक कानून विशेषज्ञ होंगे। समिति आरोपों की जांच कर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
अगर इस मुद्दे पर विपक्ष एक हुआ तो वह राज्यसभा में जीत जाएगा जिसके बाद लोकसभा में पेशी होगी लेकिन संख्याबल के मुताबिक वहां विपक्ष की हार तय है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस प्रक्रिया में 6 महीने से अधिक समय लगेंगे और तब तक चीफ जस्टिस (2 अक्टूबर को) रिटायर हो चुके होंगे।
कौन हैं जस्टिस दीपक मिश्रा ?
कांग्रेस और अन्य दलों के नेताओं ने उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू से मुलाकात कर उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस सौंपा हैं। कांग्रेस ने बताया कि इस नोटिस को 7 विपक्षी पार्टियों का समर्थन हासिल है और इसपर 71 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और मुस्लिम लीग ने हस्ताक्षर किए।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा का जन्म 3 अक्टूबर 1953 को हुआ था। 14 फरवरी 1977 में उन्होंने उड़ीसा हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी। न्यायमूर्ति मिश्रा भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बनने वाले ओडिशा के तीसरे न्यायाधीश हैं। उनसे पहले ओडिशा से ताल्लुक रखने वाले न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा और न्यायमूर्ति जीबी पटनायक भी इस पद पर रह चुके हैं। न्यायमूर्ति मिश्रा याकूब मेमन पर दिए गए फैसले के कारण काफी सुर्खियों में रहे थे। उन्होंने रात भर सुनवाई करते हुए याकूब की फांसी पर रोक लगाने संबंधी याचिका निरस्त कर दी थी।
न्यायमूर्ति मिश्रा पटना और दिल्ली उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके हैं। तीन अक्टूबर 1953 को जन्मे न्यायमूर्ति मिश्रा को 17 फरवरी 1996 को उड़ीसा उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया था। तीन मार्च 1997 को उनका तबादला मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में कर दिया गया। उसी साल 19 दिसंबर को उन्हें स्थायी नियुक्ति दी गयी।
चार दिन बाद 23 दिसंबर 2009 को उन्हें पटना उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया और 24 मई 2010 को दिल्ली उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। वहां रहते हुए उन्होंने पांच हजार से ज्यादा मामलों में फैसले सुनाये और लोक अदालतों को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के प्रयास किये। उन्हें 10 अक्टूबर 2011 को पदोन्नत करके उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। न्यायमूर्ति मिश्रा ने ही देशभर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के आदेश जारी किए थे।
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