भाजपा के नये प्रदेश अध्यक्ष की राह नहीं आसान

कृष्णमोहन झा

लंबे समय से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नंदू भैया को बदले जाने की चर्चा पर आज विराम लग गया। इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में मुंगावली, और कोलारस विधानसभा उपचुनाव में मिली भाजपा को हार के बाद से ही नंदू भैया को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाये जाने की बात उठने लगी थी। विगत एक सप्ताह से यह चर्चा सोशल से लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में छाई रही। पिछ्ले एक सप्ताह में दो बार आयोजित भाजपा की कोर कमेटी की बैठक के बाद यह स्पष्ट संकेत मिलने लगे थे कि संगठन में बड़ा फेरबदल संभावित है। इस बदलाव के पीछे संघ के पदाधिकारियों की मध्यप्रदेश विधानसभा की चिंता और आनन फानन में संघ के सह कार्यवाह कृष्णगोपाल जी की उपस्थिति में क्षेत्र प्रचारक संगठन महामंत्री, राष्ट्रीय महामंत्री, मुख्यमंत्री और कोर कमेटी के सदस्यों के साथ हुई बैठक में प्रदेश में संगठनात्मक रूप से सब सही नहीं होने की बात कही गई थी साथ ही संगठनात्मक तौर पर जल्द सुधार के सुझाव संघ ने भाजपा को दिये थे। संघ के निर्देश पर भारतीय जनता पार्टी ने एक सप्ताह के भीतर कोर कमेटी की बैठक का आयोजन आनन फानन में किया।
मंगलवार सुबह ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संकेत दे दिये थे कि 24 घंटे के भीतर नये अध्यक्ष की घोषणा हो जाएगी मंगलवार को ही भाजपा की कोर कमेटी की बैठक राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल की उपस्थिति में सम्पन हुई। जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, नंदकुमार चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी,राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय,पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते,विक्रम वर्मा की मौजूदगी में रायसुमारी हुई जिसमें संघठन महामंत्री ने राकेश सिंह को नये अध्यक्ष का दायित्व सौंपने का आलाकमान के निर्णय से अवगत करा दिया था,आज एक ओपचारिक घोषणा के साथ ही राकेश सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व संभाल लिया। ऐसे समय जब विधानसभा चुनाव को मात्र 6 माह का समय बचा है ऐसे में नये अध्यक्ष के सामने कठिन चुनोती है। सबसे बड़ी चुनोती कार्यकर्ताओं में नये उत्साह का संचार करने ओर जमीनी स्तर पर उन्हें सक्रिय करने की है। राकेश सिंह प्रदेश के महामंत्री तो रहे है लेकिन उनका सीधा संपर्क प्रदेश के कार्यकर्ताओं से कभी नही रहा है उन्हें अभी कार्यकर्ताओं के बीच एक एक मंडल और बूथ लेबल पर सम्पर्क स्थापित करना होगा। इतना ही नहीं कार्यकर्ताओं को कार्यक्रम के साथ ही उनकी समस्यों के बेहतर निराकरण के प्रयास करने होंगे। लगातार तीन बार सरकार होने से प्रदेश में सरकार विरोधी माहौल पनपने लगा है उसे भी दूर करना राकेश के समक्ष बड़ी चुनोती होगी। प्रमोशन में आरक्षण और दलित वर्ग को साधने के लिए मुख्यमंत्री द्वारा कोई माई का लाल प्रमोशन में आरक्षण को समाप्त नहीं कर सकता ऐसा वक्तव्य देने के बाद सामान्य वर्ग का कार्यकर्ता और आम मतदाता सरकार से काफी नाराज है उसे साधना भी प्रदेशाध्यक्ष के लिये बड़ी चुनोती होगी। एससीएसटी पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद 2 अप्रेल को प्रदेश भर में हुए आंदोलन का असर भी एससीएसटी वर्ग के वोटरों पर पड़ा है अभी जब संघ और भाजपा से उम्मीद की जा रही थी कि इस वर्ग के लोगों को अपने साथ लाने इस वर्ग के नेताओं को बड़ा दायित्व सौंप सकती है लेकिन ऐसा नही हुआ? मध्यप्रदेश की 230 सीटो में से 82 सीट इस वर्ग के लिए आरक्षित है और लगभग 150 सीटों पर समीकरण बनाने और बिगाडऩे में इस वर्ग के मतदाताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहता है ऐसे में इस वर्ग को साधकर अपने साथ लाना और विधानसभा में मतदान अपने पक्ष में करवाना भी नये अध्यक्ष का दायित्व होगा। पार्टी की जो वर्तमान स्थिति है उसमें मुख्यमंत्री ठाकुर,प्रदेशाध्यक्ष ठाकुर,चुनाव अभियान समिति अध्यक्ष ठाकुर इस हालत में ब्राम्हण,वैश्य,कायस्थ,आदिवासी,दलित,ओबीसी वर्ग के नेताओं के सामने यह तय करना काफी संकटग्रस्त है कि आखिर पार्टी में हमारी भूमिका का क्या है? संगठन और सरकार के बीच बेहतर समन्वय का आभाव भी बड़ी समस्या है,अब देखना यह है कि नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष इन समस्याओं से कैसे निपट पाते है?

भाजपा प्रदेश की कमान संभालने वाले राकेश सिंह का राजनैतिक सफर इस तरह रहा

2000 में वह जबलपुर भाजपा के जिलाध्यक्ष बने थे, इसके बाद अपनी काबिलियत के आधार पर पार्टी में जगह बनाते गए। 2004 में भाजपा ने उन्हें जबलपुर से लोकसभा प्रत्याशी बनाया इस चुनाव में शानदार जीत हासिल कर संसद पहुंचे राकेश सिंह ने फिर पीछे मुडक़र नहीं देखा। 2009 और फिर 2014 में जबलपुर से सांसद चुने गए राकेश सिंह संसद की कई महत्वपूर्ण कमेटियों के सदस्य हैं। 2014 में चुनाव आयोग की दी गई जानकारी के अनुसार, राकेश सिंह 2.78 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद सांसद राकेश सिंह ने कहा कि नंदू भैया ने 200 का टारगेट तय किया है। इस पर काम करेंगे, लेकिन हमारे सामने लक्ष्य 2018 विधानसभा चुनाव और 2019 लोकसभा चुनाव हैं। इसके लिए हमारी कार्यकर्ताओं फौज है, जिसके साथ हम चुनाव में जुटेंगे। सरकार विरोधी लहर पर कहा कि प्रदेश में कोई एंटी इन्कैम्बेंसी नहीं है। मप्र में जितने कार्य हुए हैं, उतने शायद देश के किसी राज्य में नहीं हुआ है। ये हर प्रदेश के लिए प्रेरणा से कम नहीं है। गौरतलब है कि प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किए जाने के बाद जब उन्होंने प्रदेश भाजपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था तब नन्दकुमार सिंह चौहान ही इस पद के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहली पसंद बने थे। यहां मैं यह उल्लेख अवश्य करना चाहूंगा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2012 के अंत में जब अपने विश्वस्त सहयोगी के रूप में नरेन्द्र सिंह तोमर की प्रदेश भाजपाध्यक्ष पद पर ताजपोशी कराई थी तब पार्टी के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने मुख्यमंत्री की पहल पर हुए नाटकीय फेरबदल की तुलना पोखरण विस्फोट से कर डाली थी। प्रभात झा के कार्यकाल में हुए मध्यप्रदेश विधानसभा के सारे उप चुनावों में भाजपा की शानदार जीत के बावजूद इस नाटकीय फेरबदल ने भाजपा में ही सबको आचरज में डाल दिया था। तब ऐसा प्रतीत हुआ था कि शायद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दिल के किसी कोने में यह भय छुपा हुआ है कि राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा की अवश्य भावी जीत के बाद प्रभात झा भी मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं और इसलिए उन्होंने अपने विश्वस्त सहयोगी नरेन्द्र सिंह तोमर को प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी कराकर तीसरी बार अपने मुख्यमंत्री बनने की राह आसान कर ली थी। राज्य विधानसभा के गत चुनाव भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान और नरेन्द्र सिंह तोमर के संयुक्त नेतृत्व में लड़े परंतु जब मुख्यमंत्री चौहान ने जनता से उनका चेहरा देखकर भाजपा को वोट देने की अपील की तब ही यह संकेत मिल गए थे कि वे भाजपा की जीत के श्रेय में किसी और की हिस्सेदारी पसंद नहीं करेंगे। नरेन्द्र सिंह तोमर पर उन्हें पूरा भरोसा था कि वे मुख्यमंत्री पद के लिए उनके प्रतिद्वंद्वी कभी नहीं बनेंगे। अगर चुनावों के दौरान प्रभात झा के हाथों में ही प्रदेश अध्यक्ष पर की बागडोर रही आती तो मुख्यमंत्री चौहान के अंदर ऐसी निश्चितता का भाव नहीं आ सकता था। तोमर के केन्द्र में मंत्री बन जाने के बाद मुख्यमंत्री चौहान ने खंडवा के सांसद नन्दकुमार सिंह चौहान को पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष बनवाकर एक तरह से सत्ता और संगठन दोनों पर अपना वर्चस्व बनाए रखने में सफलता तो जरूर हासिल की है परंतु बड़बोले प्रदेशाध्यक्ष की अनेक टिपणियों ने मुख्यमंत्री को असहज स्थिति का सामना करने के लिए विवश किया है। अपने ‘नन्दू भैया’ की ऐसी टिप्पणियों पर मुख्यमंत्री ने भले ही चुप्पी साध ली हो परंतु पार्टी के गलियारों में दबी जुबान से नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि क्या पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष से ऐसे बयानों की अपेक्षा की जा सकती है जो उनके पद की गरिमा के अनुकूल न हों।
यहां इस तथ्य को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब नन्द कुमार सिंह चौहान को भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बनने पर बधाई दी थी तो बैठक उनके सहज सरल और मितभाषी व्यक्तित्व की दिल खोलकर प्रशंसा की थी लेकिन उस वक्त मुख्यमंत्री चौहान यह पूर्वानुमान कैसे लगा सकते थे कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर विजराजमान होते ही उनके नन्दू भैया को पद का अहंकार इतना जकड़ लेगा कि वे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर हड़ताली स्कूली अध्यापकों के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग करने से भी परहेज नहीं करेंगे जिससे स्वयं उनके पद की गरीमा का उल्लंघन होता है। गौरतलब है कि राज्य सरकार के शिक्षा विभाग में संविलयन और छठे वेतनमान की सभी किश्तों का 2015 में भुगतान संबंधी मांगों को लेकर आंदोलनरत अध्यापकों के बारे में नन्दकुमार सिंह चौहान के इस बयान की तीखी आलोचना हुई थी।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

 

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