प्रियंका संभालेंगी सोनिया की राजनीतिक विरासत ?

कृष्णमोहन झा

कांग्रेस अध्यक्ष पद की बागडोर अपने पुत्र राहुल गांधी के हाथों में सौंपने के बाद सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति से भी दूरियां बनाना शुरू किए दिया है । पार्टी की चुनावी रैलियों के मंच पर के साथ साथ लोकसभा की कार्यवाही में भी यदा- कदा ही उन्होंने उपस्थिति दर्ज कराई है। इसकी मुख्य वजह उनकी शारीरिक अस्वस्थता ही बताई जाती है। ऐसी स्थिति में यह सवाल भी उठना स्वभाविक है कि अगले साल लोकसभा चुनाव में क्या वे अपने क्षेत्र रायबरेली से पुनः कांग्रेस प्रत्याशी बनना पसंद करेंगी। यदि उन्होंने चुनाव लड़ने के प्रति अनिच्छा जाहिर कर दी तब इस स्थिति में वहां से प्रत्याशी कौन हो सकता है? यह तो तय है कि यदि वे पुनः चुनाव के लिए तैयार हो जाती है तो उनकी जीत पर सवाल खड़े नही किए जा सकते है, लेकिन यदि वे तैयार नही होती है तो कांग्रेस को रायबरेली से ऐसे प्रत्याशी का चयन करना होगा जिसके जीतने में जरा भी संशय न हो।

रायबरेली लोकसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। इसीलिए पार्टी की प्रतिष्ठा भी इससे जुड़ी हुई है। सोनिया गांधी को जनता ने यहां से हर बार भारी बहुमत से जिताया है। अब यदि उनके स्थान पर लड़ने के लिए किसी का चुनाव कांग्रेस को करना है तो पार्टी के पास उनकी बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम ही सबसे ऊपर उभरकर आता है। वे पिछले चुनावों में रायबरेली व अपने भाई राहुल गांधी की सीट अमेठी में जमकर चुनाव प्रचार कर चुकी है। हालांकि उन्होंने खुद कभी चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त नहीं की है औऱ न ही पार्टी संगठन में कोई पद स्वीकार किया है। तो सवाल अब यह है कि सोनिया गांधी ने यदि प्रत्याशी बनना पसंद नहीं किया तो क्या प्रियंका रायबरेली से उनकी विरासत संभालने सहर्ष तैयार हो जाएगी।

वैसे प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा एकाधिबार यह संकेत दे चुके हैं कि प्रियंका राजनीति में आ सकती है लेकिन रॉबर्ट वाड्रा इस कड़वी हकीकत से भी वाकिफ होंगे कि हरियाणा में जमीन के सौदों में अनैतिक तरीके से भारी लाभ अर्जित करने के जो आरोप उन पर लगे है, इसके कारण सक्रिय राजनीति में प्रियंका को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। गौरतलब है कि अभी कुछ समय पहले ही रॉबर्ट वाड्रा एवं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर सिंह हुड्डा के विरुध्द गुड़गांव में एक भूमि सौदे में गड़बड़ी को लेकर एफआईआर दर्ज हुई है। हालांकि वाड्रा इस मामले को पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों से ध्यान हटाने की कवायद बता रहे है, लेकिन इससे उनकी मुश्किलें कम होते नजर नही आ रही है।

जहाँ तक रायबरेली से संभावित उम्मीदवारी का जो प्रश्न है ,उसका फैसला स्वयं प्रियंका गांधी को ही करना है। यदि प्रियंका तैयार हो जाती है तो इससे कांग्रेस को फायदा मिल सकता है। प्रियंका रायबरेली की जनता से भी भली- भांति परिचित है। पिछले चुनावों में अपने सघन दौरे के बीच उन्होंने जनता के बीच अपने सरल सहज स्वभाव के कारण जो संबंध बनाए है उसका फायदा भी उन्हें मिलेगा। इसलिए यदि वे यहां से प्रत्याशी बनाई जाती है तो उनकी विजय में तनिक भी संशय नही होगा। इसी बीच यह सवाल भी उठेगा यदि वे चुनावी राजनीति में उतरती है तो क्या अपनी भूमिका को रायबरेली तक ही सीमित रखेगी? औऱ क्या यह उनके लिए भी यह संभव हो पाएगा। क्या चुनाव में राहुल गांधी व प्रियंका के बीच कांग्रेसी ही तुलना नही करेंगे कि पार्टी की लड़खड़ाती नौका को संभालने में वे कौन ज्यादा समर्थ है। निश्चित रूप से संवाद अदायगी का सामर्थ्य राहुल से ज्यादा प्रियंका गांधी के पास है औऱ हमेशा से ये भी माना जा जाता है कि प्रियंका में जनता उनकी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की छवि देखती है। उनमे एक क्षमता यह भी है कि वे मतदाताओं से तारतम्य जल्द बैठा लेती है। इसके साथ ही वे पार्टी का खोया मनोबल बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। इसलिए उनके राजनीति में आने के बाद कांग्रेसी भाई बहन के बीच निश्चित ही तुलना करेंगे, लेकिन वे यह भी कभी नही चाहेगी कि उनके सक्रिय राजनीति में आने के बाद राहुल गांधी के राजनीतिक जीवन पर कोई असर पड़े। खैर अभी तक तो उन्होंने यही संकेत दिया है कि वे अपने आप को रायबरेली एवं अमेठी तक ही सीमित रखेगी ,लेकिन भविष्य की राजनीति के लिए वे अपने लिए कौन सी भूमिका चुनती है वे केवल औऱ केवल उन्हें ही तय करना है।

(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)

Leave a Reply

Your email address will not be published.